भूमिका
बिहार सरकार के एक सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी अरविंद कुमार सिंह ने अपने अर्जित अवकाश (Earned Leave) की राशि में ₹42,560 की अवैध कटौती के खिलाफ पटना हाईकोर्ट का रुख किया। उनका कहना था कि इस राशि की कटौती उनकी सेवा निवृत्ति के दो साल बाद बिना कोई स्पष्ट आरोप या प्रक्रिया के की गई। अदालत ने उनकी बात को मानते हुए न केवल इस कटौती को गलत ठहराया, बल्कि सरकार को यह राशि वापस करने का आदेश भी दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
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सेवानिवृत्ति: अरविंद कुमार सिंह 28 फरवरी 2021 को कृषि निदेशालय, बिहार से सहायक निदेशक (कृषि) के पद से सेवानिवृत्त हुए।
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मूल मांग: उन्होंने अपने अर्जित अवकाश के 300 दिनों के भुगतान की मांग की थी।
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सरकारी आदेश: 2 मार्च 2023 को वित्त विभाग ने अर्जित अवकाश की राशि ₹6,79,680 निर्धारित की, लेकिन ₹42,560 की कटौती करते हुए केवल ₹6,37,120 की स्वीकृति दी।
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कटौती का आधार: कटौती का कोई स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया। अलग-अलग पत्रों में अलग-अलग समयावधि में अधिक भुगतान होने की बात कही गई— एक पत्र में 2010 से 2021, दूसरे में 2018 से 2021।
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याचिका: इसके विरुद्ध अरविंद कुमार सिंह ने पटना हाईकोर्ट में CWJC No. 15752 of 2022 दाखिल की।
याचिकाकर्ता का पक्ष
अधिवक्ता मुकेश कुमार ने निम्नलिखित प्रमुख तर्क रखे:
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कोई धोखाधड़ी नहीं: राज्य सरकार ने यह नहीं कहा कि यह राशि किसी धोखे या गलत जानकारी के आधार पर प्राप्त की गई थी।
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कटौती की अस्पष्टता: राज्य सरकार यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि आखिर ₹42,560 की कटौती क्यों और किस अवधि के लिए की गई।
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अदालती निर्णयों का हवाला: सर्वोच्च न्यायालय के State of Punjab vs. Rafiq Masih (2015) 4 SCC 334 के निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई कर्मचारी सेवा से रिटायर हो चुका हो और किसी धोखे के बिना राशि प्राप्त की हो, तो उस राशि की वसूली नहीं की जा सकती।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य की ओर से GP-14 अधिवक्ता ने कहा:
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यदि शो-कॉज़ नोटिस में कोई खामी हो, तो उसे रद्द किया जाए और नया नोटिस जारी करने की अनुमति दी जाए।
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याचिकाकर्ता अधिकारी पद पर थे, उन्हें अपनी वित्तीय देनदारियों की जानकारी होनी चाहिए थी, इसलिए कोई भी अतिरिक्त भुगतान 'अनुचित लाभ' (unjust enrichment) के तहत आता है।
कोर्ट का विश्लेषण
माननीय न्यायाधीश हरिश कुमार ने निम्नलिखित प्रमुख बातें स्पष्ट की:
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कटौती के लिए कोई ठोस आधार नहीं: किसी विशेष अवधि या कारण के साथ कटौती का कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
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सेवानिवृत्ति के बाद की कार्रवाई: याचिकाकर्ता फरवरी 2021 में रिटायर हो चुके थे, और यह कटौती दो साल बाद की गई, जो अत्यधिक विलंबपूर्ण और अवैध है।
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कोई धोखा या गलत बयानी नहीं: न ही याचिकाकर्ता पर किसी धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया और न ही किसी दुराशय का संकेत मिला।
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सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ: Rafiq Masih मामले के सिद्धांत पूर्णतः लागू होते हैं — सेवा समाप्ति के बाद, बिना धोखाधड़ी के की गई अतिरिक्त राशि की वसूली नहीं की जा सकती।
कोर्ट का निर्णय
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वित्त विभाग का आदेश (Memo No. 655 (22), दिनांक 02.03.2023) को उस सीमा तक रद्द किया गया, जहां ₹42,560 की कटौती की गई थी।
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राशि वापस करने का आदेश: वित्त विभाग (उत्तरदाता संख्या 4) को यह राशि चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को लौटाने का निर्देश दिया गया।
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मामला समाप्त: इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।
न्यायिक महत्व
यह निर्णय न केवल सरकारी अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे सरकारी सेवा तंत्र के लिए एक दिशा-निर्देश के रूप में सामने आया है:
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रिटायरमेंट के बाद किसी भी वसूली को तभी वैध माना जाएगा जब उसमें धोखाधड़ी या जानबूझ कर की गई गलती हो।
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कोई भी कटौती बिना उचित प्रक्रिया, कारण और जानकारी के नहीं की जा सकती।
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कानून की नजर में कर्मचारी का हित सर्वोपरि है जब तक वह गलती के लिए दोषी साबित न हो।
निष्कर्ष
पटना हाईकोर्ट का यह फैसला राज्य के हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए राहत भरा संदेश है। यह सुनिश्चित करता है कि बिना ठोस कारण और स्पष्ट प्रक्रिया के, सेवानिवृत्ति के बाद उनके वित्तीय लाभों में कोई कटौती नहीं की जा सकती।
यदि आप सरकारी सेवा में हैं या किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी को जानते हैं, तो यह निर्णय उनके अधिकारों की रक्षा का एक मजबूत आधार बन सकता है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTU3NTIjMjAyMiMxI04=-uPweAcXj9jc=