परिचय
यह मामला बिहार राज्य विद्युत बोर्ड (BSEB) द्वारा वर्ष 2007 में निकाले गए एक नौकरी विज्ञापन से संबंधित है, जिसमें अप्रशिक्षित श्रमिक (Unskilled Labourer) और जूनियर लाइनमैन की संविदा पर नियुक्ति की बात कही गई थी। समय के साथ यह मामला कई प्रशासनिक उलझनों, नियमों के अचानक बदलाव, और न्यायिक लड़ाई का रूप लेता गया।
यह केस, जो लगभग 15 वर्षों तक चला, यह बताता है कि कैसे नियमों को बीच प्रक्रिया में बदलकर सामान्य नागरिकों के अधिकारों का हनन हो सकता है, और कैसे न्यायपालिका ने ‘वैधानिक अपेक्षा’ (legitimate expectation) जैसे सिद्धांतों का उपयोग करते हुए आम आवेदकों को राहत दी।
मामले की पृष्ठभूमि
वर्ष 2007 में बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के तिरहुत इलेक्ट्रिक सप्लाई एरिया, मुजफ्फरपुर ने एक विज्ञापन संख्या 01/2007 के तहत अप्रशिक्षित श्रमिक और जूनियर लाइनमैन के पदों पर संविदा आधारित भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे।
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अप्रशिक्षित श्रमिक के लिए योग्यता: 8वीं पास
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जूनियर लाइनमैन के लिए योग्यता: ITI डिप्लोमा
आवेदकों ने समय से आवेदन जमा कर दिए और उम्मीद थी कि चयन प्रक्रिया पूरी होगी। लेकिन प्रक्रिया लंबित होती चली गई।
बिजली बोर्ड का पुनर्गठन और योग्यता में बदलाव
वर्ष 2012 में बिहार राज्य विद्युत बोर्ड को ‘बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म्स ट्रांसफर स्कीम 2012’ के तहत पुनर्गठित कर पांच कंपनियों में बांट दिया गया, जिनमें से एक थी ‘बिहार पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड’ (BPHCL)।
2015 में, BPHCL ने एक पत्र जारी कर अप्रशिक्षित श्रमिकों के लिए शैक्षणिक योग्यता को 8वीं से बढ़ाकर 10वीं कर दिया। साथ ही, 2007 के विज्ञापन के तहत शुरू की गई चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया।
न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत
2014 में याचिकाकर्ताओं ने पटना उच्च न्यायालय में रिट याचिका (CWJC No. 3700/2014) दायर की, जिसमें चयन प्रक्रिया को पूरा करने की मांग की गई।
न्यायालय का निर्देश (2 मई 2014): चयन प्रक्रिया को छह महीने में पूरा किया जाए।
परिणाम: आदेश का पालन नहीं हुआ।
इसलिए, 2015 में याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका (MJC No. 649/2015) दायर की। इसके जवाब में बोर्ड ने चयन प्रक्रिया रद्द करने की बात बताई।
मुख्य कानूनी प्रश्न
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क्या चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद योग्यता बदलना वैधानिक है?
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क्या याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति का अधिकार है?
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क्या बिजली कंपनी का चयन प्रक्रिया रद्द करना "नियमों में खेल बदलने" (Change of Rules of Game) जैसा है?
एकल पीठ का फैसला (2018)
पटना उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा:
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BPHCL ने मनमाने ढंग से योग्यता बदली, जो अवैध है।
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चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद योग्यता में बदलाव "नियमों के खेल में बदलाव" है, जो कानूनन स्वीकार्य नहीं है।
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याचिकाकर्ताओं की वैधानिक अपेक्षा को ठेस पहुंची है।
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चयन प्रक्रिया तीन महीने में पूरी की जाए।
बिहार पावर कंपनी की अपील (LPA No. 1264/2018)
बिजली कंपनी ने एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी और कहा:
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पुनर्गठन के बाद नई कंपनी नियम बदल सकती है।
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योग्यता बढ़ाना प्रशासनिक निर्णय है, कोई भेदभाव नहीं है।
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याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति का कोई "अधिकार" नहीं है।
न्यायालय का अंतिम निर्णय (14 नवंबर 2022)
पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ (Division Bench) ने स्पष्ट रूप से कहा:
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नियमों का खेल नहीं बदला जा सकता: जब एक बार चयन प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो उसमें योग्यता या अन्य नियमों को बदलना न्यायसंगत नहीं होता।
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वैधानिक अपेक्षा: याचिकाकर्ता 7 वर्षों तक प्रक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे, इसलिए उनकी वैधानिक अपेक्षा थी कि चयन प्रक्रिया पूरी होगी।
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न्याय का उल्लंघन: नियुक्ति न देकर और चयन प्रक्रिया को निरस्त कर BPHCL ने न्याय की भावना का उल्लंघन किया।
क्षतिपूर्ति का आदेश
खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को थोड़ा संशोधित करते हुए, यह निर्देश दिया कि:
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हर याचिकाकर्ता को ₹1.5 लाख का मुआवजा दिया जाए।
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भुगतान चार सप्ताह में किया जाए, अन्यथा 9% वार्षिक ब्याज देना होगा।
कानूनी सिद्धांत जो इस फैसले में महत्वपूर्ण रहे
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Legitimate Expectation (वैधानिक अपेक्षा): जब किसी सरकारी संस्था द्वारा आश्वासन या प्रक्रिया शुरू की जाती है, तो व्यक्ति को उम्मीद होती है कि उसे पूरा किया जाएगा।
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Change of Rules of Game: चयन प्रक्रिया के दौरान योग्यता या नियम बदलना न्याय और निष्पक्षता के खिलाफ होता है।
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Administrative Fairness: सरकारी निर्णय पारदर्शी और निष्पक्ष होने चाहिए।
निष्कर्ष
यह केस केवल नियुक्ति प्रक्रिया का विवाद नहीं था, बल्कि यह उस बड़े सवाल से जुड़ा था कि क्या सरकारें और उसकी संस्थाएं नागरिकों को दिए गए आश्वासनों से पीछे हट सकती हैं? क्या वे किसी प्रक्रिया को आधे रास्ते में बदल सकती हैं?
पटना हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सरकार भी संविधान और कानून से ऊपर नहीं है। लोगों की अपेक्षाओं का सम्मान करना, प्रशासन का कर्तव्य है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxMjY0IzIwMTgjMSNO-8zi6suRQBVM=