"बलात्कार और POCSO के मामले में संदेह का लाभ: अदालत ने दी आरोपी को बरी करने की अनुमति"

 




भूमिका:

यह मामला एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और POCSO अधिनियम की धाराओं के तहत यौन उत्पीड़न का है, जिसमें निचली अदालत ने आरोपी को दोषी करार देते हुए दोहरी आजीवन कारावास की सजा दी थी। लेकिन अपीलीय अदालत (पटना उच्च न्यायालय) ने उस सजा को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सका कि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की थी और न ही यह कि आरोपी ने जबरदस्ती यौन संबंध स्थापित किए।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • मामला दर्ज होने की तिथि: 20 जुलाई 2019

  • प्राथमिकी (FIR) सं.: महिला थाना, जहानाबाद, कांड संख्या 46/2019

  • आरोप: IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 4

  • अदालती कार्यवाही: POCSO केस संख्या 50/2019

  • दोषसिद्धि की तिथि (ट्रायल कोर्ट): 29.11.2021

  • सजा सुनाए जाने की तिथि: 30.11.2021


अभियोजन पक्ष का पक्ष:

  • पीड़िता की माँ (PW-2) ने महिला थाना में लिखित आवेदन दिया कि उसकी 15 वर्षीय बेटी गर्भवती है।

  • जब उसने अपनी बेटी से पूछताछ की तो उसने बताया कि गाँव के ही सुबीर कुमार उर्फ छोटिया (आरोपी) ने बहला-फुसलाकर उसके साथ तालाब और पीपल के पेड़ के पास कई बार गलत कार्य किया।

  • पीड़िता का मेडिकल परीक्षण कराया गया, जिसमें यह पाया गया कि वह 27 सप्ताह और 4 दिन की गर्भवती थी।

  • मेडिकल रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पीड़िता का हाइमेन फटा हुआ था और उसके यौन संपर्क के प्रमाण मिले।

  • पीड़िता का बयान धारा 164 CrPC के अंतर्गत भी दर्ज किया गया जिसमें उसने आरोपी पर शारीरिक और मौखिक यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया।


अभियोजन पक्ष की गवाही:

  1. PW-1: पीड़िता स्वयं

  2. PW-2: पीड़िता की माँ

  3. PW-3 & PW-4: मेडिकल बोर्ड के डॉक्टर (डॉ. रेनू सिंह व डॉ. विनोद कुमार)

  4. PW-5: जांच अधिकारी

  5. PW-6: पीड़िता का पिता


महत्वपूर्ण दस्तावेजी साक्ष्य:

  • मेडिकल रिपोर्ट्स (Ext. 1-3)

  • पीड़िता का बयान (Ext. 8)

  • FIR और अन्य दस्तावेजी रिकॉर्ड


अपीलकर्ता (आरोपी) का पक्ष:

  • उम्र पर सवाल: अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता 18 साल से कम थी। उम्र का कोई ठोस प्रमाण – जैसे स्कूल का रिकॉर्ड, जन्म प्रमाणपत्र, हड्डी परीक्षण (ossification test) – नहीं दिया गया।

  • मेडिकल त्रुटियाँ: पीड़िता की उम्र निर्धारित करने की कोशिश नहीं की गई क्योंकि वह गर्भवती थी।

  • डीएनए टेस्ट नहीं हुआ: यह साबित नहीं किया गया कि बच्चा आरोपी का ही है।

  • स्वेच्छा से संबंध: पीड़िता ने खुद कबूल किया कि आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया, इसलिए केस दर्ज किया गया। इससे यह साबित होता है कि शारीरिक संबंध सहमति से थे।

  • गवाहों का विरोधाभास: PW-6 (पीड़िता का पिता) ने कहा कि आरोपी के परिवार से पुराना विवाद था और यह केस बदले की भावना से किया गया।

  • रक्षा पक्ष के गवाह: D.W.1 ने गवाही दी कि आरोपी दिल्ली में रह रहा था।


न्यायालय का विश्लेषण:

1. क्या पीड़िता नाबालिग थी?

  • FIR और माँ की गवाही के अनुसार, पीड़िता की उम्र 15 वर्ष बताई गई।

  • लेकिन पीड़िता ने खुद कोर्ट में कहा कि वह 16 वर्ष की थी (सन् 2021 में)।

  • उम्र का कोई आधिकारिक दस्तावेज या हड्डी परीक्षण नहीं प्रस्तुत किया गया।

  • कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि पीड़िता 18 वर्ष से कम है, तब तक POCSO अधिनियम लागू नहीं होता।

2. क्या बलात्कार हुआ?

  • मेडिकल रिपोर्ट में यह कहा गया कि यौन संपर्क हुआ, लेकिन कोई चोट नहीं थी, न ही स्पर्म मिला।

  • डॉक्टरों ने यह भी कहा कि यह जरूरी है कि डीएनए टेस्ट हो, लेकिन वह नहीं हुआ।

  • पीड़िता ने स्पष्ट रूप से तारीखें या घटनाओं का विवरण नहीं दिया।

  • उसका बयान विरोधाभासी था और स्वेच्छा से संबंध का संकेत देता है।

3. साक्ष्य की विश्वसनीयता:

  • कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की गवाही और साक्ष्य विश्वास के योग्य नहीं हैं।

  • पीड़िता का बयान अनिश्चित था, और कोई ठोस परिस्थिति साक्ष्य नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी ने जबरदस्ती की हो।

  • रक्षा पक्ष की दलीलें अधिक ठोस और भरोसेमंद प्रतीत हुईं।


न्यायालय का निष्कर्ष और आदेश:

  • अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता नाबालिग थी या बलात्कार हुआ।

  • आरोपी को संदेह का लाभ (benefit of doubt) दिया गया।

  • निचली अदालत का निर्णय (29.11.2021) और सजा आदेश (30.11.2021) रद्द कर दिए गए।

  • आरोपी सुबीर कुमार उर्फ छोटिया को दोषमुक्त कर जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया, यदि किसी अन्य मामले में गिरफ्तारी आवश्यक न हो।


निष्कर्ष:

यह मामला न्याय की उस बुनियादी अवधारणा को दर्शाता है कि “संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए”। बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में भी यदि अभियोजन पर्याप्त और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता, तो आरोपी को सजा नहीं दी जा सकती।

यह भी एक उदाहरण है कि कैसे POCSO जैसे कठोर कानूनों के तहत अभियोजन की जिम्मेदारी और अधिक होती है — विशेषकर पीड़िता की उम्र साबित करने की।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMxMDQjMjAyMiMxI04=-3loHu057IXM=