🔎 भूमिका
परिवार की इकाई जब आपसी सम्मान, स्नेह और विश्वास की नींव पर टिकती है, तो वह एक सुखमय जीवन का आधार बनती है। लेकिन जब इस नींव में दरार पड़ जाए, और यह दरार वर्षों तक बनी रहे, तो विवाह का बंधन केवल कागज़ों तक सीमित रह जाता है। निशा गुप्ता बनाम उदय चंद गुप्ता का यह केस पटना हाई कोर्ट में ऐसे ही एक विवाह विच्छेद की कानूनी पुष्टि का उदाहरण है, जिसमें पति ने पत्नी पर मानसिक क्रूरता के आरोप लगाए और पारिवारिक न्यायालय द्वारा तलाक की डिक्री (decree of divorce) पारित की गई।
📜 मामले की पृष्ठभूमि
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विवाह:
10 जुलाई 1987 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। -
संतान:
दो पुत्र – नरेंद्र भारती (जन्म 1991) और आदित्य कुमार (जन्म 1998) -
तलाक याचिका:
पति द्वारा 29 जुलाई 2008 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत दायर की गई, जिसमें पत्नी द्वारा मानसिक क्रूरता का आरोप लगाया गया। -
प्राथमिक निर्णय:
7 अक्टूबर 2017 को नालंदा फैमिली कोर्ट ने तलाक मंजूर कर लिया। -
वर्तमान अपील:
पत्नी द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने हेतु मिसलेनियस अपील संख्या 5/2018 पटना हाई कोर्ट में दायर की गई।
🧑⚖️ पति के आरोप: पत्नी की क्रूरता
पति उदय चंद गुप्ता ने पत्नी निशा गुप्ता के खिलाफ निम्नलिखित आरोप लगाए:
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संपर्कविच्छेद: 1999 के बाद से पत्नी से किसी प्रकार का वैवाहिक संबंध नहीं रहा।
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अशिष्ट व्यवहार: पत्नी अपनी सास से गाली-गलौज करती थीं, खाना नहीं बनाती थीं, और कई-कई महीनों तक बिना बताए मायके चली जाती थीं।
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आर्थिक अनियमितता: खेतों से अनाज, चांदी-पीतल के बर्तन, और गहनों की बिक्री बिना पति की जानकारी के की।
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धमकी: पति को असामाजिक तत्वों से मरवाने की धमकी दी।
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अवहेलना: पति जब गंभीर रूप से बीमार हुए, तो पत्नी देखने तक नहीं आईं।
🧕 पत्नी का पक्ष: पति की उपेक्षा और हिंसा
निशा गुप्ता ने अपने लिखित बयान में पति पर कई गंभीर आरोप लगाए:
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पति का अवैध संबंध: पति का एक महिला से संबंध था, जिसे वह घर पर लाते थे।
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शारीरिक प्रताड़ना: विरोध करने पर पति मारपीट करते थे, बिजली का झटका तक देने का आरोप लगाया गया।
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पालन-पोषण में असफलता: पति ने बच्चों की पढ़ाई और खर्च में कोई सहयोग नहीं किया; बड़े बेटे को पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
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पारिवारिक जीवन से दूरी: पति स्वयं घर छोड़कर आरएसएस कार्यालय में रहने लगे, और पत्नी-बच्चों से संवाद समाप्त कर दिया।
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समाज में प्रभाव: पति आरएसएस और भाजपा से जुड़े थे, जिससे पुलिस में उनकी पकड़ थी और पत्नी की शिकायतें दर्ज नहीं होती थीं।
🧾 साक्ष्य और गवाह
👨⚖️ पति की ओर से:
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पांच गवाह: जिनमें स्वयं पति (PW-5) और मित्र (PW-1 से PW-4) थे।
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गवाहों ने पत्नी के क्रोधी स्वभाव, अपशब्द, और लंबे समय तक संपर्कविच्छेद की पुष्टि की।
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हालांकि कुछ गवाहों की विश्वसनीयता संदिग्ध रही, क्योंकि उन्होंने घटनाओं को सुनी-सुनाई बातों पर आधारित बताया।
👩⚖️ पत्नी की ओर से:
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चार गवाह: स्वयं निशा गुप्ता, भाई, पड़ोसी और बेटा (DW-1 से DW-4)
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बेटे ने अदालत में कहा कि पिता मां को मारते थे और बिजली का झटका भी देते थे।
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पत्नी ने कहा कि वह आज भी वैवाहिक जीवन जीने को तैयार हैं लेकिन पति रिश्ता खत्म करना चाहते हैं।
⚖️ हाई कोर्ट का दृष्टिकोण
📌 मुख्य प्रश्न:
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क्या पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया?
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क्या पति तलाक की डिक्री पाने के हकदार हैं?
🔍 विधिक दृष्टिकोण:
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कोर्ट ने Dr. Dastane v. Sucheta Dastane (1975), A. Jayachandra v. Aneel Kaur (2005), और Samar Ghosh v. Jaya Ghosh (2007) जैसे महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि matrimonial मामलों में “preponderance of probabilities” यानी संभावनाओं के संतुलन के आधार पर साक्ष्य को मूल्यांकित किया जाना चाहिए, न कि “beyond reasonable doubt” जैसे आपराधिक मामलों में होता है।
📘 मानसिक क्रूरता की परिभाषा और न्यायालय की व्याख्या
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मानसिक क्रूरता में केवल मारपीट ही नहीं, बल्कि उपेक्षा, अपमान, संदेह, निरंतर तनाव, और असहयोग भी शामिल हो सकता है।
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यदि एक पक्ष लंबे समय तक दूसरे के साथ संवाद, स्नेह और सहयोग समाप्त कर दे, और यह संबंध असहनीय हो जाए, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जाएगी।
✅ अंतिम निर्णय
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हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के निर्णय को बरकरार रखा।
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कोर्ट ने माना कि:
“पक्षकारों के बीच वैवाहिक जीवन में एक लंबा अंतराल, परस्पर कटुता और व्यवहार की गंभीरता को देखते हुए पति-पत्नी का साथ रहना अब संभव नहीं है।”
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निशा गुप्ता की अपील खारिज कर दी गई, और पति को तलाक की डिक्री वैध मानी गई।
🧠 निष्कर्ष
यह मामला एक संवेदनशील उदाहरण है कि विवाह केवल एक सामाजिक या धार्मिक बंधन नहीं, बल्कि पारस्परिक स्नेह, समझ और सहयोग का गठबंधन होता है। जब यह संबंध मनोवैज्ञानिक रूप से असहनीय हो जाए, तो अदालतें न्यायसंगत समाधान देती हैं।
यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि “क्रूरता” केवल हिंसा या मारपीट तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न भी वैवाहिक संबंध तोड़ने का वैध आधार हो सकता है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiM1IzIwMTgjMSNO---am1--9sfgP2XvZ4=