पटना हाईकोर्ट ने गलत तरीके से जब्त ट्रक को छोड़ने का आदेश दिया — वन विभाग की कार्रवाई को माना अवैध

पटना हाईकोर्ट ने गलत तरीके से जब्त ट्रक को छोड़ने का आदेश दिया – वन विभाग की कार्रवाई को माना अवैध

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में राज्य के वन विभाग द्वारा ट्रक जब्त करने और उसे लंबे समय तक बिना किसी कानूनी निर्णय के रोके रखने को अवैध करार दिया। कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रक से जुड़ी वैधता की जांच पूरी नहीं होती और जब्ती की प्रक्रिया समाप्त नहीं होती, तब तक वाहन को इस तरह से रोक कर रखना न्यायसंगत नहीं है।

यह मामला सोनू कुमार चौरसिया नामक व्यक्ति का था, जिनका ट्रक मई 2016 में रोहतास जिले के वन अधिकारियों ने यह कहकर जब्त कर लिया कि उसमें अवैध रूप से खनन की गई पत्थर की चिप्स लदी थी, जो आरक्षित वन क्षेत्र से लाई गई थी। ट्रक मालिक ने तुरंत इसका विरोध करते हुए एक वैध चालान प्रस्तुत किया और बताया कि माल वैध रूप से खरीदा गया था।

इसके बावजूद वन विभाग ने ट्रक को जब्त रखा और “जप्ती मामला संख्या 135/2016” शुरू कर दिया, लेकिन तीन साल बाद भी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया। इसके बीच, हाईकोर्ट ने एक अन्य याचिका (CWJC No. 12062/2016) में वन विभाग को निर्देश दिया था कि ट्रक के अस्थायी रूप से रिहाई पर विचार करें। बावजूद इसके, विभाग ने बिना उचित जांच किए 16 सितंबर 2016 को ट्रक छोड़ने से मना कर दिया।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ट्रक खुले आसमान के नीचे खड़ा है और उसकी स्थिति खराब होती जा रही है, जिससे आर्थिक नुकसान हो रहा है। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि ट्रक में आरक्षित वन क्षेत्र से खनन की गई सामग्री थी, जो कानून का उल्लंघन है।

पटना हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा:

  • वन अधिकारी ने चालान की वैधता की जांच नहीं की।
  • यह स्पष्ट नहीं किया गया कि माल वास्तव में आरक्षित क्षेत्र से निकाला गया था या नहीं।
  • जब्ती की कार्यवाही तीन साल से लंबित है, जो न्याय में देरी है।
  • बिहार लघु खनिज रियायत नियमावली, 1972 की धारा 40(2) के तहत खनन से संबंधित अलग कार्रवाई होनी चाहिए।

इसलिए, हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि:

  • याचिकाकर्ता का ट्रक एक सप्ताह के अंदर वापस किया जाए।
  • ट्रक के मालिकाना दस्तावेजों की जांच की जाए।
  • याचिकाकर्ता एक हलफनामा दे कि वह वाहन को अदालत या वन विभाग की जरूरत पर प्रस्तुत करेगा और तब तक नहीं बेचेगा जब तक मामला लंबित है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है, जिसमें सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई अनुचित और बिना जाँच की गई कार्यवाही को न्यायालय ने खारिज किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि कानून का पालन करते हुए जब्ती की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए, न कि केवल शक के आधार पर।

बिहार में ट्रांसपोर्ट और खनन से जुड़े लोगों को इससे यह संदेश मिलता है कि यदि उनके पास वैध दस्तावेज हों, तो वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

साथ ही यह फैसला सरकारी अधिकारियों को यह याद दिलाता है कि जब्ती और सज़ा की कार्यवाही उचित प्रक्रिया और प्रमाणों के आधार पर ही की जानी चाहिए, अन्यथा वह न्यायालय में टिक नहीं पाएगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना पूरी जांच के ट्रक को जब्त रखना वैध था?
    ➤ नहीं। चालान की वैधता की जांच नहीं की गई और अंतिम आदेश नहीं दिया गया।
  • क्या वाहन छोड़ने से मना करना कानूनी रूप से सही था?
    ➤ नहीं। यह आदेश बिना प्रमाणिक मूल्यांकन के दिया गया, अतः अवैध है।
  • क्या जब्ती प्रक्रिया की देरी से याचिकाकर्ता को राहत मिल सकती है?
    ➤ हाँ। लंबित कार्यवाही न्याय में देरी के समान है।
  • क्या हाईकोर्ट ट्रक को अस्थायी रूप से रिहा करने का आदेश दे सकती है?
    ➤ हाँ। यदि राज्य प्रक्रिया का पालन नहीं करता है, तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।

मामले का शीर्षक
सोनू कुमार चौरसिया बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4027 of 2017

उद्धरण (Citation)
2020 (2) PLJR 926

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति संजय प्रिया

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री उमाशंकर सिंह – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री रघुनंदन – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNDAyNyMyMDE3IzEjTg==-8nvt–ak1–BNzxZo=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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