न्याय का उजाला: हिरासत की अंधेरी गलियों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मशाल — दीपक धनुक मामले में पटना उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

न्याय का उजाला: हिरासत की अंधेरी गलियों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मशाल — दीपक धनुक मामले में पटना उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

पटना उच्च न्यायालय के समक्ष “दीपक धनुक बनाम भारत संघ व अन्य” (Cr. WJC No. 650 of 2024) में एक महत्वपूर्ण निर्णय सामने आया, जिसमें अदालत ने “नशीली दवाओं और मादक पदार्थों की अवैध तस्करी की रोकथाम अधिनियम, 1988” (PITNDPS Act) के तहत हुई एक हिरासत को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया। यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रक्रियात्मक न्याय और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक अहम मिसाल बनकर उभरा है।

पृष्ठभूमि

दीपक धनुक के खिलाफ एनसीबी द्वारा दो अलग-अलग मामलों में आरोप लगाए गए थे—पहला 2021 में 315 ग्राम अल्प्राजोलम, 270 ग्राम मॉर्फिन और 500 ग्राम अन्य पदार्थ की बरामदगी से जुड़ा था और दूसरा 2022 में 380 ग्राम हेरोइन की जब्ती से। इन मामलों में उनकी संलिप्तता केवल सह-आरोपियों के बयान पर आधारित थी। बाद में उन्हें भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले (शाहपुर पी.एस. केस नं. 448/2023) में भी गिरफ्तार किया गया।

हालांकि, इन सभी मामलों में दीपक को नियमित ज़मानत मिल चुकी थी। इसके बावजूद केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव ने 01 सितंबर 2023 को PITNDPS अधिनियम की धारा 3(1) के तहत उनके खिलाफ हिरासत का आदेश जारी किया और बाद में 01 जनवरी 2024 को इसे एक वर्ष के लिए पुष्ट कर दिया गया।

याचिकाकर्ता की दलीलें

दीपक के वकीलों ने कई बिंदुओं पर हिरासत को असंवैधानिक ठहराया:

  1. देर से सूचना देना: हिरासत का आदेश 01.09.2023 को जारी हुआ लेकिन यह आदेश 17.10.2023 को दिया गया—यानी 46 दिनों की देरी। PITNDPS अधिनियम में अधिकतम 15 दिन की समयसीमा तय है, जो यहां उल्लंघन हुआ।

  2. भाषा का उल्लंघन: दीपक केवल हिंदी पढ़ सकते हैं, पर हिरासत आदेश, उसके आधार और संबंधित दस्तावेज़ अंग्रेज़ी में थे। कुछ दस्तावेज़ों का अनुवाद किया गया था, पर कई अहम दस्तावेज़ जैसे केमिकल विश्लेषण रिपोर्ट, एफआईआर, शिकायत आदि हिंदी में नहीं दिए गए। यह संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत “उचित अवसर” के सिद्धांत का उल्लंघन है।

  3. प्रस्ताव और साक्ष्य का अभाव: हिरासत का कोई “जीवंत और निकटतम संबंध” (live and proximate link) प्रदर्शित नहीं किया गया कि ज़मानत पर बाहर आने के बाद भी दीपक किसी अवैध गतिविधि में लिप्त रहे।

  4. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन: दीपक की पत्नी ने जो प्रतिनिधित्व भेजा था, उसे बिना तर्कपूर्ण तरीके से नकार दिया गया। प्रतिनिधित्व को Advisory Board के समक्ष प्रस्तुत भी नहीं किया गया, और उसका कोई उल्लेख या विचार नहीं किया गया।

  5. Advisory Board की भूमिका का सवाल: Advisory Board द्वारा दिनांक 22.12.2023 को जो राय दी गई, वह पूरी तरह से “नॉन-स्पीकिंग” थी—इसमें न तो किसी तर्क का उल्लेख था और न ही याचिकाकर्ता की पत्नी के पत्र का। इस प्रकार यह राय न्यायिक समीक्षा के मानकों पर खरी नहीं उतरती।

प्रतिवादी की दलीलें

संघ सरकार ने तर्क दिया कि हिरासत आदेश उचित प्रक्रिया का पालन करके दिया गया और दीपक को आवश्यक दस्तावेज़ मौखिक रूप से समझाए गए। साथ ही यह भी कहा गया कि Advisory Board द्वारा हिरासत की पुष्टि उचित आधार पर की गई।

न्यायालय का निर्णय

माननीय न्यायमूर्तियों पी. बी. बजंथरी और आलोक कुमार पांडेय की पीठ ने याचिकाकर्ता की सभी प्रमुख आपत्तियों को स्वीकार करते हुए हिरासत आदेश को रद्द कर दिया। उनका कहना था:

  • विलंब स्पष्ट रूप से अवैध था: 46 दिनों की देरी बिना कोई कारण बताए की गई, जो PITNDPS अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है।

  • दस्तावेज़ों का हिंदी में अनुवाद नहीं होना गंभीर चूक है, विशेषकर तब जब हिरासत की वैधता व्यक्ति की आज़ादी को सीधे प्रभावित करती है।

  • Advisory Board की राय कारणहीन थी और यह एक “quasi-judicial” निकाय होने के बावजूद, अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं निभा पाई।

  • प्रतिनिधित्व को विचार में नहीं लेना संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है, जो किसी भी हिरासत को निष्प्रभावी बना देता है।

निष्कर्ष

यह निर्णय भारतीय संविधान में निहित व्यक्ति की स्वतंत्रता और राज्य की निरंकुशता के खिलाफ एक संतुलन कायम करने के प्रयासों का उत्कृष्ट उदाहरण है। पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि “रोकथाम हिरासत” एक असाधारण शक्ति है, जिसे केवल तब ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए जब कानूनी प्रक्रियाओं और न्याय के सिद्धांतों का पूरी तरह से पालन हुआ हो।

इस फैसले से यह संदेश जाता है कि एक साधारण व्यक्ति, भले ही कम पढ़ा-लिखा हो, अपनी संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर सकता है और न्यायपालिका उसे सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

 संपूर्ण फैसला नीचे पढ़ें

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