कामगार कर्मचारी की विधवा को पारिवारिक पेंशन का अधिकार: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

कामगार कर्मचारी की विधवा को पारिवारिक पेंशन का अधिकार: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में बिहार सरकार की अपील को खारिज करते हुए एक दिवंगत कामगार (work-charged) कर्मचारी की पत्नी को पारिवारिक पेंशन देने का आदेश बरकरार रखा। यह फैसला उस स्थिति में आया जब मृतक कर्मचारी ने लगभग 22 वर्षों तक लगातार सेवा दी थी, भले ही उसे औपचारिक रूप से नियमित (permanent) नहीं किया गया था।

इस मामले में, याचिकाकर्ता का पति 1979 में एक अस्थायी क्लर्क के रूप में नियुक्त हुआ था और 1 दिसंबर 1981 से उसे ट्यूबवेल ऑपरेटर के रूप में कार्यभार सौंपा गया था। उसे “वर्क-चार्ज्ड” श्रेणी में रखा गया था, जिसमें कर्मचारियों को स्थायी सेवा लाभ नहीं मिलते। हालांकि, वह लगातार सेवा करता रहा और उसका सेवा-बुक 1986 में खोला गया। उसका निधन 16 अक्टूबर 2007 को हुआ।

राज्य सरकार का तर्क था कि मृतक ने केवल 5 वर्षों तक नियमित सेवा की, जबकि पारिवारिक पेंशन पाने के लिए 10 साल की नियमित सेवा जरूरी होती है। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वास्तविक सेवा अवधि 22 वर्षों की रही, और इस आधार पर विधवा को पारिवारिक पेंशन का पूरा हक है।

कोर्ट ने “मोबिना खातून बनाम बिहार राज्य” (2019) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई वर्क-चार्ज्ड कर्मचारी लगातार 10 वर्ष तक सेवा करता है, तो वह पेंशन और उसकी मृत्यु के बाद पारिवारिक पेंशन के योग्य होगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार के हजारों वर्क-चार्ज्ड कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए राहत भरी खबर है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि सेवा की निरंतरता को महत्व दिया जाएगा, न कि केवल औपचारिक स्थायित्व को। जो कर्मचारी वर्षों तक सरकार के लिए सेवा करते हैं, उन्हें और उनके परिवारों को पेंशन लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।

इससे राज्य सरकार की नीतियों पर भी असर पड़ सकता है, और भविष्य में वर्क-चार्ज्ड कर्मचारियों के अधिकारों को अधिक मान्यता मिल सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या 10 साल से अधिक सेवा देने वाले वर्क-चार्ज्ड कर्मचारी पेंशन के हकदार हैं?
    • हाँ, कोर्ट ने इसे मान्यता दी।
  • क्या केवल 5 साल की औपचारिक नियमित सेवा के आधार पर पेंशन रोकी जा सकती है?
    • नहीं, निरंतर सेवा को आधार मानते हुए कोर्ट ने इसे नकारा।
  • क्या मृतक की विधवा को पारिवारिक पेंशन मिलनी चाहिए?
    • हाँ, क्योंकि कर्मचारी ने 22 वर्षों तक सेवा दी थी।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Mobina Khatoon v. State of Bihar & Ors., 2019 (1) PLJR 1015

मामले का शीर्षक
The State of Bihar & Ors. v. Sushila Devi

केस नंबर
Letters Patent Appeal No.1586 of 2016 in CWJC No.11708 of 2008

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 180

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अनिल कुमार सिंह, जी.पी. 26 — अपीलकर्ता (राज्य) की ओर से
[प्रतिवादी की ओर से वकील का नाम नहीं दिया गया]

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxNTg2IzIwMTYjMSNO—am1—-am1–LbcWlY8o4=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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