1. भूमिका:
दिनांक 06 दिसंबर 2023 को पटना उच्च
न्यायालय की खंडपीठ ने
एक अत्यंत संवेदनशील आपराधिक अपील का निपटारा
करते हुए एक घरेलू
सहायक सुकुमार जना को बलात्कार
(IPC धारा 376) और वसूली (IPC धारा
384) के गंभीर आरोपों से संदेह का
लाभ देते हुए बरी
कर दिया। इस निर्णय में
न्यायालय ने साक्ष्य की
सघन विवेचना की, अभियोजन की
खामियों को इंगित किया
और “स्टर्लिंग गवाह” की अवधारणा की
पुनः पुष्टि की।
मामले
की पृष्ठभूमि:
वर्ष
2019 में सहारसा जिले में एक
महिला द्वारा अपने घरेलू सहायक
सुकुमार जना पर यह
आरोप लगाया गया था कि
उसने चाय में नशीला
पदार्थ मिलाकर बलात्कार किया, फिर उसकी तस्वीरें
और वीडियो बना लिए और
उन्हीं के आधार पर
बार-बार ब्लैकमेल कर
वसूली करता रहा। उसने
आरोप लगाया कि आरोपी ने
उसकी अनुमति के बिना यौन
संबंध बनाए और फिर
वीडियो वायरल करने की धमकी
देकर लाखों रुपये ऐंठे।
मामले
में IPC की धारा 376, 384, 386, 354C, 354D के साथ-साथ
IT अधिनियम की धारा 67, 67A भी
जोड़ी गईं। सह-अभियुक्त
के रूप में आरोपी
की पत्नी को भी नामजद
किया गया।
निचली
अदालत का निर्णय:
सत्र
न्यायालय ने आरोपी की
पत्नी को सभी आरोपों
से बरी कर दिया
जबकि सुकुमार जना को IPC की
धारा 376 (बलात्कार) के लिए 20 वर्ष
की कठोर कारावास तथा
धारा 384 (वसूली) के लिए 3 वर्ष
की सजा सुनाई गई।
इसके अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया गया।
अभियोजन
का पक्ष:
अभियोजन
पक्ष ने यह तर्क
दिया कि—
- पीड़िता की रिपोर्ट पर विश्वास किया जाए क्योंकि उसने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर यह मामला दर्ज कराया।
- आरोपी लगातार धमकी देता रहा और पीड़िता से बैंक खातों में पैसे डलवाता रहा।
- व्हाट्सऐप चैट्स और बैंक स्टेटमेंट्स से पैसे के लेन-देन की पुष्टि होती है।
- आरोपी ने कभी भी अपने मोबाइल फोन, नंबर या चैट्स से इनकार नहीं किया।
अपीलकर्ता
(आरोपी) का पक्ष:
अपील
के दौरान आरोपी के वकील ने
निम्नलिखित दलीलें दीं—
- पीड़िता की गवाही विरोधाभासी है। FIR, 164 CrPC का बयान, और न्यायालय में गवाही – तीनों में तथ्य अलग-अलग हैं।
- FIR में घटना की तारीख का उल्लेख नहीं है।
- कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया, ना ही घटनास्थल (गया) की जांच की गई।
- व्हाट्सऐप चैट और बैंक स्टेटमेंट FIR के साथ संलग्न किए गए जबकि वे FIR के दिनांक से एक दिन बाद के हैं, जो रिकॉर्ड में हेरफेर की ओर इशारा करता है।
- पीड़िता स्वयं कहती है कि रिपोर्ट उसने टाइप की, लेकिन कोर्ट में पूछने पर यह तक नहीं बता सकी कि “हिंदी में अपना नाम कैसे टाइप करती है।”
उच्च
न्यायालय का विश्लेषण:
1. पीड़िता
की साक्ष्य पर संदेह:
- न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि एकमात्र गवाह यदि विश्वसनीय (स्टर्लिंग) नहीं है तो उस पर बिना समर्थन के दोषसिद्धि नहीं हो सकती।
- पीड़िता का 164 CrPC में दिया गया बयान और न्यायालय में दी गई गवाही आपस में मेल नहीं खाते।
2. FIR में
समय, तिथि और स्थान का स्पष्ट उल्लेख नहीं:
- FIR
में बलात्कार की कोई दिनांक या माह नहीं बताई गई।
- गया स्थित फ्लैट में कई परिवार रहते थे, फिर भी किसी ने कुछ नहीं देखा और न ही जांच अधिकारी वहां जांच करने गया।
3. बैंक
स्टेटमेंट का अनियमित उपयोग:
- FIR
दिनांक 28.06.2019
है, जबकि उसमें संलग्न बैंक स्टेटमेंट्स 29.06.2019 के हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि FIR में बाद में जोड़-तोड़ की गई।
4. फोरेंसिक
सबूतों की अनुपस्थिति:
- व्हाट्सऐप चैट्स की फोटोकॉपी FIR में संलग्न की गई लेकिन उसका कोई वैधानिक प्रमाण (Section 65B
Certificate) प्रस्तुत
नहीं किया गया।
- मोबाइल से कोई भी अश्लील वीडियो या तस्वीर बरामद नहीं हुई।
5. “स्टर्लिंग
गवाह” की अवधारणा:
- सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Rai Sandeep बनाम NCT दिल्ली को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने कहा कि जब पीड़िता की गवाही विरोधाभासी हो, उसने घटनास्थल नहीं बताया हो और कई जगह झूठ पकड़ा गया हो, तो उसे “स्टर्लिंग गवाह” नहीं माना जा सकता।
अंतिम
निर्णय:
उच्च
न्यायालय ने यह मानते
हुए कि अभियोजन अपने
आरोपों को “संदेह से
परे” सिद्ध नहीं कर सका,
आरोपी को दोनों धाराओं
(376 और 384 IPC) से बरी कर
दिया। न्यायालय ने साफ कहा
कि—
“केवल
यह तथ्य कि कुछ
रकम आरोपी के खाते में
ट्रांसफर की गई, यह
सिद्ध नहीं करता कि
यह वसूली (extortion) के तहत किया
गया।”
इसके
साथ ही सत्र न्यायालय
द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा को
निरस्त करते हुए आरोपी
को तत्काल रिहा करने का
आदेश दिया गया।
निष्कर्ष:
यह निर्णय दर्शाता है कि यौन
अपराधों के मामलों में
भी न्यायालय केवल भावनात्मक पक्ष
नहीं देखता, बल्कि साक्ष्यों की कठोर कसौटी
पर हर तत्व को
परखता है। साथ ही
यह भी स्पष्ट करता
है कि जब किसी
महिला का बयान एकमात्र
आधार हो, तो उसकी
विश्वसनीयता अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
यदि अभियोजन के साक्ष्य संदिग्ध
हों, गवाह की साक्षी
विरोधाभासी हो और तकनीकी
प्रमाण सही प्रकार से
प्रस्तुत न किए गए
हों, तो दोषसिद्धि नहीं
टिक सकती।
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