"प्रेम प्रसंग या अपराध? – नाबालिग के साथ बलात्कार के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को दी बरी"

 




भूमिका

यह केस "इंद्रजीत पासवान @ इंद्रजीत राय @ इंद्रजीत कुमार बनाम बिहार राज्य" (Criminal Appeal DB No. 212 of 2022) से संबंधित है, जो एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल आपराधिक मामला है। अभियुक्त को एक नाबालिग लड़की के अपहरण, बलात्कार और धमकी देने के आरोप में POCSO अधिनियम सहित भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। परंतु पटना उच्च न्यायालय ने इस अपील में पूरे मामले की समीक्षा कर अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।


मामले की पृष्ठभूमि

मामला बिहार के जहानाबाद ज़िले के बाराबर पर्यटक थाना क्षेत्र से जुड़ा है। 10 जून 2020 को पीड़िता के पिता ने पुलिस को एक लिखित शिकायत सौंपी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि अभियुक्त, जो उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था, ने उनकी नाबालिग बेटी का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया।

शिकायत के अनुसार:

  • 7 मई 2020 की रात लगभग 12 बजे जब पीड़िता शौच के लिए बाहर गई थी, अभियुक्त ने उसका मुंह दबाकर उसके साथ बलात्कार किया।

  • अगले दिन सुबह 3 बजे पीड़िता की माँ ने उसे अर्धनग्न अवस्था में देखा और शोर मचाया। पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए।

  • अभियुक्त भाग गया लेकिन उसका मोबाइल, शर्ट और चप्पल वहीं रह गया।

  • 8 जून 2020 को वह लड़की को बहला-फुसलाकर भगा ले गया।


अदालती कार्यवाही का संक्षेप

प्रारंभिक ट्रायल:

  • अभियोजन ने 9 गवाह प्रस्तुत किए, जिनमें पीड़िता और उसके माता-पिता भी शामिल थे।

  • अभियोजन ने अभियुक्त के खिलाफ IPC की धारा 363 (अपहरण), 365 (ग़लत तरीके से रोकना), 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी) और POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत चार्जशीट दायर की थी।

  • ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को इन सभी धाराओं में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।


अभियुक्त की अपील:

मुख्य तर्क:

  1. प्यार का रिश्ता: पीड़िता ने धारा 164 CrPC के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान में स्वीकार किया था कि उसका अभियुक्त से प्रेम संबंध था और वे आपसी सहमति से शारीरिक संबंध में थे।

  2. स्वेच्छा से घर छोड़ना: पीड़िता ने यह भी स्वीकार किया कि वह खुद अभियुक्त के साथ घर से भागी थी और शादी करना चाहती थी।

  3. चिकित्सा प्रमाण: मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था – न आंतरिक/बाहरी चोट, न गर्भावस्था, न ही वीर्य के निशान।

  4. FIR में देरी: पहली घटना 7 मई 2020 को हुई, जबकि FIR 10 जून 2020 को दर्ज हुई – इसमें एक महीने की देरी थी और कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।


अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  1. पीड़िता का बयान अविश्वसनीय: कोर्ट ने माना कि पीड़िता का मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान (164 CrPC) और कोर्ट में दिया गया गवाही (परीक्षा मुख्य एवं प्रतिपरीक्षा) परस्पर विरोधाभासी थे। यह साफ था कि पीड़िता ने शुरुआत में प्रेम संबंध स्वीकार किया था परंतु बाद में बलात्कार का आरोप लगाया।

  2. आयु का प्रमाण नहीं: पीड़िता की उम्र को प्रमाणित करने के लिए कोई दस्तावेज़ (जैसे जन्म प्रमाण पत्र या स्कूल प्रमाण पत्र) प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह साबित हो सके कि वह 18 साल से कम थी। POCSO अधिनियम तभी लागू होता है जब पीड़िता नाबालिग हो, अतः यह बिंदु अभियोजन पक्ष के खिलाफ गया।

  3. मेडिकल साक्ष्य अपर्याप्त: मेडिकल रिपोर्ट ने बलात्कार की पुष्टि नहीं की। डॉक्टर ने स्पष्ट किया कि पीड़िता "सेक्शुअली एक्टिव" थी और उसके शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे।

  4. विलंब और संदेह: कोर्ट ने माना कि घटना के तुरंत बाद पुलिस को सूचित नहीं करना, FIR में देरी और कथित घटना के समय कोई कानूनी कदम न उठाना पूरे मामले को संदेहास्पद बनाता है।


अंतिम निर्णय:

पटना हाई कोर्ट की खंडपीठ (न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह और न्यायमूर्ति गुनु अनुपमा चक्रवर्ती) ने 10 नवंबर 2023 को फैसला सुनाते हुए कहा कि:

  • अभियोजन पक्ष अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को “संदेह से परे” सिद्ध नहीं कर सका।

  • पीड़िता की गवाही विरोधाभासी और अविश्वसनीय रही।

  • मेडिकल साक्ष्य और अन्य दस्तावेज़ भी अभियोजन के दावे को सिद्ध करने में असमर्थ रहे।

इस आधार पर:

  • निचली अदालत का दोषसिद्धि और सजा का आदेश रद्द किया गया।

  • अभियुक्त इंद्रजीत पासवान को सभी आरोपों से बरी करते हुए तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।


न्यायिक महत्व और सामाजिक दृष्टिकोण:

यह फैसला बताता है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में अभियुक्त को संदेह का लाभ देने का सिद्धांत कितना महत्वपूर्ण है। किसी भी आपराधिक मामले में अभियोजन का यह दायित्व होता है कि वह साक्ष्य द्वारा बिना किसी संदेह के आरोपी का दोष साबित करे। साथ ही यह केस इस बात पर भी ध्यान खींचता है कि नाबालिग के साथ प्रेम संबंधों की सामाजिक और कानूनी पेचीदगियां कितनी जटिल हो सकती हैं।


निष्कर्ष

इस निर्णय में कोर्ट ने पीड़िता की बयानबाज़ी, परिस्थितिजन्य साक्ष्य और चिकित्सा रिपोर्ट को समग्र रूप से देखते हुए निष्कर्ष निकाला कि यह मामला "बलात्कार" की बजाय "आपसी सहमति पर आधारित प्रेम संबंध" का है। न्यायालय का यह निर्णय एक बार फिर से यह दर्शाता है कि केवल आरोप ही सजा के लिए पर्याप्त नहीं होते, बल्कि प्रमाण का मजबूत आधार ज़रूरी होता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMyMTIjMjAyMiMxI04=-mBEfb3d3is4=