पटना हाई कोर्ट ने सिलीका बालू पट्टा रद्द करने को सही ठहराया

पटना हाई कोर्ट ने सिलीका बालू पट्टा रद्द करने को सही ठहराया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में एक मजदूर सहकारी समिति ने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता को पहले बिहार सरकार से 20 वर्षों के लिए सिलीका बालू (Silica Sand) खनन पट्टा मिला था, जो 1994 से 2014 तक वैध था। यह बालू मुख्य रूप से कांच, सेरामिक और मिट्टी के बर्तनों के उद्योगों में उपयोग होता है।

समिति ने 2013 में समय रहते पट्टे के नवीकरण के लिए आवेदन दिया। लेकिन 2015 में केंद्र सरकार ने एक गजट अधिसूचना जारी की, जिसमें सिलीका बालू को “मेजर मिनरल” (Major Mineral) की श्रेणी से हटाकर “माइनर मिनरल” (Minor Mineral) घोषित कर दिया गया।

समिति का तर्क था कि जब उसने आवेदन दिया था, तब यह मेजर मिनरल था, और कानून में हुए संशोधन के अनुसार पुराने पट्टों को स्वतः 50 वर्षों के लिए बढ़ा दिया जाना चाहिए। वहीं राज्य सरकार का कहना था कि समिति ने नवीकरण के लिए जरूरी दस्तावेज समय पर नहीं दिए, और उसका पट्टा पहले ही 2014 में समाप्त हो चुका था।

कोर्ट ने राज्य सरकार के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि पट्टा नवीकरण की प्रक्रिया अधूरी थी और सिलीका बालू अब माइनर मिनरल घोषित हो चुका है, इसलिए अब इसे बिहार माइनर मिनरल नियमों के अंतर्गत ही नियंत्रित किया जाएगा। इसलिए पट्टे का स्वतः विस्तार संभव नहीं है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि खनन पट्टा केवल इस आधार पर नहीं बढ़ाया जा सकता कि पुराना नियम लागू था। यदि जरूरी दस्तावेज समय पर नहीं दिए जाते, तो पट्टा स्वतः समाप्त हो सकता है। यह फैसला राज्य सरकारों को यह अधिकार देता है कि वे नियमों के तहत उचित कार्रवाई कर सकें। साथ ही, यह खनन क्षेत्र में पारदर्शिता और अनुशासन को भी बढ़ावा देता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या 1994 में दिया गया खनन पट्टा कानून संशोधन के कारण 50 वर्षों के लिए स्वतः बढ़ गया?
    ❌ नहीं, क्योंकि जरूरी दस्तावेज समय पर जमा नहीं किए गए।
  • क्या केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद भी पुराना पट्टा मान्य है?
    ❌ नहीं, क्योंकि अधिसूचना के बाद सिलीका बालू माइनर मिनरल बन चुका है।
  • क्या राज्य सरकार द्वारा नवीकरण अस्वीकृत करना वैध था?
    ✅ हाँ, कोर्ट ने उसे वैध ठहराया।

मामले का शीर्षक

M/s Dehri-On-Sone Labourers Cooperative Society Ltd. बनाम भारत संघ एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No.16000 of 2016

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 55

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति संजय प्रिया

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री धनंजय कुमार
  • खान विभाग की ओर से: श्री नरेश दीक्षित (विशेष लोक अभियोजक), श्री सुमित शेखर पांडे (सहायक अधिवक्ता)
  • राज्य सरकार की ओर से: श्री कौशल कुमार झा (AAG-8)

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTYwMDAjMjAxNiMxI04=-Ws–ak1–bpD72KXI=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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