परिचय
यह मामला बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी योजना महादलित विकास मिशन के तहत नियुक्त किए गए एक विकास मित्र की सेवा समाप्ति से जुड़ा है। दशरथ राम नामक व्यक्ति को सेवा से बिना स्पष्ट कारण और बिना न्यायिक प्रक्रिया अपनाए बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने इसे न्यायालय में चुनौती दी और अंततः पटना उच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए उन्हें न्याय दिलाया।
🔹 मामले की पृष्ठभूमि
दशरथ राम को 2012-13 में सीतामढ़ी जिले के फूलकहां गांव, प्रखंड - डुमरी कटसरी से विकास मित्र के रूप में चयनित किया गया था। यह नियुक्ति महादलित समुदाय के उत्थान हेतु चलाई जा रही एक विशेष योजना के तहत की गई थी, जिसका उद्देश्य दलित-बहुल क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं की जानकारी और सुविधा आम जन तक पहुँचाना था।
उनके विरुद्ध कुछ अनियमितताओं की शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनके आधार पर:
-
उन्हें कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) दिया गया।
-
उनके जवाब के बाद जांच कराई गई।
-
इसके बाद जिला कल्याण पदाधिकारी (District Welfare Officer) ने जिला पदाधिकारी (DM) की सहमति से उनकी सेवा समाप्त कर दी।
🔹 बर्खास्तगी आदेश में क्या कहा गया था?
-
आदेश दिनांक 13.07.2016 को जारी किया गया।
-
आरोप था कि दशरथ राम ने प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में अनियमितता की थी।
-
आदेश के अनुसार उन्होंने "असंतोषजनक कार्य निष्पादन" किया था।
-
यह निर्णय मिशन के दिशा-निर्देशों के खंड 9(VI) के तहत लिया गया, जिसमें कहा गया है कि विकास मित्र सरकारी सेवक नहीं माने जाएंगे और असंतोषजनक प्रदर्शन की स्थिति में उनकी सेवा समाप्त की जा सकती है।
🔹 एकल पीठ (Single Bench) का निर्णय
दशरथ राम ने इस आदेश को सिविल रिट याचिका संख्या 5174/2019 के माध्यम से पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। एकल न्यायाधीश ने 02.04.2019 को याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि:
-
विकास मित्र सरकारी कर्मचारी नहीं हैं।
-
बर्खास्तगी की प्रक्रिया दिशा-निर्देशों के अनुरूप हुई।
-
सेवा समाप्ति के लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं।
🔹 Letters Patent Appeal (LPA) में चुनौती
इस निर्णय के खिलाफ दशरथ राम ने Letters Patent Appeal (संख्या 948/2019) दायर की, जिसे दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुना:
-
माननीय न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
-
माननीय न्यायमूर्ति रमेश चंद्र मालवीय
🔹 उच्च न्यायालय में उठाए गए प्रमुख मुद्दे
-
क्या सेवा समाप्ति की प्रक्रिया न्यायसंगत थी?
– क्या कारण बताओ नोटिस, जवाब, जांच रिपोर्ट, और अंतिम निष्कर्ष आदेश में दर्ज हैं? -
क्या सेवा समाप्ति का आदेश 'बोलने वाला आदेश' (Speaking Order) था?
– क्या आदेश में स्पष्ट कारण और प्रमाण दर्ज थे? -
क्या आदेश पारित करने वाला अधिकारी सक्षम (Competent Authority) था?
🔹 अदालत का विश्लेषण और निष्कर्ष
📌 1. आदेश की कानूनी खामियाँ
-
बर्खास्तगी आदेश में न तो कारण बताओ नोटिस का उल्लेख था, न जवाब का, और न ही जांच रिपोर्ट का।
-
यह आदेश बोलता हुआ आदेश (Speaking Order) नहीं था, जिससे निष्पक्ष न्याय की मूलभूत प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।
-
सेवा समाप्ति जैसे गंभीर कदम के लिए एक पारदर्शी और उचित प्रक्रिया जरूरी होती है, जो यहाँ नहीं अपनाई गई।
📌 2. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
-
संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक को सुनवाई का अधिकार (Right to be heard) प्राप्त है।
-
बिना आरोपों का समुचित विवरण और बिना उचित जवाब मांगे सेवा समाप्ति न्याय के विरुद्ध है।
📌 3. सक्षम अधिकारी की वैधता
-
याचिकाकर्ता ने कहा कि सेवा समाप्ति का आदेश जिला कल्याण पदाधिकारी ने पारित किया, जबकि ऐसा अधिकार केवल जिला परियोजना पदाधिकारी को है।
-
लेकिन अदालत ने पाया कि जिला कल्याण पदाधिकारी ही जिला परियोजना पदाधिकारी के रूप में भी कार्यरत थे, अतः यह आपत्ति अस्वीकार की गई।
🔹 न्यायालय का अंतिम आदेश
-
सेवा समाप्ति का आदेश रद्द कर दिया गया।
-
एकल पीठ का निर्णय भी स्थगित किया गया।
-
दशरथ राम की सेवा बहाल करने और उन्हें समस्त सेवा लाभ एवं वेतन (संपूर्ण बकाया) दिए जाने का आदेश दिया गया।
-
यदि भविष्य में गंभीर आरोप हों तो विभाग नए सिरे से जांच शुरू कर सकता है, लेकिन पूरी पारदर्शिता और प्रक्रिया के अनुसार।
-
जांच के दौरान:
-
उन्हें पूरा आरोप-पत्र दिया जाए।
-
जांच अधिकारी की रिपोर्ट साझा की जाए।
-
उनके जवाब पर विचार किया जाए।
-
अंत में न्यायालय ने विभाग को निर्देश दिया कि यदि दोबारा कार्रवाई करनी हो तो वह छह महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करे।
🔹 महत्वपूर्ण विधिक सिद्धांत जो स्पष्ट हुए
-
Speaking Order का सिद्धांत:
-
हर प्रशासनिक आदेश, विशेष रूप से दंडात्मक प्रकृति का, स्पष्ट और कारण सहित होना चाहिए।
-
-
प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
-
सुनवाई का अधिकार मूलभूत मानवाधिकार है, जिसका उल्लंघन न्याय का निषेध है।
-
-
Guidelines vs. Statutory Rule:
-
भले ही विकास मित्र सरकारी कर्मचारी न हों, पर उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार करना ज़रूरी है।
-
-
Judicial Review की सीमा:
-
न्यायालय आदेशों की वैधता को परख सकता है, विशेषकर जब कार्यवाही मनमानी हो।
-
🧾 निष्कर्ष
यह फैसला न केवल दशरथ राम के व्यक्तिगत अधिकार की पुनर्स्थापना है, बल्कि यह उन हज़ारों संविदा या अर्ध-सरकारी कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण भी है, जो अक्सर बिना सुनवाई के सेवा से निकाल दिए जाते हैं। यह निर्णय प्रशासन को यह संदेश देता है कि सरकारी दिशा-निर्देशों का अर्थ यह नहीं कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अनदेखी की जाए।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM5NDgjMjAxOSMxI04=-UHkIh56nfDI=