"चेक बाउंस और धोखाधड़ी का मामला: पटना उच्च न्यायालय का फैसला"



परिचय

यह लेख पटना उच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण फैसले का सारांश प्रस्तुत करता है, जो चेक बाउंस और धोखाधड़ी से संबंधित आपराधिक मामलों से संबंधित है। इस मामले में, न्यायालय ने दो आपराधिक याचिकाओं पर सुनवाई की और निचली अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान आदेशों की वैधता का परीक्षण किया। न्यायालय ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 और 142 के प्रावधानों और आपराधिक मामलों में कानूनी प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला मधुबनी जिले में एक शिकायत मामले से उत्पन्न होता है, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी व्यक्तियों ने उससे हार्डवेयर और सीमेंट खरीदा था और भुगतान के रूप में एक चेक जारी किया था, जो बाद में अपर्याप्त धन के कारण बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्तियों ने उससे कुछ सामान छीन लिए और उसके साथ मारपीट की।

निचली अदालत ने इस शिकायत पर संज्ञान लिया और आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराधों के लिए कार्यवाही शुरू की। इसके बाद, आरोपी व्यक्तियों ने पटना उच्च न्यायालय में इस संज्ञान आदेश को रद्द करने के लिए याचिका दायर की।

उच्च न्यायालय में याचिका

पटना उच्च न्यायालय में दो आपराधिक विविध याचिकाएँ दायर की गईं: आपराधिक विविध संख्या 31347/2015 और आपराधिक विविध संख्या 4642/2016। पहली याचिका में, आरोपी महिला थी, जबकि दूसरी याचिका में उसके पति आरोपी थे। दोनों याचिकाओं में, मुख्य मुद्दा निचली अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान आदेश की वैधता थी।

याचिकाकर्ताओं के तर्क

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया। उन्होंने कहा कि चेक बाउंस होने के बाद, शिकायतकर्ता ने निर्धारित समय सीमा के भीतर कानूनी नोटिस जारी नहीं किया और न ही शिकायत दर्ज की। इसलिए, निचली अदालत द्वारा लिया गया संज्ञान आदेश कानून की दृष्टि में गलत है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि शिकायत में धोखाधड़ी का कोई आरोप नहीं है, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत भी कोई मामला नहीं बनता है।

शिकायतकर्ता का तर्क

शिकायतकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि पार्टियों के बीच समझौता हो गया है, लेकिन याचिकाकर्ताओं पर अभी भी 30,000 रुपये बकाया हैं। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने समझौते में प्रवेश किया है, इसलिए वे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 की शरण नहीं ले सकते।

उच्च न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

पटना उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार किया और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 के प्रावधानों की जांच की। न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत ने धारा 142 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया था और बिना इसका पालन किए ही संज्ञान लिया था।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चेक बाउंस के मामले में, शिकायतकर्ता को निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोपी को कानूनी नोटिस भेजना होता है और यदि भुगतान नहीं किया जाता है, तो शिकायत दर्ज करनी होती है। यदि इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है, तो निचली अदालत द्वारा लिया गया संज्ञान आदेश कानूनी रूप से मान्य नहीं होता है।

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी कहा कि शिकायत में धोखाधड़ी का कोई ठोस आरोप नहीं है, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत भी कोई मामला नहीं बनता है।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, पटना उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा पारित संज्ञान आदेश और उससे उत्पन्न होने वाली सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया। न्यायालय ने दोनों आपराधिक विविध याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।

निष्कर्ष

पटना उच्च न्यायालय का यह फैसला चेक बाउंस और धोखाधड़ी से संबंधित मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं के महत्व को दर्शाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 के प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य है और निचली अदालतों को इन प्रावधानों का सख्ती से पालन करना चाहिए। यह फैसला ऐसे मामलों में शामिल पक्षों के अधिकारों और दायित्वों को भी स्पष्ट करता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMzMTM0NyMyMDE1IzEjTg==-thmrHAZ0jeY=