पटना उच्च न्यायालय ने विभागीय कार्रवाई को प्रक्रिया की त्रुटियों के कारण रद्द किया

पटना उच्च न्यायालय ने विभागीय कार्रवाई को प्रक्रिया की त्रुटियों के कारण रद्द किया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने एक सरकारी कर्मचारी पर की गई विभागीय कार्रवाई को खारिज कर दिया। यह कर्मचारी सहायक ऑडिट अधिकारी के पद पर कार्यरत था और उस पर अनुशासनहीनता के आरोप लगाकर तीन वर्षों के लिए वेतन में एक स्तर की कटौती की गई थी। इसके कारण उसे भविष्य में मिलने वाली वेतनवृद्धि से भी वंचित कर दिया गया।

यह कार्रवाई 08.08.2013 को निलंबन से शुरू हुई और 24.10.2013 को केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली, 1965 की धारा 14 के अंतर्गत आरोपपत्र जारी किया गया। कर्मचारी ने सभी सात आरोपों से इनकार किया। उसी दिन उसका निलंबन वापस ले लिया गया।

इसके बाद विभागीय अधिकारी ने नियम 18 के अंतर्गत यह तय किया कि इस अधिकारी के साथ दो अन्य अधिकारियों के खिलाफ संयुक्त जांच की जाएगी। लेकिन जांच अधिकारी ने इस आदेश की अवहेलना करते हुए अलग-अलग व्यक्तिगत जांच की।

बाद में जांच अधिकारी ने छह आरोपों को आंशिक रूप से सही और एक को असिद्ध बताया। विभागीय अधिकारी ने इससे असहमति जताई और सीधे दंडात्मक आदेश पारित कर दिया। जब यह निर्णय कर्मचारी के विरुद्ध आया, तो उसने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), पटना में अपील की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद कर्मचारी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जब विभागीय अधिकारी ने संयुक्त जांच का आदेश पारित किया था, तो जांच अधिकारी उस आदेश का पालन करने को बाध्य था। जब तक वह आदेश औपचारिक रूप से रद्द न किया जाए, तब तक व्यक्तिगत जांच करना नियमों का उल्लंघन है।

इसके अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण खामियां भी पाई गईं:

  • 26 दस्तावेज़ों के होने के बावजूद गवाहों की सूची “शून्य” दर्शाई गई।
  • दस्तावेज़ों की पुष्टि करने के लिए किसी लेखक या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
  • विभागीय अधिकारी ने जब जांच रिपोर्ट से असहमति जताई, तो नियम 15 के अनुसार उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

इसलिए उच्च न्यायालय ने न केवल दंडादेश, बल्कि अपीलीय आदेश और CAT का निर्णय भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रक्रिया को उस चरण से दोबारा शुरू किया जाए जहाँ गलती हुई थी — अर्थात गवाहों की सूची दी जाए और जांच प्रक्रिया 6 महीनों में पूरी की जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय दर्शाता है कि किसी भी सरकारी जांच प्रक्रिया में नियमों का पालन अनिवार्य है। भले ही किसी कर्मचारी पर आरोप हों, यदि जांच प्रक्रिया में कानूनी प्रक्रियाएं पूरी नहीं होतीं, तो पूरी कार्रवाई अमान्य हो सकती है।

सरकारी विभागों के लिए यह एक चेतावनी है कि वे CCS Rules, 1965 के नियम 14, 15 और 18 का कड़ाई से पालन करें। कर्मचारियों के लिए यह निर्णय आश्वस्त करता है कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई और न्यायसंगत प्रक्रिया का अधिकार है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या जांच अधिकारी संयुक्त जांच के आदेश की अनदेखी कर सकता है?
    → नहीं, आदेश होने पर संयुक्त जांच अनिवार्य थी।
  • क्या आरोप पत्र में नियम 14(4) का उल्लंघन हुआ?
    → हाँ, गवाहों की सूची दिए बिना दस्तावेज़ प्रस्तुत करना त्रुटिपूर्ण था।
  • क्या नियम 15 का पालन किया गया जब रिपोर्ट से असहमति जताई गई?
    → नहीं, उचित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ।
  • क्या CAT ने याचिका गलत तरीके से खारिज की?
    → हाँ, उसने प्रक्रिया की त्रुटियों की अनदेखी की।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • S.C. Girotra vs. United Commercial Bank (UCO Bank), 1995 Supp. (3) SCC 212

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • S.C. Girotra vs. United Commercial Bank (UCO Bank), 1995 Supp. (3) SCC 212

मामले का शीर्षक
Vikash Kumar vs. Union of India & Others

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 5306 of 2020

उद्धरण (Citation)
2023 (1) PLJR 582

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रॉय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री कुमार कौशिक, श्रीमती नम्रता दुबे, श्री पुष्कर भारद्वाज
  • प्रतिवादियों की ओर से: श्री अरुण कुमार अरुण

निर्णय का लिंक
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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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