"नाबालिग या व्यस्क? स्कूल प्रमाणपत्र पर उठा सवाल, लेकिन हाई कोर्ट ने माना आरोपी किशोर"

 


भूमिका

क्या एक हत्या के आरोपी को केवल स्कूल के सर्टिफिकेट के आधार पर नाबालिग माना जा सकता है? यदि स्कूल के रिकॉर्ड में कटिंग हो, तो क्या वह सर्टिफिकेट विश्वसनीय माना जाएगा? ऐसे कई जटिल कानूनी सवालों का सामना पटना हाई कोर्ट ने किया एक महत्वपूर्ण केस में, जहां अनिता देवी ने साहिल शर्मा को नाबालिग घोषित करने के आदेश को चुनौती दी। लेकिन अदालत ने उम्र निर्धारण के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर स्पष्ट और निर्णायक निर्णय दिया।


मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला कोपा थाना कांड संख्या 72/2022 से संबंधित है, जिसमें साहिल शर्मा को अमन शर्मा की हत्या के मामले में आरोपी बनाया गया था। उसे 03 मई 2022 को गिरफ्तार किया गया और किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board, Chapra) के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

साहिल शर्मा ने बोर्ड के समक्ष अपनी उम्र 16 वर्ष 4 महीने बताई, जिसे साबित करने के लिए उसने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा जारी प्राविजनल मैट्रिक सर्टिफिकेट और मार्कशीट प्रस्तुत की। इन दस्तावेज़ों में उसकी जन्मतिथि 02 जनवरी 2006 दर्ज थी।


याचिकाकर्ता की आपत्ति

अनिता देवी, जो मृतक अमन शर्मा की ओर से याचिकाकर्ता थीं, ने बोर्ड द्वारा दी गई नाबालिग की मान्यता को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनके अनुसार:

  • उन्होंने RTI (सूचना का अधिकार अधिनियम) के तहत उत्क्रमित मध्य विद्यालय, भटवालिया से साहिल शर्मा के प्रवेश रजिस्टर की प्रति प्राप्त की।

  • उस रजिस्टर में जन्मतिथि के कॉलम में कटिंग की गई थी, जिससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि जन्मतिथि में हेराफेरी की गई है।

  • उन्होंने तर्क दिया कि साहिल की वास्तविक जन्मतिथि वर्ष 2004 के आसपास होनी चाहिए, न कि 2006 की, जैसा कि प्रमाणपत्र में दर्ज है।

  • उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई अन्य छात्र जो उसी कक्षा में थे, वे उम्र में साहिल से छोटे थे।


न्यायालय में अभियुक्त पक्ष की दलीलें

साहिल शर्मा की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने अदालत में निम्नलिखित तर्क रखे:

  • जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 की धारा 94(2)(i) के अनुसार, स्कूल या बोर्ड द्वारा जारी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

  • साहिल शर्मा के प्रमाणपत्र वर्ष 2020 के हैं, यानी घटना की तिथि (2022) से दो वर्ष पूर्व जारी किए गए थे।

  • RTI से प्राप्त रजिस्टर में भले ही कुछ कटिंग हो, लेकिन उसमें दर्ज जन्मतिथि 02.01.2006 स्पष्ट और काउंटर-साइंड है।

  • याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई सटीक साक्ष्य नहीं है जिससे साहिल की उम्र को प्रमाणित रूप से अधिक सिद्ध किया जा सके।


हाई कोर्ट का विश्लेषण

माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने केस की गहराई से समीक्षा की और निष्कर्ष निकाला:

  1. मैट्रिक प्रमाणपत्र एक वैधानिक दस्तावेज है, जिसे तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जब तक उसके विपरीत स्पष्ट और निर्णायक साक्ष्य न हो।

  2. याचिकाकर्ता ने सिर्फ यह दिखाया कि एडमिशन रजिस्टर में कटिंग है, लेकिन यह नहीं बताया कि पहले कौन-सी जन्मतिथि दर्ज थी और उसमें क्या बदला गया।

  3. साहिल शर्मा ने 2010 से 2018 तक उत्क्रमित विद्यालय में पढ़ाई की और फिर गांधी स्मारक हाई स्कूल से 2020 में मैट्रिक परीक्षा दी, जो उनकी शिक्षा की सततता को दर्शाता है।

  4. सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Rishipal Singh Solanki बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक कोई अविस्मरणीय प्रमाण न हो, मैट्रिक प्रमाणपत्र को ही अंतिम माना जाएगा।


महत्वपूर्ण विधिक सिद्धांत

कोर्ट ने विशेष रूप से जिक्र किया:

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा Rishipal Singh Solanki मामले में कहा गया कि यदि आरोपी की आयु से संबंधित कोई ठोस और निर्णायक साक्ष्य न हो, तो बोर्ड सर्टिफिकेट को ही अंतिम साक्ष्य माना जाएगा।

  • कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता केवल अनुमान और संभावनाओं के आधार पर न्यायिक आदेश को चुनौती नहीं दे सकते।


अदालत का निष्कर्ष

  • याचिकाकर्ता कोई ठोस या विरोधाभासी साक्ष्य नहीं प्रस्तुत कर सके।

  • मैट्रिक प्रमाणपत्र को पर्याप्त साक्ष्य मानते हुए अदालत ने माना कि साहिल शर्मा घटना के समय नाबालिग थे।

  • इसलिए, पहले से पारित आदेशों में कोई हस्तक्षेप का आधार नहीं है।


न्यायालय का अंतिम आदेश

पटना हाई कोर्ट ने क्रिमिनल रिवीजन नंबर 11/2023 को अस्वीकृत (Dismissed) कर दिया। न्यायालय ने कहा कि:

  • इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है

  • जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और चाइल्ड कोर्ट द्वारा पारित आदेशों में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है।

  • मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट को लेकर की गई आपत्तियाँ प्रामाणिक नहीं हैं।


निष्कर्ष

यह मामला दर्शाता है कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था में साक्ष्य की गुणवत्ता और वैधानिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। RTI से प्राप्त जानकारी केवल तभी प्रभावी हो सकती है जब वह स्पष्ट, ठोस और निर्णायक रूप से प्रस्तुत की जाए। साथ ही, यह निर्णय एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक के रूप में उभरता है, विशेषकर जब नाबालिग होने का प्रश्न उठता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NyMxMSMyMDIzIzEjTg==-IvLtP9yKSbU=