जमीन विवाद के मामले में पटना हाई कोर्ट ने फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी के आरोप रद्द किए

जमीन विवाद के मामले में पटना हाई कोर्ट ने फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी के आरोप रद्द किए

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक ज़मीन विवाद से जुड़े गंभीर आपराधिक आरोपों—जैसे कि फर्जी दस्तावेज़ बनाना (धारा 467, 468) और धोखाधड़ी (धारा 420) —को खारिज कर दिया। यह मामला समस्तीपुर जिले के उजियारपुर थाना क्षेत्र से संबंधित था।

मामले की शुरुआत एक महिला द्वारा दर्ज एफआईआर से हुई, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 27.05.2013 को एक ज़मीन का रजिस्टर्ड बैनामा कराया था। इसके कुछ महीनों बाद, उसी ज़मीन को एक अन्य व्यक्ति, सुखदेव शर्मा ने फिर से बेच दिया और दूसरा रजिस्टर्ड बैनामा 28.12.2013 को धनपत कुमार के नाम पर कर दिया गया। शिकायतकर्ता का आरोप था कि यह फर्जी बैनामा धोखाधड़ी की नीयत से किया गया।

अन्य आरोपी व्यक्ति इस बैनामा के गवाह या लेखक थे।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह ज़मीन उनके पैतृक संपत्ति का हिस्सा है और परिवार के अंदर की हिस्सेदारी से संबंधित विवाद है। उन्होंने वंशवृक्ष (genealogy) प्रस्तुत किया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मूल ज़मीन के मालिक और विवाद में शामिल व्यक्ति एक ही परिवार से हैं।

पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले Md. Ibrahim v. State of Bihar [(2009) 4 PLJR (SC) 99] का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि जब तक कोई व्यक्ति किसी और की जगह खुद को दिखा कर दस्तावेज़ नहीं बनाता या किसी की अनुमति के झूठे दावे पर दस्तावेज़ नहीं बनाता, तब तक उसे फर्जी दस्तावेज़ (false document) नहीं कहा जा सकता।

यहाँ न तो किसी ने झूठे नाम से बैनामा किया था और न ही शिकायतकर्ता इस दूसरे सौदे में पार्टी थीं। इसलिए उन्हें धोखा हुआ हो ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया।

कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को धोखा हुआ होता, तो वह धनपत कुमार (जिसने दूसरी बार ज़मीन खरीदी) होता, लेकिन उसने कोई शिकायत नहीं की। इसलिए यह मामला न तो फर्जी दस्तावेज़ बनाने का था और न ही धोखाधड़ी का।

इसलिए कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा 28.01.2015 को जारी संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया और सभी पांच याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया को समाप्त कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला साफ तौर पर बताता है कि ज़मीन या संपत्ति के विवादों में हर मामला आपराधिक नहीं होता। कई बार पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद होते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर बार फर्जीवाड़ा या धोखाधड़ी का मामला बनाया जाए।

यह निर्णय उन लोगों के लिए राहत भरा है जो किसी ज़मीन विवाद में अनजाने में गवाह या लेखक बन जाते हैं और बाद में उनके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज हो जाती है।

हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक ठगी करने की मंशा और असली धोखाधड़ी साबित न हो, तब तक किसी को आपराधिक मुकदमे में नहीं घसीटा जा सकता।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या विवादित ज़मीन पर दोबारा बैनामा करने से फर्जीवाड़ा या धोखाधड़ी का मामला बनता है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, जब तक कोई झूठे नाम या अनुमति के बिना दस्तावेज़ न बनाया गया हो।
  • क्या शिकायतकर्ता, जो दूसरे बैनामा का हिस्सा नहीं था, धोखाधड़ी का दावा कर सकता है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, क्योंकि वह इस सौदे में पक्षकार नहीं था।
  • क्या गवाह या लेखक भी धोखाधड़ी में आरोपी हो सकते हैं?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, जब तक वे जानबूझकर ठगी में शामिल न हों।
  • क्या ऐसे मामले में आईपीसी की धारा 420, 467, 468 लागू होती है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, जब तक स्पष्ट रूप से झूठे दस्तावेज़ या धोखाधड़ी साबित न हो।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Md. Ibrahim & Others v. State of Bihar & Another, 2009 (4) PLJR (SC) 99

मामले का शीर्षक

Dhanpat Kumar & Ors. v. State of Bihar & Anr.

केस नंबर

Criminal Miscellaneous No. 13347 of 2015

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 470

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री आलोक कुमार सिन्हा, अधिवक्ता – याचिकाकर्ताओं की ओर से
  • श्री श्याम कुमार सिंह, एपीपी – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMxMzM0NyMyMDE1IzEjTg==-lpQd–ak1–rm8fI8=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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