निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में एक कंपनी के पूर्व प्रबंध निदेशक द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें बिहार राज्य ऋण एवं निवेश निगम लिमिटेड (BICICO) द्वारा की गई नीलामी को चुनौती दी गई थी। यह मामला LPA No. 344 of 2017 से जुड़ा था, जिसमें याचिकाकर्ता ने एकल पीठ द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें BICICO को नीलामी खरीदार के पक्ष में बिक्री विलेख निष्पादित करने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता M/s किरण री-रोलर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक थे। वर्ष 1989-90 में कंपनी ने BICICO से ₹90 लाख का ऋण लिया था। जब कंपनी यह ऋण चुकाने में असफल रही, तो BICICO ने राज्य वित्त निगम अधिनियम, 1951 की धारा 29 और 30 के तहत रिकवरी की प्रक्रिया शुरू की। नोटिस भेजे जाने के बावजूद भुगतान न होने पर, BICICO ने कंपनी की गिरवी संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया और जून 2011 में नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी।
कंपनी ने पहले 2011 में उच्च न्यायालय में CWJC No. 9994/2011 दाखिल कर नीलामी को चुनौती दी और एकमुश्त समझौता (OTS) का लाभ देने की मांग की। यह याचिका खारिज कर दी गई और फिर दाखिल की गई अपील (LPA No. 1244/2011) भी खारिज हो गई क्योंकि कंपनी ने OTS की शर्तों के तहत आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए थे।
बाद में जब नीलामी खरीददार (प्रतिवादी संख्या 5) ने CWJC No. 2930/2015 दायर कर BICICO से बिक्री विलेख रजिस्टर्ड करवाने की मांग की, तब याचिकाकर्ता ने खुद को पक्षकार बनाने का आवेदन दिया। उन्हें पक्षकार बनने की अनुमति मिली, लेकिन उनकी आपत्तियों को खारिज करते हुए एकल पीठ ने खरीदार के पक्ष में आदेश पारित किया।
अब दायर की गई इस अपील में याचिकाकर्ता ने कहा कि नीलामी मिलीभगत से की गई और BICICO ने कंपनी को पुनर्वास का मौका नहीं दिया। उन्होंने नीलामी प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया। लेकिन खंडपीठ ने माना कि ये सभी तर्क पहले ही अदालत द्वारा खारिज किए जा चुके हैं और इन्हें दोबारा नहीं उठाया जा सकता।
अदालत ने कहा कि जब एक वैध नीलामी पूरी हो चुकी हो, संपत्ति का कब्जा स्थानांतरित हो चुका हो, तो इस तरह की प्रक्रिया को सिर्फ इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि याचिकाकर्ता पहले से खारिज तर्क दोहरा रहे हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय न्यायालय द्वारा दोहराए गए इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि एक बार किसी मुद्दे पर अंतिम रूप से निर्णय हो जाने के बाद, उसी मुद्दे को बार-बार अदालत में लाकर न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। यह उन औद्योगिक इकाइयों के लिए चेतावनी है जो ऋण लेकर भुगतान करने में विफल होती हैं।
साथ ही, यह फैसला राज्य वित्त निगम जैसे संस्थानों की वसूली प्रक्रिया को वैधानिक संरक्षण देता है, जिससे भविष्य में ऋण देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और अनुशासन बना रहेगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या BICICO द्वारा की गई नीलामी वैध थी?
✔ हाँ, नीलामी वैधानिक और नियमों के अनुसार हुई थी। - क्या कंपनी को OTS योजना का लाभ मिला था?
✔ हाँ, लेकिन कंपनी ने आवश्यक दस्तावेज और भुगतान प्रस्तुत नहीं किया। - क्या पहले खारिज हो चुके मुद्दों को फिर से उठाया जा सकता है?
❌ नहीं, एक ही मुद्दे पर बार-बार याचिका दायर करना स्वीकार्य नहीं। - क्या नीलामी प्रक्रिया में कोई अनियमितता पाई गई?
❌ नहीं, कोर्ट ने ऐसी कोई गड़बड़ी नहीं पाई।
मामले का शीर्षक
Awadhesh Prasad Sinha v. The State of Bihar & Others
केस नंबर
LPA No. 344 of 2017 in CWJC No. 2930 of 2015
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 161
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री सिद्धार्थ प्रसाद — अपीलकर्ता की ओर से
श्री राकेश अंबस्थ (AAG 7 के सहायक) — राज्य सरकार की ओर से
श्री कुमार अभिमन्यु प्रताप — BICICO की ओर से
श्री सुनील कुमार शर्मा — प्रतिवादी संख्या 5 की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMzNDQjMjAxNyMxI04=-lk60Q1rdHNc=
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