निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में यह स्पष्ट किया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (Essential Commodities Act – E.C. Act) के तहत जब किसी वाहन को ज़ब्त किया जाता है, तो ज़िला पदाधिकारी (District Collector) सीधे उसे जब्त करने का आदेश नहीं दे सकते। यदि वाहन व्यावसायिक उपयोग (यानी यात्रियों या सामान ढोने के लिए किराए पर) में प्रयोग किया जा रहा हो, तो वाहन मालिक को यह विकल्प देना अनिवार्य है कि वह ज़ब्ती के बजाय एक जुर्माना अदा कर दे।
यह मामला सुपौल जिले से संबंधित है। याचिकाकर्ता एक बजाज मैक्सिमा डीज़ल ऑटो (तीन पहिया वाहन) का मालिक था, जिसे पुलिस ने भपटियाही थाना कांड संख्या 93/2020 में ज़ब्त किया। यह मामला आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता की दलील
वाहन मालिक ने कहा कि उसके वाहन को जब्त करने के बाद उसने ज़िला पदाधिकारी, सुपौल, के समक्ष वाहन को मुक्त कराने के लिए आवेदन दिया था। लेकिन पदाधिकारी ने बिना कानून की प्रक्रिया अपनाए सीधे जब्ती का आदेश पारित कर दिया।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कानून के तहत—विशेषकर धारा 6-A(1) के दूसरे प्रावधान (Second Proviso)—में स्पष्ट है कि यदि वाहन किराए पर चलता है तो मालिक को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह जब्ती की जगह जुर्माना (फाइन) अदा करे। परंतु इस मामले में उसे यह विकल्प नहीं दिया गया।
साथ ही, यह भी बताया गया कि वाहन लंबे समय से खुले स्थान पर खड़ा है और धूप व धूल से लगातार खराब हो रहा है।
राज्य की दलील
राज्य की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता ने इस मामले में सीधे हाईकोर्ट का रुख किया, जबकि कानून के अनुसार उसे पहले धारा 6-C के तहत अपील दायर करनी चाहिए थी।
कोर्ट की जांच
हाईकोर्ट ने कानून का गहराई से अध्ययन किया। धारा 6-A यह अधिकार देता है कि जिला पदाधिकारी आवश्यक वस्तु, उसके कंटेनर और उन वाहनों को जब्त कर सकते हैं जिनका इस्तेमाल अवैध परिवहन में हुआ हो।
लेकिन धारा 6-A(1) का दूसरा प्रावधान (Second Proviso) स्पष्ट रूप से कहता है कि—
यदि वाहन यात्रियों या सामान ढोने के लिए किराए पर प्रयोग किया जाता है, तो उसके मालिक को ज़ब्ती के बजाय जुर्माना भरने का विकल्प दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने पाया कि ज़िला पदाधिकारी, सुपौल, ने इस आवश्यक प्रावधान की पूरी तरह अनदेखी की और सीधे जब्ती का आदेश दिया। यह कानून की गंभीर त्रुटि (gross error of law) थी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वाहन को लंबे समय तक खुले में खड़ा रखने से कोई फायदा नहीं है। इससे वाहन केवल खराब होगा और दोनों पक्षों को नुकसान होगा।
कोर्ट का अंतिम आदेश
- हाईकोर्ट ने 03.12.2020 को पारित जब्ती आदेश को रद्द (quash) कर दिया।
- पूरा मामला फिर से ज़िला पदाधिकारी, सुपौल, को भेजा गया ताकि वह चार हफ्तों के भीतर नया आदेश पारित करें।
- इस बार ज़िला पदाधिकारी को याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार जुर्माना भरने का विकल्प देना अनिवार्य होगा।
अंततः, याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार कर ली गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला खासतौर पर छोटे वाहन मालिकों, परिवहन व्यवसायियों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण है।
- वाहन मालिकों के लिए:
- अब यह स्पष्ट हो गया कि यदि वाहन किराए पर चलता है, तो ज़ब्ती के बजाय जुर्माना अदा करने का अधिकार वाहन मालिक का है।
- सीधी ज़ब्ती की कार्रवाई को कोर्ट अवैध मान सकता है।
- प्रशासन और अधिकारियों के लिए:
- ज़िला पदाधिकारी और पुलिस को याद रखना होगा कि वे कानून की प्रक्रियाओं का पालन करें।
- धारा 6-A(1) का दूसरा प्रावधान अनिवार्य है, विवेकाधीन नहीं।
- आम जनता के लिए:
- यह फैसला उन गरीब और मध्यमवर्गीय वाहन मालिकों के लिए राहत है जिनकी रोज़ी-रोटी व्यावसायिक वाहनों पर निर्भर करती है।
- यह निर्णय संतुलन बनाता है—एक तरफ़ कानून तोड़ने वालों पर कार्रवाई और दूसरी ओर निर्दोष मालिकों की संपत्ति की रक्षा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या ज़िला पदाधिकारी किराए के वाहन को बिना विकल्प दिए सीधे ज़ब्त कर सकते हैं?
❌ नहीं। कानून कहता है कि मालिक को जुर्माना भरने का विकल्प देना अनिवार्य है। - क्या वाहन को लंबे समय तक ज़ब्त रखकर खुले स्थान पर रखना उचित है?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि इससे वाहन खराब होगा और किसी को कोई फायदा नहीं होगा। - क्या याचिका इसलिए खारिज होनी चाहिए थी क्योंकि अपील का विकल्प मौजूद था?
❌ नहीं। जब आदेश कानून के विपरीत पारित किया गया हो, तो हाईकोर्ट सीधे हस्तक्षेप कर सकता है।
मामले का शीर्षक
Raj Kumar Ram @ Raj Kumar बनाम The State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 433 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 204
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री कुमार गौतम, अधिवक्ता
- प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री ए.जी., अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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