भूमिका
बिहार सरकार द्वारा लागू बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 के तहत शराबबंदी को सख्ती से लागू किया गया है। इस कानून की कठोरता के कारण आम नागरिक, विशेषकर मकान मालिक, कई बार अनुचित दंड के शिकार हो जाते हैं जब उनके किरायेदारों के अवैध कार्यों की जिम्मेदारी उनके सिर मढ़ दी जाती है। मोनी कुमारी बनाम बिहार राज्य का यह केस एक ऐसा ही उदाहरण है, जिसमें एक मकान मालकिन, जो वर्षों से कोलकाता में रह रही थीं, के घर के एक कमरे में किरायेदार द्वारा शराब पाए जाने के बाद उस कमरे को जब्त कर लिया गया। इस केस में पटना हाई कोर्ट ने विस्तृत विवेचना के बाद निर्णय दिया, जो विधिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मामले की पृष्ठभूमि
मोनी कुमारी, जिनका मूल निवास बेगूसराय में है, वर्ष 2007 से अपने पति के साथ कोलकाता में रह रही हैं। उनके पति केंद्र सरकार के आयकर विभाग में कार्यरत हैं। मोनी कुमारी के पास बेगूसराय में एक मकान है, जिसे उन्होंने अपने ससुर के माध्यम से किराये पर दे रखा था। सितंबर 2021 में राहुल कुमार नामक व्यक्ति को ₹1200 मासिक किराये पर एक कमरा किराए पर दिया गया।
2 फरवरी 2022 को उत्पाद निरीक्षक ने उस मकान के कमरे में छापेमारी कर 61.5 लीटर इंडियन मेड फॉरेन लिकर बरामद किया। इसके आधार पर राहुल कुमार के विरुद्ध धारा 30(a) के तहत एफआईआर दर्ज हुई और मकान के उस कमरे को सील कर दिया गया।
प्रशासनिक कार्यवाही
इसके पश्चात जिला पदाधिकारी, बेगूसराय द्वारा जब्ती केस संख्या 09/2022 की शुरुआत की गई। मोनी कुमारी ने 11 अप्रैल 2022 को उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दिया और बताया कि वह इस घटनाक्रम में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हैं। उन्होंने किराया संधि और बैंक में किराये की ट्रांजैक्शन का प्रमाण भी प्रस्तुत किया।
इसके बावजूद 6 फरवरी 2023 को जिलाधिकारी ने उनके मकान के उस कमरे को जब्त करने का आदेश पारित कर दिया। मोनी कुमारी ने उत्पाद आयुक्त के समक्ष अपील (अपील संख्या 72/2023) की, जिसे 12 जून 2023 को खारिज कर दिया गया।
हाई कोर्ट में याचिका
इस आदेश के खिलाफ मोनी कुमारी ने न्यायिक रिट याचिका (CWJC No. 12807/2023) पटना उच्च न्यायालय में दाखिल की और निम्नलिखित राहतें मांगी:
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जब्ती आदेश को रद्द किया जाए।
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अपीली आदेश को निरस्त किया जाए।
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90 दिनों से अधिक समय बीत जाने के कारण जब्ती स्वतः निरस्त मानी जाए।
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यथोचित अन्य राहत प्रदान की जाए।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में निम्नलिखित तर्क रखे:
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एफआईआर से स्पष्ट है कि मोनी कुमारी का कोई संलिप्तता नहीं थी और उन्होंने मकान को किराये पर दिया था।
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पुलिस जांच में मोनी कुमारी को निर्दोष पाया गया और फाइनल रिपोर्ट संख्या 121/2022 दिनांक 18.09.2022 के माध्यम से उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया गया।
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बुन्नी लाल साह बनाम बिहार राज्य (2021 (2) BLJ 390) मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब्ती की प्रक्रिया 90 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए। मोनी कुमारी का मामला इस समयसीमा से बाहर था।
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राज्य द्वारा कोई प्रासंगिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह सिद्ध हो कि मोनी कुमारी अपराध में सहयोगी थीं।
प्रतिवादी की दलीलें
राज्य पक्ष ने कहा:
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शराब मकान से बरामद हुई है, इसलिए धारा 56 के अनुसार उस स्थान को जब्त किया जा सकता है, चाहे वह किराये पर क्यों न हो।
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अपराध स्थान आधारित होता है, न कि केवल व्यक्ति आधारित।
कोर्ट का दृष्टिकोण
कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया:
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पुलिस जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि अपराध का अपराधी किरायेदार राहुल कुमार है, न कि मोनी कुमारी।
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मोनी कुमारी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है जो उनके अपराध में संलिप्तता को दर्शाता हो।
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CWJC No.17894/2022 (सुनीता सिन्हा बनाम बिहार राज्य) में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मकानों की जब्ती प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से की जा रही है।
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बुन्नी लाल साह के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि 90 दिनों की समयसीमा का उल्लंघन हुआ है।
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न्यायसंगतता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है क्योंकि जब्ती आदेश में व्यक्तिगत सुनवाई और तथ्यों का समुचित मूल्यांकन नहीं किया गया।
अंतिम निर्णय
कोर्ट ने यह घोषित किया कि:
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जिलाधिकारी, बेगूसराय द्वारा पारित जब्ती आदेश दिनांक 06.02.2023 और उत्पाद आयुक्त द्वारा पारित अपील आदेश दिनांक 12.06.2023 को रद्द किया जाता है।
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संबंधित प्राधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि मोनी कुमारी के घर के जब्त कमरे को तत्काल मुक्त किया जाए।
निष्कर्ष
यह निर्णय बिहार मद्य निषेध कानून की वर्तमान व्याख्या और इसके प्रशासनिक दुरुपयोग पर प्रकाश डालता है। इस फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि कानून की कठोरता के बावजूद नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है। यदि मकान मालिक ने अपने कर्तव्यों का पालन किया है और उसकी कोई आपराधिक मंशा सिद्ध नहीं होती, तो उसे केवल किरायेदार के कृत्य के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI4MDcjMjAyMyMxI04=-bSvPJ1ZsWSM=