पेंशन रोकने का आदेश पटना हाई कोर्ट ने रद्द किया – सेवानिवृत्त कर्मचारी को राहत

पेंशन रोकने का आदेश पटना हाई कोर्ट ने रद्द किया – सेवानिवृत्त कर्मचारी को राहत

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने अपने इस फैसले में बिहार राज्य विद्युत (होल्डिंग) कंपनी लिमिटेड के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी को “शून्य पेंशन” देने और निलंबन अवधि में सिर्फ निर्वाह भत्ता देने के आदेश को अवैध करार दिया है।

इस मामले की शुरुआत 2008 में उस समय हुई जब कर्मचारी पर ₹10,000 की रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने का आरोप लगा। इसके बाद विभागीय जांच शुरू हुई और जांच पदाधिकारी ने 2010 में अपनी रिपोर्ट देकर कहा कि आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। लेकिन 2014 में विभागीय प्राधिकरण ने इस रिपोर्ट से असहमति जताते हुए एक नया कारण बताओ नोटिस जारी किया और फिर दंड के रूप में शून्य पेंशन का आदेश पारित कर दिया।

न्यायालय ने पाया कि विभागीय प्राधिकरण ने अपने निर्णय में जो सबूत इस्तेमाल किए, वे आपराधिक मामले की जांच के दस्तावेज थे – जैसे पोस्ट ट्रैप मेमो और दो गवाहों के लिखित बयान। इन गवाहों को जांच अधिकारी के सामने पेश नहीं किया गया था, और याची को उन्हें जिरह करने का मौका भी नहीं मिला था। इसलिए, नियम 18(14) के अनुसार ऐसे सबूतों को वैध नहीं माना जा सकता।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विभागीय अधिकारी तभी जांच रिपोर्ट से असहमति जता सकता है जब उसके पास वैध, प्रमाणिक और विधिसम्मत सबूत हो। केवल आपराधिक जांच के दस्तावेजों के आधार पर सजा देना कानून सम्मत नहीं है। इसलिए अदालत ने पाया कि दूसरा कारण बताओ नोटिस और दंड आदेश पूरी तरह से अवैध थे।

अंततः, न्यायालय ने 03.07.2014 का सजा आदेश रद्द कर दिया और याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही यह भी कहा कि यदि विभाग चाहे तो जांच अधिकारी की मूल रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई कानून के अनुसार कर सकता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन देने से पहले किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। कोर्ट ने दोहराया कि बिना क्रॉस एग्जामिनेशन और वैध साक्ष्यों के किसी कर्मचारी को दंडित नहीं किया जा सकता। यह निर्णय कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है और प्रशासन को कानूनी मर्यादाओं में कार्य करने की याद दिलाता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या शून्य पेंशन देने का आदेश वैध था?
    – नहीं, क्योंकि यह अवैध साक्ष्य और गलत प्रक्रिया पर आधारित था।
  • क्या विभागीय अधिकारी जांच अधिकारी की रिपोर्ट से असहमति जता सकता है बिना पर्याप्त कानूनी कारणों के?
    – नहीं, असहमति वैध और विधिसम्मत साक्ष्य पर आधारित होनी चाहिए।
  • क्या आपराधिक जांच के दस्तावेज विभागीय कार्रवाई में सजा देने के लिए पर्याप्त हैं?
    – नहीं, जब तक वे उचित प्रक्रिया से न गुजरे हों।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
Roop Singh Negi बनाम Punjab National Bank & Ors., (2009) 2 SCC 570

मामले का शीर्षक
Ashok Kumar Kashyap बनाम Bihar State Power (Holding) Company Ltd. एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 12831 of 2014

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 98

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री शिवेन्द्र किशोर, वरिष्ठ अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री विनय कीर्ति सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता (सह श्री विजय कुमार वर्मा, अखिलेश्वर सिंह) – प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI4MzEjMjAxNCMxI04=-hUngDOpK4cI=

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Aditya Kumar

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