"पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला: FIR के लिए शपथ-पत्र अनिवार्य"

 



मामले का विवरण

पटना उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमन द्वारा सुनवाई किए गए एक महत्वपूर्ण मामले में, अदालत ने स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154(3) के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने के लिए विधिवत हस्ताक्षरित शपथ-पत्र आवश्यक है। इस फैसले के माध्यम से, अदालत ने यह संदेश दिया है कि कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए और इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

यह मामला क्रिमिनल रिट जूरिसडिक्शन केस नं. 1749/2017 है, जो गार्डनीबाग पुलिस स्टेशन केस नं. 192/2017 से उत्पन्न हुआ था। याचिकाकर्ताओं के रूप में सुधा कुमारी उर्फ सुधा देवी, रोहित राज और शर्वेश्वर कुमार सादानंद उर्फ अरविंद कुमार थे, जबकि प्रतिवादियों के रूप में बिहार राज्य के विभिन्न अधिकारी शामिल थे।

याचिका का उद्देश्य

याचिकाकर्ताओं ने गार्डनीबाग पुलिस स्टेशन केस नं. 192/2017 (दिनांक 25.03.2017) को रद्द करने की मांग की थी। यह मामला शिकायत केस नं. 703(सी)/2017 से उत्पन्न हुआ था और भारतीय दंड संहिता की धाराओं 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 467 (महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों का जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 472 (नकली दस्तावेज़) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत दर्ज किया गया था।

याचिकाकर्ताओं के तर्क

याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी.एन. शाही ने अदालत के समक्ष निम्नलिखित तर्क रखे:

  1. FIR दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154(3) के तहत दर्ज की गई थी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलों का पालन आवश्यक था:
    • प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015)
    • बाबू वेंकटेश बनाम कर्नाटक राज्य (2022)
  2. याचिका के साथ संलग्न FIR की प्रमाणित प्रति में कोई शपथ-पत्र मौजूद नहीं था, जो कि आवश्यक कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन था।
  3. याचिका के पैराग्राफ-33 में शपथ-पत्र का उल्लेख किया गया था, परंतु वह न तो शिकायतकर्ता द्वारा निष्पादित किया गया था और न ही उस पर कोई हस्ताक्षर थे।
  4. शिकायत में विशिष्ट आरोप या समर्थन दस्तावेज़ नहीं थे, जो धारा 154(3) के उल्लंघन को दर्शाता है।

प्रतिवादियों के तर्क

प्रतिवादियों के वरिष्ठ अधिवक्ता ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए:

  1. याचिका के प्रार्थना भाग और पैराग्राफ-15 में दिए गए बयानों से स्पष्ट है कि धारा 154(3) का अनुपालन किया गया था।
  2. शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर प्रार्थना भाग में मौजूद थे, हालांकि शपथ-पत्र भाग में हस्ताक्षर नहीं थे।
  3. उन्होंने जवाबी हलफनामा दायर किया था, जिसके पैराग्राफ-46 में शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर शपथ-पत्र पर मौजूद थे।
  4. पटना के पुलिस अधीक्षक को भेजी गई रसीदों की प्रतियां संलग्न की गई थीं, जिससे वे यह दिखाना चाहते थे कि धारा 154(3) का अनुपालन किया गया था।

अदालत का निर्णय

न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमन ने दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:

  1. याचिका के साथ संलग्न FIR की प्रमाणित प्रति में शिकायत याचिका में विधिवत शपथ-पत्र शामिल नहीं था।
  2. यह सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित फैसलों का स्पष्ट उल्लंघन था:
    • प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) 6 SCC 287
    • बाबू वेंकटेश बनाम कर्नाटक राज्य (2022) LiveLaw (SC) 181
  3. इन फैसलों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा 156(3) के तहत आवेदन, जिसके आधार पर FIR दर्ज की जानी है, शिकायतकर्ता द्वारा विधिवत शपथ-पत्र द्वारा समर्थित होना चाहिए।
  4. FIR की प्रमाणित प्रति से यह स्पष्ट था कि शपथ-पत्र में कमी थी।

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने गार्डनीबाग पुलिस स्टेशन केस नं. 192/2017 (दिनांक 25.03.2017) को रद्द करने का निर्णय लिया।

फैसले का महत्व

यह फैसला कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

  1. कानूनी प्रक्रिया की अनिवार्यता: इस फैसले से स्पष्ट होता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन आवश्यक है। FIR दर्ज कराने के लिए सही प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
  2. शपथ-पत्र की महत्ता: अदालत ने स्पष्ट किया है कि धारा 154(3) के तहत FIR दर्ज कराने के लिए शिकायतकर्ता द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित शपथ-पत्र आवश्यक है। इसके बिना FIR रद्द की जा सकती है।
  3. सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का सम्मान: पटना उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों को आधार बनाकर अपना फैसला दिया, जो न्यायिक अनुशासन और सम्मान को दर्शाता है।
  4. झूठे मामलों पर अंकुश: इस प्रकार की सख्त प्रक्रियाएं झूठे मामलों को रोकने में मदद करती हैं, क्योंकि शपथ-पत्र के साथ झूठी शिकायत दर्ज कराने पर कानूनी परिणाम होते हैं।

आम जनता के लिए निहितार्थ

इस फैसले से आम जनता के लिए कई महत्वपूर्ण संदेश निकलते हैं:

  1. शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया: अगर आप पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराते हैं और पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है, तो आप धारा 154(3) के तहत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि आपकी शिकायत के साथ विधिवत हस्ताक्षरित शपथ-पत्र होना चाहिए।
  2. कानूनी सलाह का महत्व: किसी भी कानूनी कार्यवाही में सही प्रक्रिया का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। कानूनी कार्यवाही शुरू करने से पहले एक योग्य वकील से सलाह लेना बेहतर होता है।
  3. दस्तावेजों की सत्यता: सभी कानूनी दस्तावेजों पर विधिवत हस्ताक्षर और अन्य औपचारिकताओं का पालन आवश्यक है। यह सुनिश्चित करें कि आपके द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेज सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हों।
  4. उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र: उच्च न्यायालय धारा 482 CrPC के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अवैध या अनुचित FIR को रद्द कर सकता है, जैसा कि इस मामले में हुआ।

सारांश

इस मामले में, पटना उच्च न्यायालय ने गार्डनीबाग पुलिस स्टेशन केस नं. 192/2017 को रद्द कर दिया क्योंकि FIR दर्ज कराने के लिए आवश्यक शपथ-पत्र की कमी थी। यह फैसला कानूनी प्रक्रिया की अनिवार्यता और शपथ-पत्र के महत्व को रेखांकित करता है। यह दर्शाता है कि उच्च न्यायालय कानूनी प्रक्रियाओं के पालन में किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करता।

भविष्य के लिए सुझाव

कानूनी कार्यवाही में शामिल होने वाले व्यक्तियों के लिए कुछ उपयोगी सुझाव:

  1. दस्तावेजों की जांच: सुनिश्चित करें कि आपके सभी दस्तावेज सही तरीके से भरे गए हैं, उन पर विधिवत हस्ताक्षर हैं और सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की गई हैं।
  2. योग्य वकील की सेवाएं: कानूनी प्रक्रियाओं को समझने और उनका पालन करने के लिए एक अनुभवी वकील की सहायता लें।
  3. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पालन: सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों और प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करें, जैसा कि इस मामले में प्रियंका श्रीवास्तव और बाबू वेंकटेश के फैसलों का उल्लेख किया गया था।
  4. शपथ-पत्र की तैयारी: शपथ-पत्र बनाते समय सावधानी बरतें। यह सुनिश्चित करें कि इसमें सभी आवश्यक विवरण शामिल हैं और इस पर आपके विधिवत हस्ताक्षर हैं।

इस फैसले से स्पष्ट होता है कि कानूनी प्रक्रियाओं में किसी भी प्रकार की लापरवाही का परिणाम मामले का निरस्तीकरण हो सकता है। यह आम जनता के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा है कि कानूनी कार्यवाही शुरू करने से पहले सभी आवश्यक औपचारिकताओं का पालन करना अनिवार्य है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMTc0OSMyMDE3IzEjTg==-l--ak1--tThwVCNVA=