परिचय
यह मामला एक पुलिस कांस्टेबल
Md. Giaaul Hak से
जुड़ा है, जिन्हें विभागीय
अनुशासनात्मक कार्यवाही के बाद सेवा
से बर्खास्त कर दिया गया
था। याचिकाकर्ता ने Patna High Court का रुख किया
और बर्खास्तगी संबंधी आदेशों को चुनौती दी,
यह दावा करते हुए
कि कार्यवाही बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली, 2005 (Bihar
CCA Rules, 2005) के अनुरूप नहीं की गई।
इस मामले में मुख्य मुद्दा
यह था कि – क्या
पुलिस विभाग के कर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई बिहार पुलिस मैनुअल के तहत होगी या बिहार CCA नियमों के अंतर्गत?
मामले
की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता Md. Giaaul
Hak, जो कि किशनगंज जिले के निवासी हैं, एक कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे।
- उन्हें 27.07.2019 के आदेश द्वारा तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
- इसके पश्चात अररिया जिले के पुलिस अधीक्षक ने भी उनके नाम को रजिस्टर से हटाने का आदेश जारी किया।
- याचिकाकर्ता ने इन सभी आदेशों को रद्द करने की माँग की, यह दावा करते हुए कि पूरी प्रक्रिया अवैध और नियमों के विपरीत थी।
याचिकाकर्ता
के तर्क
- बिना प्रक्रिया का पालन किए निर्णय:
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कार्यवाही बिहार CCA नियम, 2005 के अनुसार नहीं हुई।
विशेष रूप से, Presenting Officer (प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी) की नियुक्ति तो हुई, पर उसने अपनी भूमिका नहीं निभाई। इसके विपरीत, सभी कार्य Enquiry Officer (जांच अधिकारी) ने ही कर दिए। - साक्ष्यों की वैधता पर प्रश्न:
केवल एक ही गवाह (डॉक्टर) की गवाही दर्ज की गई, और बाकी साक्ष्यों पर न तो गवाहों के हस्ताक्षर थे और न ही जांच अधिकारी के। - रक्षा पक्ष को सुना नहीं गया:
याचिकाकर्ता ने जो दलीलें दी थीं, उन्हें न जांच अधिकारी, न अनुशासनात्मक अधिकारी और न ही अपीलीय अधिकारी ने संज्ञान में लिया। - Sonu
Kumar केस का हवाला:
उन्होंने Patna High Court द्वारा दिए गए Sonu Kumar बनाम बिहार राज्य (CWJC No. 17527 of 2019) के फैसले को उद्धृत किया, जिसमें इसी तरह की प्रक्रिया दोष के कारण कार्यवाही को रद्द किया गया था।
राज्य
पक्ष के तर्क
राज्य
के वकील ने इन
दलीलों का विरोध करते
हुए कहा:
- बिहार पुलिस मैनुअल लागू होता है:
उन्होंने कहा कि चूँकि याचिकाकर्ता पुलिस विभाग से है, इसलिए Bihar Police Manual लागू होता है, न कि Bihar CCA Rules, 2005। - प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही:
गवाहों की जाँच और प्रतिपरीक्षण हुआ था, और Enquiry Officer ने अपने विवेक से निर्णय लिया था। - Sonu
Kumar केस असंगत:
राज्य का कहना था कि Sonu Kumar केस यहाँ लागू नहीं होता, क्योंकि वहाँ CCA Rules लागू थे, जबकि पुलिस मामलों में Police Manual लागू होता है।
न्यायालय
का विश्लेषण
न्यायमूर्ति
डॉ. अंशुमन ने इस पूरे
प्रकरण में निम्नलिखित प्रमुख
बिंदुओं पर गौर किया:
1. कौन
सा नियम लागू होता है: पुलिस मैनुअल या CCA नियम?
- Bihar
Police Manual के
Rule 824 A का अध्ययन करते हुए न्यायालय ने पाँच श्रेणियों में पुलिसकर्मियों को बाँटा:
- (i)
IPS अधिकारियों पर AIS Rules, 1969
- (ii)
DSP रैंक पर 1930 के CCA Rules
- (iii)
मंत्रीस्तरीय कर्मचारियों पर 1935 के नियम
- (iv)
बिहार सशस्त्र पुलिस पर अलग नियमावली
- (v)
सामान्य पुलिसकर्मी – जो gazetted हों, उनके लिए 1930 नियम, और non-gazetted
हों, उनके लिए 1935
- लेकिन Bihar CCA Rules,
2005 ने इन पुराने नियमों (1930 व 1935) को विलीन कर दिया है।
इस कारण अब पुलिस मैनुअल में संदर्भित सभी पुरानी नियमावलियाँ CCA Rules, 2005 द्वारा प्रतिस्थापित हो चुकी हैं।
📌 इसलिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब सभी प्रकार के पुलिसकर्मियों पर Bihar CCA Rules, 2005 लागू होंगे।
2. क्या
प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी (Presenting Officer)
ने भूमिका निभाई?
- नियम 17 के विभिन्न उपखंडों के तहत, Presenting Officer
की कई स्पष्ट जिम्मेदारियाँ हैं – जैसे गवाहों की पेशी, दस्तावेज़ों की जांच, प्रतिपरीक्षण आदि।
- परंतु इस मामले में Presenting Officer ने कोई भूमिका निभाई ही नहीं, केवल रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया।
- कोर्ट ने इसे गंभीर प्रक्रिया त्रुटि माना और कहा कि जांच अधिकारी ने अनुचित रूप से दोनों भूमिकाएँ निभाई – जो न्यायसंगत नहीं है।
3. साक्ष्य
की वैधता पर प्रश्न
- याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों (Annexure-7)
में केवल डॉक्टर की गवाही पर हस्ताक्षर थे, बाकी गवाहों के नहीं।
- यह दर्शाता है कि गवाहों की गवाही ठीक से दर्ज नहीं हुई, जो पूरी कार्यवाही की वैधता को संदेह के घेरे में ले आता है।
न्यायालय
का निर्णय
- जाँच कार्यवाही त्रुटिपूर्ण पाई गई।
जांच, अनुशासनात्मक निर्णय और अपील – सभी आदेश प्रक्रियात्मक दोष के कारण ग़ैरक़ानूनी माने गए। - सभी आदेश रद्द किए गए:
- दिनांक 02.03.2019 का आदेश (Memo No. 500)
- दिनांक 30.10.2019 का आदेश (Memo No. 1570)
- दिनांक 27.07.2019 का आदेश (Memo No. 3640)
- दिनांक 05.08.2019 का आदेश (Memo No. 2288)
- पुनः विभागीय कार्यवाही की अनुमति:
राज्य सरकार यदि चाहे तो आरोपों के आधार पर फिर से CCA नियमों के अनुसार जांच शुरू कर सकती है। - याचिकाकर्ता की सेवा बहाल की जाए:
जब तक जांच पूरी नहीं होती, याचिकाकर्ता को पुनः सेवा में बहाल किया जाए।
निष्कर्ष
इस निर्णय ने यह स्पष्ट
कर दिया कि केवल
पुलिस मैनुअल का नाम लेकर
कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी नहीं
की जा सकती।
जब भी किसी कर्मचारी
के अधिकारों पर प्रश्न उठता
है, तब प्रक्रिया का पालन ही न्याय का आधार बनता है।
यह फैसला यह भी सिखाता
है कि सरकारी तंत्र
को चाहिए कि वह अनुशासन
के नाम पर कानूनी
अधिकारों का उल्लंघन न
करे, क्योंकि अदालतें केवल निष्कर्ष नहीं,
बल्कि प्रक्रिया की शुद्धता की भी जांच
करती हैं।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: