परिचय
इस केस में बिहार के विभिन्न जिलों के 19 शिक्षकों ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। ये सभी शिक्षक राज्य सरकार की एक योजना के तहत तालीमी मरकज़ शिक्षक स्वयंसेवी के पद पर नियुक्त किए गए थे। इनकी प्रमुख माँग थी कि उन्हें 2013 से अब तक का मानदेय (honorarium) दिया जाए और बिना किसी समाप्ति पत्र (termination letter) के उनकी सेवाएं बहाल की जाएं।
हालांकि, कोर्ट ने इनकी याचिका को अस्वीकार्य (not maintainable) मानते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह पद न तो स्थायी है और न ही कोई वैधानिक अधिकार देता है, अतः संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका नहीं चल सकती।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही शिक्षा योजना के अंतर्गत एक वर्ष के संविदा (contract) आधार पर नियुक्त किया गया था। यह नियुक्तियाँ "तालीमी मरकज़ शिक्षक स्वयंसेवी" के पद पर हुई थीं।
इनका कहना था कि:
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उन्हें वर्ष 2013 से अब तक का मानदेय नहीं दिया गया है।
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उन्हें किसी प्रकार की समाप्ति सूचना दिए बिना सेवा से हटा दिया गया है।
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उनका कार्य प्रभावी था और वे निरंतर सेवा में बने रहना चाहते हैं।
मुख्य मुद्दे
1. मानदेय का भुगतान
याचिकाकर्ताओं ने यह दावा किया कि उन्हें 2013 से अब तक किसी प्रकार का मानदेय नहीं मिला, जो कि उनके अधिकारों का हनन है।
2. सेवा बहाली की मांग
उन्होंने कोर्ट से यह भी गुज़ारिश की कि उन्हें पुनः सेवा में बहाल किया जाए क्योंकि उनके सेवा समाप्ति का कोई विधिवत आदेश (termination letter) नहीं दिया गया।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि:
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तालीमी मरकज़ शिक्षक स्वयंसेवक की नियुक्ति योजना के अंतर्गत हुई थी, यह कोई स्थायी सरकारी पद नहीं है।
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यह नियमित सेवा नहीं है और न ही इसके लिए कोई नियुक्ति नियमावली (recruitment rules) है।
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यह पद एक संविधानिक या वैधानिक अधिकार उत्पन्न नहीं करता, अतः इसके विरुद्ध रिट याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने इस पूरे मामले की सुनवाई करते हुए राज चौधरी बनाम बिहार राज्य (CWJC No. 18107 of 2016) मामले को आधार बनाया, जिसमें कहा गया था कि:
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टोलासेवक/तालीमी मरकज़ शिक्षक की नियुक्ति योजना आधारित है, न कि स्थायी सरकारी सेवा।
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ऐसे पदों पर नियुक्त व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट में रिट याचिका दाखिल नहीं कर सकते क्योंकि यह कोई वैधानिक अधिकार उत्पन्न नहीं करता।
यह फैसला एकल पीठ (Single Judge) द्वारा दिया गया था जिसे बाद में डिवीजन बेंच ने भी सही ठहराया।
कोर्ट का फैसला
जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि:
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तालीमी मरकज़ शिक्षक स्वयंसेवी का पद न तो स्थायी है और न ही नियमित सरकारी सेवा का हिस्सा।
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यह वैधानिक पद नहीं है, अतः याचिकाकर्ताओं के पास रिट याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं बनता।
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ऐसे मामलों के लिए याचिकाकर्ता अन्य वैकल्पिक उपायों की ओर रुख कर सकते हैं (जैसे - श्रम न्यायालय या प्रशासनिक स्तर पर निवेदन)।
अतः कोर्ट ने याचिका को अस्वीकार्य मानते हुए खारिज कर दिया।
महत्वपूर्ण बिंदु
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योजना आधारित नियुक्तियाँ कोर्ट द्वारा संवैधानिक अधिकार नहीं मानी जातीं, खासकर जब वे संविदा पर हों।
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मानदेय या सेवा बहाली की माँग केवल तभी संभव है जब नियुक्ति नियमों के तहत हुई हो।
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रिट याचिका केवल उन मामलों में होती है जहाँ किसी व्यक्ति का वैधानिक या संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुआ हो।
समाप्ति और निष्कर्ष
यह फैसला उन सभी संविदा पर नियुक्त कर्मियों के लिए महत्वपूर्ण है जो किसी योजना या परियोजना के तहत कार्यरत हैं और यह समझते हैं कि उन्हें स्थायी कर्मियों की तरह अधिकार प्राप्त हैं।
कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि योजना आधारित पदों पर नियुक्त व्यक्ति जब तक किसी नियमित नियुक्ति प्रक्रिया से नहीं गुजरते, उन्हें संविधानिक अदालतों से राहत नहीं मिल सकती।
भविष्य के लिए सुझाव
यदि योजना आधारित नियुक्त कर्मियों को स्थायित्व या अन्य लाभ की उम्मीद है तो उन्हें चाहिए कि:
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वे अपनी नियुक्ति प्रक्रिया और सेवा शर्तों का विस्तार से अध्ययन करें।
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उनके पास उपलब्ध वैकल्पिक कानूनी उपायों (Alternate Remedies) की जानकारी रखें।
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स्थायी नियुक्तियों के लिए निर्धारित प्रक्रिया में भाग लें।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTUxODkjMjAxOSMxI04=-lo4Y--am1--TVDypQ=