"सरकारी नौकरी में चयन के बाद नियुक्ति में देरी: न्यायालय का हस्तक्षेप और नियुक्ति का आदेश"

 


भूमिका:

यह मामला बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित एक प्रतियोगी परीक्षा में चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति में हुई अत्यधिक देरी से संबंधित है। याचिकाकर्ता ने सफलतापूर्वक परीक्षा पास की और उसे चयन सूची में स्थान मिला, फिर भी विभाग ने कई वर्षों तक उसे नियुक्त नहीं किया। इस स्थिति में याचिकाकर्ता को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।


प्रसंग और पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता ने बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा वर्ष 2011 में निकाली गई विज्ञप्ति (Advt. No. 110/2010) के तहत "सहायक उर्दू अनुवादक" (Assistant Urdu Translator) पद के लिए आवेदन दिया था। वह सफल हुआ और उसकी नियुक्ति की अनुशंसा आयोग ने सरकार को भेजी थी।

इसके बावजूद, 10 वर्षों तक याचिकाकर्ता को नियुक्त नहीं किया गया। राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति को यह कहकर टाल दिया गया कि पदों की पुन: गणना की जा रही है और अभी तक रिक्तियों की सही स्थिति स्पष्ट नहीं है।

याचिकाकर्ता ने इस अन्याय के खिलाफ Patna High Court में याचिका दायर की (Civil Writ Jurisdiction Case No. 346 of 2023) और यह मांग की कि उसे नियुक्त किया जाए क्योंकि वह चयनित अभ्यर्थी है और नियुक्ति से इंकार करना अवैध है।


याचिकाकर्ता की दलीलें:

  1. याचिकाकर्ता ने परीक्षा पास कर ली और उसका चयन आयोग द्वारा किया गया।

  2. उसका नाम मेरिट सूची में शामिल था और उसने सभी आवश्यक दस्तावेज समय पर जमा कर दिए।

  3. विभाग की लापरवाही और उदासीनता के कारण नियुक्ति आदेश निर्गत नहीं किया गया।

  4. न्यायिक सिद्धांतों के अनुसार, यदि कोई अभ्यर्थी वैध चयन के पश्चात नियुक्त नहीं किया जाता है, तो यह न्याय की अवहेलना है।

  5. इतने वर्षों की प्रतीक्षा ने उसके कैरियर को गंभीर रूप से प्रभावित किया।


प्रतिवादी (राज्य सरकार) की दलीलें:

  1. सरकार ने कहा कि रिक्तियों की संख्या में परिवर्तन हुआ और इसलिए नियुक्ति पर पुनर्विचार आवश्यक था।

  2. कुछ प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ होने के कारण नियुक्तियाँ रोकी गईं।

  3. विभागीय जाँच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जा सकती है।


न्यायालय के विचार और आदेश:

1. न्यायालय ने राज्य सरकार के तर्कों को अस्वीकार किया:

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आयोग द्वारा चयन के बाद नियुक्ति आदेश में इस प्रकार की देरी प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है। यदि चयन प्रक्रिया पारदर्शी रही है और उम्मीदवारों ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी हैं, तो नियुक्ति में देरी करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

2. वैधानिक स्थिति का उल्लेख:

न्यायालय ने कहा कि नियुक्ति की प्रक्रिया में एक बार आयोग द्वारा चयन हो जाने के बाद सरकार को केवल औपचारिक नियुक्ति आदेश जारी करना होता है। चयनित अभ्यर्थी को अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा करवाना न्यायोचित नहीं है।

3. संविधान का हवाला:

अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) के अंतर्गत, चयनित अभ्यर्थी को नियुक्त न करना असंवैधानिक माना गया।

4. न्यायालय का निर्देश:

न्यायालय ने यह आदेश दिया कि राज्य सरकार याचिकाकर्ता की नियुक्ति 6 सप्ताह के भीतर करे। यदि कोई प्रशासनिक या तकनीकी बाधा हो, तो उसका स्पष्ट और वैध स्पष्टीकरण देना आवश्यक होगा।


न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • “राज्य सरकार की ओर से इस प्रकार की देरी केवल प्रशासनिक असक्षमता को दर्शाती है।”

  • “एक सफल उम्मीदवार को नियुक्त न करना उसके अधिकारों का उल्लंघन है।”

  • “सरकार की जवाबदेही है कि वह आयोग द्वारा की गई चयन प्रक्रिया को समय पर क्रियान्वित करे।”


निष्कर्ष:

यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का उदाहरण है। Patna High Court ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी अभ्यर्थी ने चयन की सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं, तो उसे नियुक्ति देने में देरी करना न केवल अनुचित बल्कि गैरकानूनी भी है।

इस फैसले से यह संदेश गया है कि सरकार को अपने कर्तव्यों का पालन समयबद्ध और निष्पक्ष तरीके से करना चाहिए। वरना, नागरिकों को उनके अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय हस्तक्षेप करेगा।


सामाजिक और कानूनी महत्व:

  • यह मामला उन हजारों युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है जो योग्य होते हुए भी नियुक्ति की प्रतीक्षा में हैं।

  • इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय नियुक्ति प्रक्रिया में अनुचित विलंब को बर्दाश्त नहीं करेगा।

  • यह निर्णय प्रशासनिक प्रणाली में उत्तरदायित्व और पारदर्शिता लाने के लिए एक मजबूत संदेश है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiMxMTMjMjAyMiMxI04=-NFxkoslTiyA=