परिचय
यह लेख पटना उच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण फैसले का सारांश प्रस्तुत करता है, जो अर्जुन प्रसाद सिंह द्वारा दायर एक याचिका से संबंधित है। इस याचिका में, याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), पटना बेंच के 18 अक्टूबर, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी सेवा से बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा गया था। यह मामला सरकारी कर्मचारियों की सेवा शर्तों और प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के निर्णयों पर उच्च न्यायालयों की न्यायिक समीक्षा के दायरे को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
मामले की पृष्ठभूमि
अर्जुन प्रसाद सिंह, जो डाक विभाग में कार्यरत थे, को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इस बर्खास्तगी आदेश को उन्होंने सबसे पहले केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), पटना बेंच के समक्ष चुनौती दी। कैट ने सुनवाई के बाद 18 अक्टूबर, 2023 को अपने आदेश में अर्जुन प्रसाद सिंह की याचिका को खारिज कर दिया।
कैट के इस आदेश से असंतुष्ट होकर अर्जुन प्रसाद सिंह ने पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट याचिका संख्या 6284/2024 दायर की। इस याचिका में उन्होंने कैट के आदेश को रद्द करने और उन्हें सेवा में बहाल करने की प्रार्थना की। याचिका में भारत संघ, डाक विभाग के सचिव, महानिदेशक डाक विभाग, बिहार सर्किल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, निदेशक डाक सेवाएं (मुख्यालय), बिहार सर्किल, निदेशक डाक सेवाएं, झारखंड सर्किल, गया डिवीजन के वरिष्ठ डाक अधीक्षक और गया के डाक निरीक्षक (केंद्रीय उप-मंडल) को प्रतिवादी बनाया गया था।
याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता अर्जुन प्रसाद सिंह की ओर से अधिवक्ता श्री ओम प्रकाश सिंह ने पैरवी की। हालांकि, याचिका में उनके विशिष्ट तर्कों का विस्तृत उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन यह समझा जा सकता है कि उन्होंने अपनी बर्खास्तगी आदेश को अन्यायपूर्ण और नियमों के विरुद्ध बताते हुए कैट के आदेश को चुनौती दी होगी। संभवतः उन्होंने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन या प्रक्रियात्मक त्रुटियों का हवाला दिया होगा।
प्रतिवादियों के तर्क
प्रतिवादियों, यानी भारत संघ और डाक विभाग की ओर से अधिवक्ता श्री मोहित अग्रवाल, सीजीसी, उपस्थित हुए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के तर्कों का विरोध किया और कैट के आदेश को सही ठहराया। दस्तावेज़ के पृष्ठ 10 में प्रतिवादी संख्या 3 द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण का उल्लेख है, जो एक एलपीजी गोदाम के निर्माण के लिए वैकल्पिक भूमि प्रदान करने से संबंधित है। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई नीतियों के अनुरूप थी और इसमें कोई भाई-भतीजावाद या पक्षपात शामिल नहीं था, जैसा कि याचिकाकर्ता द्वारा सुझाया गया था।
इसके अतिरिक्त, यह स्पष्ट किया गया कि प्रतिवादी संख्या 9 द्वारा प्रस्तावित मूल भूमि का फील्ड सत्यापन (एफवीसी) सभी पहलुओं पर संतोषजनक पाया गया था, और इसी आधार पर वैकल्पिक भूमि के प्रावधान के उनके अनुरोध को स्वीकार किया गया था।
हालांकि यह तर्क सीधे तौर पर अर्जुन प्रसाद सिंह की बर्खास्तगी से संबंधित नहीं है, लेकिन यह संभव है कि मूल मामले में याचिकाकर्ता ने कुछ अनियमितताओं या पक्षपात का आरोप लगाया हो, जिसके जवाब में प्रतिवादियों ने एलपीजी गोदाम के मामले में अपनी कार्रवाई को सही ठहराया।
उच्च न्यायालय का निर्णय
माननीय न्यायमूर्ति श्री पी. बी. बजंत्री और माननीय न्यायमूर्ति श्री आलोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। 8 मई, 2024 को दिए गए अपने मौखिक निर्णय में, न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित सिद्धांतों के आलोक में ऐसा कोई मामला नहीं बना पाया है जिससे कैट के 18 अक्टूबर, 2023 के आदेश में हस्तक्षेप किया जा सके। परिणामस्वरूप, कैट के ओ.ए. संख्या 050/00813/2019 और एम.ए. संख्या 050/00813/2019 में पारित आदेश को बरकरार रखा गया और याचिका खारिज कर दी गई।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कैट के आदेश को पलटने का कोई कारण नहीं पाया। इसका तात्पर्य यह है कि उच्च न्यायालय ने कैट के इस निष्कर्ष से सहमति जताई कि अर्जुन प्रसाद सिंह की बर्खास्तगी उचित थी या कम से कम न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता वाली त्रुटिपूर्ण नहीं थी।
निर्णय का विश्लेषण
पटना उच्च न्यायालय का यह निर्णय प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के आदेशों पर उच्च न्यायालयों की न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे को दर्शाता है। उच्च न्यायालय आमतौर पर कैट जैसे न्यायाधिकरणों के तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि न्यायाधिकरण का निर्णय विकृत है, कानून की त्रुटि पर आधारित है, या नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
इस मामले में, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता ऐसा कोई आधार स्थापित करने में विफल रहा है जो कैट के आदेश में हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहरा सके। इसका मतलब है कि कैट ने संभवतः बर्खास्तगी के कारणों और प्रक्रिया की सावधानीपूर्वक जांच की होगी, और उच्च न्यायालय को उस निष्कर्ष में कोई महत्वपूर्ण त्रुटि नहीं मिली।
एलपीजी गोदाम के निर्माण से संबंधित प्रतिवादियों का स्पष्टीकरण संभवतः मूल प्रशासनिक कार्यवाही में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए किसी आरोप के जवाब में था। उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय से यह प्रतीत होता है कि इस पहलू का याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी के मुख्य मुद्दे पर कोई निर्णायक प्रभाव नहीं पड़ा।
निष्कर्ष
पटना उच्च न्यायालय ने अर्जुन प्रसाद सिंह बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, पटना बेंच के 18 अक्टूबर, 2023 के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता कैट के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए कोई ठोस आधार प्रस्तुत करने में विफल रहा। यह निर्णय प्रशासनिक मामलों में न्यायिक समीक्षा के सिद्धांतों को पुष्ट करता है, जिसमें उच्च न्यायालय आमतौर पर न्यायाधिकरणों के सुविचारित निर्णयों का सम्मान करते हैं जब तक कि उनमें स्पष्ट कानूनी या प्रक्रियात्मक त्रुटियां न हों।
यह मामला उन सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है जो सेवा से संबंधित मामलों में कानूनी सहारा लेते हैं। उच्च न्यायालयों द्वारा प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के निर्णयों में हस्तक्षेप तभी किया जाता है जब यह दिखाया जा सके कि न्यायाधिकरण ने कानून का गलत प्रयोग किया है, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है, या उसका निर्णय पूरी तरह से तर्कहीन है।
अतिरिक्त जानकारी (दस्तावेज से)
दस्तावेज के पृष्ठ 11 में निर्णय की कुछ तकनीकी जानकारी दी गई है:
- आदेश देने वाले न्यायाधीश: न्यायमूर्ति पी. बी. बजंत्री और न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय
- निर्णय की तिथि: 8 मई, 2024
- निर्णय का प्रकार: एनएएफआर (गैर-रिपोर्ट करने योग्य)
- अपलोड करने की तिथि: 14 मई, 2024
यह जानकारी इस विशेष कानूनी मामले के दस्तावेजी पहलू को दर्शाती है।
संक्षेप में, अर्जुन प्रसाद सिंह की सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पटना उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई, जिससे केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को बरकरार रखा गया जिसमें उनकी बर्खास्तगी को सही ठहराया गया था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा कैट के निर्णय में हस्तक्षेप के लिए कोई पर्याप्त कारण नहीं पाया।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjI4NCMyMDI0IzEjTg==-fZjeKm53ipM=