भूमिका
यह मामला राकेश कुमार सिंह नामक एक युवक से जुड़ा है, जिन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आयुर्वेदिक कॉलेज से GAMS (Graduate of Ayurvedic Medicine and Surgery) डिग्री प्राप्त करने का दावा किया था। बाद में बिहार स्टेट काउंसिल ऑफ आयुर्वेदिक एंड यूनानी मेडिसिन ने उनकी पंजीकरण को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता ने इसके विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस केस में कोर्ट को यह तय करना था कि क्या याचिकाकर्ता की डिग्री वैध थी, और क्या उनका रजिस्ट्रेशन सही तरीके से रद्द किया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
राकेश कुमार सिंह ने वर्ष 1996 में GAMS पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। यह कोर्स पाँच वर्षों का होता है (1996–2001)। कॉलेज द्वारा पहले, दूसरे और चौथे वर्ष की परीक्षा कराई जाती थी, जबकि तीसरे और पाँचवें वर्ष की परीक्षा बिहार स्टेट आयुर्वेदिक एंड यूनानी मेडिसिन काउंसिल द्वारा संचालित होती थी।
2001 में, पाँचवें वर्ष की परीक्षा से पहले, राज्य में इन कोर्सेज की वैधता को लेकर उच्चतम न्यायालय तक मामला पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में दिए गए निर्णय में स्पष्ट किया कि वर्ष 2003 के बाद कोई भी आयुर्वेदिक या यूनानी मेडिकल कॉलेज बिना केंद्र सरकार की अनुमति के मान्य नहीं माना जाएगा।
नियमों में परिवर्तन
भारत सरकार ने 25 जून 2010 को इंडियन मेडिसिन सेंट्रल काउंसिल एक्ट, 1970 में संशोधन किया, जिसके तहत बिहार में GAMS कोर्स की वैधता केवल 1953 से 2003 तक के लिए सीमित कर दी गई। यानी 2003 के बाद अगर कोई कॉलेज केंद्र सरकार से अनुमति लिए बिना कोर्स संचालित कर रहा है, तो वह अमान्य होगा।
याचिकाकर्ता का पक्ष
राकेश कुमार ने वर्ष 2012 में परीक्षा दी और 2013 में इंटर्नशिप पूर्ण कर ली। उन्हें बिहार स्टेट काउंसिल द्वारा एक प्रोविजनल सर्टिफिकेट भी दिया गया और फिर पंजीकरण किया गया। उन्होंने यह दलील दी कि:
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केंद्र सरकार के 2010 के संशोधन के बाद ही 5वीं वर्ष की परीक्षा हुई, और इसी के आधार पर उन्हें डिग्री मिली।
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एक बार रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद उसका रद्द किया जाना अनुचित और मनमाना था।
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सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार पहले से संचालित कॉलेजों को कुछ छूट मिलनी चाहिए।
प्रशासनिक और कानूनी स्थिति
बिहार स्टेट काउंसिल ने शिकायत के आधार पर एक समिति गठित की, जिसने यह पाया कि जिस संस्थान से याचिकाकर्ता ने डिग्री प्राप्त की, वह एक फर्जी संस्था थी। समिति की रिपोर्ट 09 मार्च 2016 को आई, जिसके आधार पर उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया।
सरकारी पक्ष का तर्क
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याचिकाकर्ता ने 2003 के बाद डिग्री प्राप्त की है, जबकि केंद्र सरकार से मान्यता लेने की समयसीमा 2003 से तीन वर्षों के भीतर थी।
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जिस संस्थान से उन्होंने पढ़ाई की वह न तो केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त था और न ही उसने समय पर अनुमति ली थी।
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इसलिए उनकी डिग्री मान्य नहीं है और रजिस्ट्रेशन रद्द करना उचित है।
कोर्ट का विश्लेषण
पटना हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Bihar State Council of Ayurvedic and Unani Medicine v. State of Bihar [(2007) 12 SCC 728] निर्णय को आधार बनाते हुए कहा:
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2003 के बाद सभी मेडिकल कॉलेजों को तीन साल के भीतर केंद्र सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है, चाहे वह पहले से स्थापित क्यों न हो।
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यदि किसी छात्र को डिग्री 2003 से पहले मिली है, तो उसे मान्यता प्राप्त माना जाएगा, लेकिन 2003 के बाद की डिग्री केवल तभी वैध मानी जाएगी जब कॉलेज को केंद्र सरकार से अनुमति प्राप्त हो।
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याचिकाकर्ता ने 2012 में डिग्री प्राप्त की थी, जबकि कोई साक्ष्य नहीं है कि कॉलेज को मान्यता प्राप्त थी या उसने तीन साल के भीतर अनुमति ली थी।
महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु
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इंडियन मेडिसिन सेंट्रल काउंसिल एक्ट 1970 (संशोधित 2003):
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धारा 13-A, 13-B और 13-C के अनुसार बिना केंद्र की अनुमति के नया या पुराना कॉलेज चिकित्सा डिग्री नहीं दे सकता।
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तीन वर्षों की समयसीमा तय की गई थी केंद्र की अनुमति प्राप्त करने हेतु।
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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2007):
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स्पष्ट रूप से कहा गया कि पहले से स्थापित संस्थानों को भी मान्यता लेनी होगी।
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2003 के पहले मिली डिग्रियाँ सुरक्षित रहेंगी, लेकिन उसके बाद की डिग्रियाँ तभी मान्य होंगी जब मान्यता प्राप्त हो।
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कोर्ट का निर्णय
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पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।
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कोर्ट ने माना कि रजिस्ट्रेशन रद्द करने का फैसला उचित था क्योंकि डिग्री बिना मान्यता प्राप्त संस्थान से थी।
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कोर्ट ने कहा कि 2012 में दी गई परीक्षा और डिग्री किसी भी वैधानिक शक्ति के तहत नहीं थी।
निष्कर्ष
यह मामला उन हज़ारों छात्रों के लिए एक चेतावनी है जो बिना संस्थान की मान्यता की पुष्टि किए चिकित्सा जैसे गंभीर क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि चिकित्सा शिक्षा केवल तभी वैध मानी जाएगी जब वह उचित कानूनी प्रक्रिया और मान्यता के तहत हो।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjA2ODMjMjAxOSMxI04=-btHjCHcP9R4=