भूमिका:
यह मामला पटना जिले के सगुना, दानापुर क्षेत्र की लगभग 8 कट्ठा 3 धुर ज़मीन से संबंधित है। याचिकाकर्ताओं (intervenors/petitioners) ने यह भूमि उन व्यक्तियों से खरीदी थी जिन्होंने पहले स्वयं इस भूमि को लेकर न्यायालय में दावा दायर किया था। जब उन पूर्व मालिकों की याचिका खारिज हो गई और उन्होंने उस पर अपील दायर की, तब वर्तमान याचिकाकर्ताओं ने स्वयं को अपील में सह-अपीलकर्ता (co-appellants) के रूप में शामिल करने के लिए न्यायालय से अनुरोध किया। यह अनुरोध ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया। इसी आदेश को चुनौती देकर यह याचिका दायर की गई थी।
मामले का संक्षिप्त विवरण:
मूल भूमि विवाद:
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वर्ष 2011 में एक Title Suit No. 112 of 2011 दाखिल की गई थी, जिसमें Sudha Devi और अन्य व्यक्तियों ने Jugeshwar Nath Srivastava के विरुद्ध भूमि पर अवैध अतिक्रमण हटाने और स्वामित्व की घोषणा की मांग की थी।
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यह मुकदमा 03.08.2019 को खारिज कर दिया गया।
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फिर वादियों ने Title Appeal No. 79 of 2019 दाखिल की।
भूमि की बिक्री का विवरण:
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इस टाइटल सूट के लंबित रहने के दौरान वादीगण (plaintiffs) ने वह भूमि विभिन्न बिक्री पत्रों (sale deeds) के माध्यम से याचिकाकर्ताओं को बेच दी।
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विक्रय का समय: 25.07.2011 से 10.07.2012 के बीच।
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कुल भूमि बेची गई: लगभग 7 कट्ठा 13 धुर।
वर्तमान याचिका का कारण:
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याचिकाकर्ता अब उस भूमि के वर्तमान स्वामी हैं, लेकिन उन्हें अपील में पक्ष नहीं बनाया गया था।
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उन्होंने स्वयं को अपील में शामिल करने के लिए Order 1 Rule 10(2) CPC के तहत आवेदन दिए, जिन्हें 17.01.2023 को खारिज कर दिया गया।
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याचिकाकर्ताओं ने उसी आदेश को Civil Miscellaneous Petition No. 578 of 2023 के तहत चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं के तर्क:
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भूमि खरीद की वैधता:
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याचिकाकर्ताओं ने विधिपूर्वक पंजीकृत विक्रय पत्रों के आधार पर भूमि खरीदी थी।
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सभी के नाम से अलग-अलग जमाबंदी खुली है और सरकार को किराया भी दिया जा रहा है।
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न्यायिक कार्यवाही में भागीदारी का अधिकार:
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वादीगण ने अब पूरी भूमि बेच दी है और वे बिहार राज्य से बाहर रह रहे हैं।
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ऐसे में याचिकाकर्ता ही अपील को प्रभावी रूप से आगे बढ़ा सकते हैं।
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नुकसान की आशंका:
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यदि उन्हें अपील में पक्ष नहीं बनाया गया तो उनका स्वामित्व और कब्जा खतरे में पड़ सकता है।
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नैतिक और वैधानिक दायित्व:
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खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए उन्हें आवश्यक पक्ष (necessary parties) माना जाना चाहिए।
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प्रतिवादी (Respondent No.1) के तर्क:
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जानबूझकर तथ्यों को छुपाना:
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याचिकाकर्ता Jang Bahadur Singh (जो अन्य याचिकाकर्ताओं का रिश्तेदार है) पहले ही वादीगण का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक था।
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इसके बावजूद उन्होंने ट्रायल कोर्ट में भूमि खरीदी की जानकारी छिपाई।
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Transfer of Property Act की धारा 52 का उल्लंघन:
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मुकदमे के लंबित रहने के दौरान बिना अदालत की अनुमति के भूमि बेचना अवैध है (lis pendens का सिद्धांत)।
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जानबूझकर अपील में विलंब:
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याचिकाकर्ताओं को 2011 से 2012 के बीच की बिक्री की जानकारी थी, फिर भी उन्होंने 2022 में याचिका दाखिल की — यानी 11 साल बाद।
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न्यायालय में "clean hands" से नहीं आए — उन्होंने तथ्य छिपाए।
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न्यायालय को धोखे में रखना:
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कोर्ट में झूठ बोलना और तथ्य छिपाना एक प्रकार का धोखा है, जिससे वे कोई राहत पाने के अधिकारी नहीं हैं।
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न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय:
प्रमुख मुद्दा:
क्या याचिकाकर्ता अपील में आवश्यक पक्ष हैं और क्या उन्हें शामिल किया जाना चाहिए?
न्यायालय का विचार:
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नैतिक रूप से दोषी किंतु कानूनी रूप से हकदार:
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याचिकाकर्ता No.4 (Jang Bahadur Singh) ने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक रहते हुए भूमि खरीदी और कोर्ट को जानकारी नहीं दी — यह आचरण निंदनीय है।
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लेकिन अन्य याचिकाकर्ता भी उन्हीं के परिवार के सदस्य हैं (पत्नी, पुत्र, पुत्री, भाई)। अतः सभी की जानकारी की जिम्मेदारी बनती है।
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न्यायिक उद्देश्य की पूर्ति:
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भूमि का स्वामित्व अब पूरी तरह से याचिकाकर्ताओं के पास है, वादीगण अब मामले में रुचि नहीं ले रहे हैं।
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यदि याचिकाकर्ताओं को अपील में नहीं जोड़ा गया, तो उनके अधिकारों को गंभीर नुकसान होगा।
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lis pendens सिद्धांत की स्वीकृति:
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याचिकाकर्ता पेन्डेंटे लिटे (विचाराधीन मुकदमे के दौरान खरीदार) हैं, इसलिए वे अपने विक्रेताओं (plaintiffs) के सभी कृत्यों से बंधे रहेंगे।
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न्यायिक विवेक का प्रयोग:
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Order 1 Rule 10(2) CPC न्यायालय को यह विवेक देता है कि वह आवश्यक पक्ष को किसी भी चरण में जोड़े।
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इस मामले में याचिकाकर्ताओं को शामिल करना न्याय के हित में है।
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शर्तें और दंड:
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याचिकाकर्ताओं को अपील में शामिल किया गया, लेकिन ₹25,000/- की लागत (cost) प्रतिवादी को देने की शर्त पर।
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अपील के निष्पादन में वे बाधा नहीं डालेंगे और केवल अपील को आगे बढ़ाने के लिए ही उनकी भागीदारी होगी।
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न्यायालय का अंतिम आदेश:
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17.01.2023 का आदेश आंशिक रूप से रद्द किया गया।
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याचिकाकर्ताओं को टाइटल अपील No. 79/2019 में सह-अपीलकर्ता के रूप में जोड़े जाने का निर्देश।
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₹25,000/- प्रतिवादी को देने का आदेश (पहली सुनवाई की तारीख को)।
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न्यायालय ने अपील को तीन महीनों के भीतर निपटाने का निर्देश भी दिया।
निष्कर्ष:
इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति वाद के दौरान वैध रूप से संपत्ति खरीदता है, तो भले ही उस पर कुछ नैतिक सवाल हों, फिर भी न्यायालय उसे अपील में शामिल कर सकता है यदि उसके अधिकार खतरे में हों। लेकिन इस प्रकार के खरीदार lis pendens के अधीन होते हैं और उन्हें विक्रेताओं के आचरण के अनुसार ही अधिकार मिलते हैं।
यह निर्णय भूमि विवादों में खरीदारों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक अहम मील का पत्थर है, साथ ही यह चेतावनी भी कि न्यायालय में तथ्यों को छुपाने की कोई जगह नहीं है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjNTc4IzIwMjMjMSNO-KUkHmvMhrqE=