निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 27 फरवरी 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि बिहार के राज्य विश्वविद्यालयों के गैर-शैक्षणिक (non-teaching) कर्मचारियों के वेतन निर्धारण (Pay Fixation) का अधिकार विश्वविद्यालय की वैधानिक समिति (Statutory Committee) के पास है, न कि शिक्षा विभाग के Pay Verification Cell (PVC) के पास।
मामला एक महिला कर्मचारी का था, जिन्हें अपने पति की मृत्यु के बाद संवेदनशील नियुक्ति (Compassionate Appointment) पर वर्ष 2005 में विश्वविद्यालय में क्लर्क के रूप में नौकरी दी गई थी। उन्होंने 2019 में सेवानिवृत्ति प्राप्त की। कई वर्षों तक विश्वविद्यालय ने उन्हें नियमित वेतनमान (₹4000–6000) और MACP (Modified Assured Career Progression) का लाभ दिया था।
लेकिन सेवानिवृत्ति के चार साल बाद, 2023 में, शिक्षा विभाग ने अचानक उनके वेतनमान को घटाकर ₹3050–4590 कर दिया और कहा कि उन्हें ₹4,71,000 से अधिक का “अधिक भुगतान” (excess payment) हुआ है, जिसे अब वापस करना होगा। यह आदेश Pay Verification Cell के माध्यम से जारी किया गया था।
महिला ने इस आदेश को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। न्यायालय ने पूरी प्रक्रिया को गैरकानूनी बताते हुए कहा कि राज्य सरकार या PVC के पास किसी विश्वविद्यालय कर्मचारी का वेतन घटाने या बदलने का अधिकार नहीं है, जब वह निर्धारण विश्वविद्यालय की वैधानिक समिति द्वारा पहले ही किया जा चुका हो।
न्यायालय ने कहा कि इस तरह का हस्तक्षेप “न्यायिक दृष्टि से अनुचित” है, क्योंकि राज्य सरकार ने स्वयं पहले यह स्वीकार किया था कि Pay Verification Cell केवल जांच या ऑडिट की भूमिका निभा सकता है, अंतिम निर्णय विश्वविद्यालय का ही होगा।
अदालत ने शिक्षा विभाग का 22 जुलाई 2023 का पत्र और उस पर आधारित संशोधित वेतन पर्ची को रद्द (quash) कर दिया। साथ ही, विश्वविद्यालय को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को पुराने वेतनमान (₹4000–6000) के अनुसार ही समस्त पेंशन, ग्रेच्युटी, वेतन बकाया और अन्य लाभ तीन महीने के भीतर दिए जाएँ। यदि भुगतान में देरी होती है, तो उस पर 6% वार्षिक ब्याज देना होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के विश्वविद्यालयों में कार्यरत हजारों गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों के लिए राहत भरा है। कई विश्वविद्यालयों में Pay Verification Cell द्वारा वर्षों पुराने वेतन निर्धारण को पलटने के आदेश दिए जा रहे हैं, जिनसे कर्मचारियों की पेंशन और ग्रेच्युटी अटक जाती है।
इस निर्णय से अब यह साफ हो गया है कि:
- विश्वविद्यालयों के वेतन निर्धारण में राज्य का Pay Verification Cell केवल सलाहकार या ऑडिटिंग निकाय है, निर्णायक नहीं।
- एक बार जब विश्वविद्यालय की वैधानिक समिति किसी कर्मचारी का वेतन तय कर देती है और राज्य सरकार उस पर लंबे समय तक कोई आपत्ति नहीं करती, तो बाद में सेवानिवृत्ति के बाद उसे बदलना गलत है।
- “अधिक भुगतान” का दावा तभी सही ठहराया जा सकता है जब कोई धोखाधड़ी या गलत सूचना का मामला साबित हो।
- पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों में देरी को न्यायालय ने गंभीरता से लिया है और उस पर ब्याज का प्रावधान किया है।
यह निर्णय सरकार के लिए भी एक सीख है कि आंतरिक वित्तीय प्रक्रियाएँ कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकतीं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- प्रश्न: क्या Pay Verification Cell (PVC) को विश्वविद्यालय कर्मचारी का वेतनमान घटाने या पुनः निर्धारण करने का अधिकार है?
निर्णय: नहीं। PVC केवल जांच या ऑडिट कर सकता है, लेकिन वह विश्वविद्यालय की वैधानिक समिति के निर्णय को बदल नहीं सकता। - प्रश्न: क्या संवेदनशील नियुक्ति पर नियुक्त महिला कर्मचारी को ₹4000–6000 के उच्च वेतनमान और MACP का लाभ मिलना चाहिए था?
निर्णय: हाँ। यह लाभ राज्य सरकार के आदेशों और सुप्रीम कोर्ट के Sunny Prakash फैसले के अनुसार वैध है। - प्रश्न: क्या विश्वविद्यालय को बिना किसी अनुशासनात्मक या आपराधिक कार्यवाही के पेंशन और ग्रेच्युटी का 10% रोकने का अधिकार है?
निर्णय: नहीं। ऐसा करना अनुचित और अवैधानिक है। - प्रश्न: क्या सेवानिवृत्ति के छह साल बाद तक भुगतान में हुई देरी पर ब्याज मिलना चाहिए?
निर्णय: हाँ, देरी पर 6% वार्षिक ब्याज देय होगा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Bihar & Anr. v. Sunny Prakash & Ors., (2013) 3 SCC 559 – विश्वविद्यालयों के गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को ACP/MACP और उच्च वेतनमान देने के संबंध में।
- Bimal Kumar Bimal v. State of Bihar, 2024 (6) BLJ 521 – Pay Verification Cell द्वारा वेतन संशोधन की सीमा पर।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Dr. Kedar Nath Pandey v. Magadh University, 2015 (1) PLJR 574 – PVC की भूमिका केवल ऑडिट तक सीमित है, निर्णय विश्वविद्यालय का होगा।
- Indranath Jha v. State of Bihar, CWJC No. 4722 of 2020 (Patna High Court) – समान परिस्थिति में विश्वविद्यालय द्वारा तय वेतन को बरकरार रखने का आदेश।
मामले का शीर्षक
श्रीमती कंचन साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 19531 of 2021
उद्धरण (Citation)
2025 (2) PLJR 90
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता (सहायक अधिवक्ता के साथ)
- बिहार राज्य की ओर से: GP-20
- विश्वविद्यालय (तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय) की ओर से: अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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