निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में सर्विस टैक्स की मांग और उससे जुड़ी कार्यवाही को रद्द कर दिया, क्योंकि टैक्स विभाग ने निर्धारित समय सीमा से बहुत अधिक देरी की। यह विवाद वित्तीय वर्ष 2015–2016 और 2016–2017 के लिए कथित सर्विस टैक्स चोरी से संबंधित था।
टैक्स विभाग ने 21 दिसंबर 2020 को वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 73 के तहत पहला नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के बाद विभाग ने करीब तीन साल तक कोई कार्रवाई नहीं की। फिर 18 जनवरी 2024 को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए नोटिस भेजा, जिसमें सुनवाई की तारीख 1 फरवरी 2024 तय की गई।
पक्षकार ने सुनवाई में हिस्सा लिया और 31 जनवरी 2024 को अपना जवाब दाखिल किया। इसके बाद 23 अगस्त 2024 को विभाग ने एक आदेश पारित कर ₹3,69,973 सर्विस टैक्स के साथ ब्याज और जुर्माना लगाने का निर्देश दिया। इस आदेश में यह तथ्य नज़रअंदाज़ किया गया कि पक्षकार पहले ही काफी राशि जमा कर चुका था—₹2,55,715 (फरवरी 2021) और ₹93,606 (मार्च 2020)। इस तरह असल विवादित राशि केवल ₹20,652 थी।
पक्षकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी कि यह अंतिम आदेश समय सीमा से बाहर पारित हुआ है, इसलिए यह अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उन्होंने जमा की गई राशि की वापसी की भी मांग की।
सरकार की ओर से कहा गया कि देरी का कारण आंशिक रूप से पक्षकार का सहयोग न करना और जानकारी छुपाना था, और आंशिक कारण COVID-19 महामारी भी थी। उन्होंने कहा कि महामारी की अवधि को समय सीमा से बाहर रखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने माना कि COVID-19 के कारण कुछ देरी उचित हो सकती है, लेकिन यह छूट केवल 28 फरवरी 2022 तक ही लागू थी, जैसा कि पहले के फैसलों में कहा गया है। जबकि विभाग ने 18 जनवरी 2024 को कार्रवाई शुरू की, यानी COVID छूट के बाद भी लगभग 1 साल 11 महीने की देरी हुई, जो बिना किसी उचित कारण के थी।
कोर्ट ने एम/एस कनक ऑटोमोबाइल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ (CWJC No. 18398 of 2023) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इसी तरह की देरी पहले भी अस्वीकार्य मानी गई है।
इस आधार पर कोर्ट ने 17 दिसंबर 2020 के डिमांड-कम-शो कॉज नोटिस और 23 अगस्त 2024 के अंतिम आदेश को रद्द कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला दिखाता है कि टैक्स कार्यवाही में समय सीमा का पालन कितना ज़रूरी है। एक बार नोटिस जारी होने के बाद विभाग अनिश्चित काल तक कार्रवाई टाल नहीं सकता, चाहे COVID जैसी विशेष परिस्थितियाँ ही क्यों न हों।
आम करदाताओं के लिए यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि अगर विभाग बहुत अधिक देरी करता है, तो कर मांग को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
सरकार के लिए यह चेतावनी है कि समय सीमा का पालन न करने से राजस्व का नुकसान हो सकता है। साथ ही, यह फैसला COVID-19 के कारण दी जाने वाली समय छूट की सीमा को स्पष्ट करता है, जो देशभर में लंबित मामलों को प्रभावित कर सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या नोटिस के बाद टैक्स कार्यवाही में हुई देरी उचित थी?
- कोर्ट ने कहा कि COVID-19 छूट के बाद की देरी अनुचित थी।
- क्या आदेश और नोटिस वैध थे?
- कोर्ट ने दोनों को अधिकार क्षेत्र से बाहर मानते हुए रद्द कर दिया।
- पूर्व के फैसलों का लागू होना:
- कोर्ट ने कनक ऑटोमोबाइल्स केस का हवाला देकर समान सिद्धांत लागू किया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- एम/एस कनक ऑटोमोबाइल्स प्रा. लि. बनाम भारत संघ एवं अन्य, CWJC No. 18398 of 2023।
मामले का शीर्षक
M/s Sanjeev Shanker Urmila and Co. बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 18635 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय न्यायमूर्ति एस. बी. पी. डी. सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री वैभव वीर शंकर, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, एएसजी; श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST एवं CX
निर्णय का लिंक
86ce2c58-4e0f-4e6b-a6c9-ff6d58303af6.pdf
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।