परिचय:
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें मनी कुमारी नामक महिला द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए उसकी संपत्ति (एक कमरा) की जब्ती को गैरकानूनी घोषित किया गया। यह मामला बिहार उत्पाद एवं मद्य निषेध अधिनियम, 2016 के तहत दर्ज किया गया था, लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि शराब उसकी संपत्ति से बरामद हुई, उसे सजा नहीं दी जा सकती जब तक उसकी संलिप्तता प्रमाणित न हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता मनी कुमारी, जो मूल रूप से बेगूसराय की निवासी हैं, वर्ष 2007 से अपने पति के साथ कोलकाता में रह रही हैं। उनका एक मकान बेगूसराय में है जिसे उन्होंने किराए पर देने के लिए अपने ससुर को चाबी सौंपी थी। ससुर ने राहुल कुमार नामक व्यक्ति को ₹1200 मासिक किराए पर मकान का एक कमरा किराए पर दिया।
2 फरवरी 2022 को, पुलिस ने उस कमरे में छापा मारा और वहाँ से 61.5 लीटर अवैध विदेशी शराब बरामद की। इसके आधार पर बेगूसराय उत्पाद थाना कांड संख्या 18/2022 दर्ज किया गया।
प्राथमिक कानूनी कार्रवाई:
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जब्ती की कार्यवाही: जिला पदाधिकारी, बेगूसराय द्वारा जब्ती का मामला दर्ज किया गया (मामला संख्या 09/2022)। मनी कुमारी ने 11 अप्रैल 2022 को इस मामले में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दिया, लेकिन फिर भी 6 फरवरी 2023 को उनका कमरा जब्त करने का आदेश जारी किया गया।
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अपील: मनी कुमारी ने उत्पाद आयुक्त, बिहार के समक्ष अपील (मामला संख्या 72/2023) दायर की, जिसे 12 जून 2023 को खारिज कर दिया गया।
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उच्च न्यायालय में याचिका: इसके बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट याचिका संख्या 12807/2023 दायर की।
याचिकाकर्ता की दलीलें:
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उन्होंने बताया कि वह कोलकाता में रहती हैं और उनका इस मामले से कोई संबंध नहीं है।
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राहुल कुमार ही आरोपी है और पुलिस जांच के बाद 18 सितंबर 2022 को उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया।
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90 दिनों की समय-सीमा में जब्ती की कार्यवाही नहीं पूरी की गई, जो कानून का स्पष्ट उल्लंघन है (बुन्नीलाल साह बनाम बिहार राज्य मामला, 2021 के अनुसार)।
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उनकी ओर से यह भी कहा गया कि किसी भी स्तर पर उनके द्वारा अपराध में भागीदारी का कोई प्रमाण नहीं मिला।
सरकारी पक्ष की दलीलें:
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सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि शराब याचिकाकर्ता के मकान से मिली है, और उत्पाद अधिनियम की धारा 56 के अनुसार, ऐसी संपत्ति को जब्त किया जा सकता है, चाहे वह किराए पर हो।
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उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कानून "place specific" है, यानी अपराध जहां हुआ है, वहां की संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है।
न्यायालय का निर्णय:
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पुलिस की अंतिम रिपोर्ट: न्यायालय ने माना कि पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता को क्लीन चिट दी गई है और उनके विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष साक्ष्य नहीं है।
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90 दिनों की समय सीमा: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब्ती की कार्यवाही याचिकाकर्ता की उपस्थिति के 90 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए थी, जबकि इसमें 10 महीने लग गए।
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न्यायालय का स्पष्ट निर्देश: कोर्ट ने जब्ती आदेश और अपील खारिज करने वाले आदेश दोनों को रद्द कर दिया। साथ ही, राज्य सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता का कमरा तत्काल प्रभाव से मुक्त किया जाए।
महत्वपूर्ण बिंदु (Takeaways):
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संपत्ति का मालिक होना स्वयं में अपराध नहीं: जब तक मालिक की संलिप्तता साबित नहीं होती, महज उनके नाम पर संपत्ति से शराब मिलना पर्याप्त नहीं है।
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प्रक्रियागत न्याय: कानूनी कार्यवाहियों में समय सीमा का पालन अनिवार्य है।
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किरायेदार का कृत्य, मकान मालिक की जिम्मेदारी नहीं: यदि कोई व्यक्ति मकान किराए पर लेता है और अवैध कार्य करता है, तो मकान मालिक को बिना दोष के सजा नहीं दी जा सकती।
निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि कानून के दुरुपयोग के खिलाफ न्यायपालिका सतर्क है। बिहार में शराबबंदी के सख्त कानून हैं, लेकिन न्यायिक प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि निर्दोष व्यक्तियों को इसका शिकार न बनाया जाए। यह फैसला उन सभी मकान मालिकों के लिए एक राहत है जो किराए पर अपनी संपत्तियाँ देते हैं और किसी किरायेदार के गैरकानूनी कार्य से प्रभावित हो जाते हैं।
पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI4MDcjMjAyMyMxI04=-bSvPJ1ZsWSM=