पटना हाई कोर्ट ने ज़मीन विवाद में दर्ज आपराधिक मुकदमा रद्द किया, कहा – वैध कब्जाधारी के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता

पटना हाई कोर्ट ने ज़मीन विवाद में दर्ज आपराधिक मुकदमा रद्द किया, कहा – वैध कब्जाधारी के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक 13 साल पुराने आपराधिक मामले को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह याचिकाकर्ता को परेशान करने के उद्देश्य से दायर किया गया था, जबकि ज़मीन पर वैध अधिकार पटना डायोसीज़न कॉरपोरेशन (Patna Diocesan Corporation) का था।

मामला भोजपुर ज़िले से जुड़ा है, जहां शिकायतकर्ता के पिता ने 2006 में एक धार्मिक पदाधिकारी (पादरी) के खिलाफ आरोप लगाया था कि उन्होंने पुलिस की मदद से उनके खेत को जबरन जोता और ₹15,000 की फसल क्षति पहुंचाई। आरोप भारतीय दंड संहिता की धाराओं 147, 148, 447, 427/149 के तहत लगाए गए थे।

लेकिन कोर्ट के सामने पेश दस्तावेज़ों से यह स्पष्ट हुआ कि विवादित ज़मीन (खाता संख्या 1282, 1283, 1284) वर्ष 1942 और 1944 में ही रजिस्ट्री के माध्यम से कॉरपोरेशन को बेची जा चुकी थी। इसके आधार पर कॉरपोरेशन दशकों से वैध कब्जे में थी।

1986 में एसडीएम आरा ने भी अपने आदेश में पुष्टि की थी कि जमीन पर कब्जा कॉरपोरेशन का है। यह आदेश आज तक किसी अदालत द्वारा खारिज नहीं किया गया। इसके विपरीत, जो व्यक्ति ज़मीन पर अधिकार का दावा कर रहे थे, वे इसके खिलाफ कोई वैधानिक आदेश नहीं ला पाए।

कोर्ट ने यह माना कि इस तरह के आरोप — जिसमें कोई व्यक्ति अपनी वैध ज़मीन जोत रहा हो — उस पर आपराधिक आरोप नहीं लगाए जा सकते, खासकर जब पुलिस की मौजूदगी में किया गया हो।

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी पाया कि शिकायत सिर्फ ज़मीन पर दवाब बनाने और प्रतिशोध के लिए की गई थी। यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। सुप्रीम कोर्ट के भजनलाल केस (1992) और एल. मुनीस्वामी केस (1977) में तय दिशानिर्देशों के आधार पर कोर्ट ने इस मामले को “स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण और उत्पीड़नात्मक” करार दिया।

अंततः, कोर्ट ने न सिर्फ प्राथमिकी बल्कि संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय उन सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो वैध दस्तावेज़ और कब्जे के बावजूद आपराधिक मामलों में फंसाए जाते हैं। ज़मीन विवादों का समाधान दीवानी (civil) प्रक्रिया के माध्यम से होना चाहिए, न कि झूठे आपराधिक आरोपों से।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई वैध आदेश नहीं होता, उसकी ज़मीन पर उसका अधिकार और कब्जा बना रहता है, और वह कानूनी रूप से ज़मीन जोत सकता है। साथ ही, पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे वैध कब्जाधारियों को सुरक्षा दे।

यह निर्णय भूमि विवादों में न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सशक्त मार्गदर्शन है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • मुद्दा: क्या वैध कब्जाधारी पर आपराधिक मामला बनता है यदि वह अपनी ज़मीन पर हल चलाता है?
    • निर्णय: नहीं, वैध दस्तावेज़ और कब्जा होने पर ऐसा कोई अपराध नहीं बनता।
  • मुद्दा: क्या शिकायतकर्ता की शिकायत ईमानदार थी?
    • निर्णय: नहीं, यह दुर्भावना और प्रतिशोध से प्रेरित थी।
  • मुद्दा: क्या हाई कोर्ट को ऐसे मामलों में दखल देना चाहिए?
    • निर्णय: हां, जब न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा हो।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Haryana v. Bhajan Lal, 1992 Supp (1) SCC 335
  • State of Karnataka v. L. Muniswamy, (1977) 2 SCC 699

मामले का शीर्षक
Fr. Joseph Pulickal vs. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 21579 of 2014

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 509

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री के. एम. जोसेफ और श्री बेंजामिन लकड़ा (याचिकाकर्ता की ओर से)
  • श्री मदनजीत कुमार (शिकायतकर्ता की ओर से)
  • श्री झारखंडी उपाध्याय एवं श्री नागेन्द्र प्रसाद, A.P.P. (राज्य की ओर से)

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMyMTU3OSMyMDE0IzEjTg==-smDE–am1–JHw6xs=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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