"दहेज उत्पीड़न, विवाहिक विवाद और स्थानांतरण याचिका: शाज़िया नाज़ बनाम बिहार राज्य – एक न्यायिक विवेचना"

 


परिचय

यह मामला शाज़िया नाज़ नामक एक महिला द्वारा दायर की गई एक याचिका से संबंधित है, जिसमें उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में मिले अत्याचारों और दहेज की मांग के कारण पति और ससुराल पक्ष के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करवाया था। इस केस में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इस मामले को पटना सिटी से स्थानांतरित कर छपरा (सारण) की किसी अदालत में स्थानांतरित किया जाए या नहीं।

यह मामला पटना उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुआ था और न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा द्वारा 3 नवंबर 2023 को इसका निर्णय सुनाया गया।


मामले की पृष्ठभूमि

शाज़िया नाज़ की शादी 27 मार्च 2018 को मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार मोहम्मद नदीम से हुई थी। कुछ समय बाद ही ससुराल वालों ने 5 लाख रुपये और एक ऑल्टो कार की मांग शुरू कर दी। दहेज की माँग पूरी नहीं होने पर शाज़िया को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।

जब वह गर्भवती हुई, तब उसे मायके भेज दिया गया जहाँ उसने 4 फरवरी 2020 को एक बच्ची को जन्म दिया। जब वह वापस ससुराल लौटी, तो उसे फिर से दहेज की मांग के चलते प्रताड़ित किया गया और 29 फरवरी 2020 को ससुराल से बाहर निकाल दिया गया।


मामला दर्ज और कानूनी कार्यवाही

शाज़िया ने 25 नवंबर 2020 को भारतीय दंड संहिता की धाराएं 498A, 323, 341, 307, 120B, 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज कराया।
9 मार्च 2021 को अदालत ने जांच गवाहों के बयान के आधार पर पति और अन्य ससुराल वालों के खिलाफ संज्ञान लिया।

पति ने 27 सितंबर 2021 को अग्रिम जमानत की याचिका दायर की, जिसे 10 नवंबर 2022 को मंजूरी दी गई, लेकिन शर्त रखी गई कि वह शाज़िया को ₹3,500 प्रति माह भरण-पोषण राशि देगा।


स्थानांतरण याचिका की पृष्ठभूमि

शाज़िया ने एक याचिका दायर कर मुकदमा पटना से छपरा स्थानांतरित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि:

  • वह अब छपरा में मायके में अपनी छोटी बेटी के साथ रह रही हैं।

  • उनके पिता एक निजी बीमा एजेंट हैं और अकेले उनकी देखभाल करते हैं।

  • पटना आकर अदालत में हाजिरी देना मुश्किल है क्योंकि छपरा से पटना की दूरी 80 किमी है और कोई सीधी ट्रेन सुविधा नहीं है।

  • वर्तमान में छपरा में फैमिली कोर्ट में एक अन्य केस (भरण-पोषण केस संख्या 140/2022) लंबित है।

पूर्व में भी उन्होंने एक बार ट्रांसफर की याचिका डाली थी, लेकिन तब पति से सुलह के बाद वह वापस ससुराल चली गई थीं। मगर कुछ समय बाद फिर से मारपीट कर उन्हें निकाल दिया गया।


विरोध में पति और परिवार का पक्ष

पति और उसके वकील ने तर्क दिया कि:

  • शाज़िया ने पूरे परिवार को झूठे केस में फँसाया है जबकि सभी का विवाहिक जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।

  • शाज़िया अक्सर बिना बताये छपरा चली जाती है और साथ रहने को तैयार नहीं है।

  • बेटी का जन्म पटना में हुआ और जन्मोत्सव भी ससुराल में मनाया गया, इसके फोटो भी प्रस्तुत किए गए।

  • पति केवल ₹20,000 प्रति माह कमाता है, ऐसे में पटना से छपरा आना-जाना कठिन है।

  • माता-पिता वृद्ध हैं और बीमार रहते हैं।


न्यायालय की विवेचना और निर्णय

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि क्रिमिनल केस को स्थानांतरित करने के लिए निम्नलिखित चार आधार होने चाहिए:

  1. मुकदमे के निष्पक्ष संचालन की संभावना न हो।

  2. याचिकाकर्ता को जान का खतरा हो।

  3. गवाह दबाव में आकर पलट रहे हों।

  4. स्थानांतरण से प्रतिवादी को कोई असंगत कठिनाई न हो।

न्यायालय ने पाया:

  • कोई गवाही अब तक नहीं हुई है, तो गवाहों के पलटने का सवाल ही नहीं।

  • शाज़िया ने न तो निष्पक्ष सुनवाई की असंभवता का जिक्र किया और न ही किसी खतरे का।

  • पति के परिवार को मुकदमे के छपरा स्थानांतरण से असुविधा होगी क्योंकि सभी पटना में रहते हैं।

साथ ही, अदालत ने यह भी देखा कि शाज़िया के पास पटना में भी मकान है, और वह वहाँ रह सकती हैं।


निष्कर्ष

अदालत ने सभी तथ्यों और पक्षों को सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता का स्थानांतरण की माँग न्यायसंगत नहीं है और इसका कोई मजबूत आधार नहीं है। इसलिए, शाज़िया द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका खारिज कर दी गई।

फैसला: याचिका खारिज। कोई लागत नहीं।


सारांश रूप में निष्कर्ष:

यह मामला भारतीय विवाहिक जीवन में उत्पन्न होने वाली जटिलताओं, दहेज प्रथा की समस्याओं, महिला उत्पीड़न और न्यायिक प्रक्रिया की पेचीदगियों का सशक्त उदाहरण है। न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्कों की गहराई से समीक्षा की और कानून के अनुसार निष्पक्ष निर्णय सुनाया। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि न्यायालय केवल भावनात्मक आधार पर नहीं, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण और ठोस साक्ष्यों के आधार पर फैसला करती है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM2MzM1IzIwMjMjMSNO-8bkJ8PTLZkA=