निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी दत्तक पुत्री के पास वैध उत्तराधिकार प्रमाणपत्र है, तो उसे मृतक सरकारी कर्मचारी की सेवा समाप्ति से जुड़े लाभ जैसे पेंशन, ग्रेच्युटी, भविष्य निधि आदि प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है।
याचिकाकर्ता, जो एक मृतक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी (ऑफिस चपरासी) की दत्तक पुत्री हैं, को बिहार सरकार ने लाभ देने से इनकार कर दिया था। कारण बताया गया कि दत्तक ग्रहण मुस्लिम पर्सनल लॉ में मान्य नहीं है और याचिकाकर्ता के पास पंजीकृत दत्तकपत्र नहीं है।
मृतक कर्मचारी कमरून खातून की सेवा के दौरान 5 दिसंबर 2018 को मृत्यु हुई थी। याचिकाकर्ता ने कई बार आवेदन देकर पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव इनकैशमेंट, भविष्य निधि और समूह बीमा जैसी सुविधाएं माँगी थीं। उन्होंने परिवार प्रमाणपत्र, मदरसा शिक्षा प्रमाणपत्र, और दत्तक ग्रहण से संबंधित घोषणाएं प्रस्तुत की थीं। राजस्व लिपिक की जाँच में स्थानीय लोगों की गवाही और कागजातों के आधार पर याचिकाकर्ता को दत्तक पुत्री माना गया।
बावजूद इसके, लाभ नहीं दिए गए। अंततः, याचिकाकर्ता ने दीवानी न्यायालय से उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राप्त किया, जिसमें उन्हें कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया गया।
राज्य सरकार ने यह कहकर आपत्ति जताई कि मृतक कर्मचारी ने अपने दो चचेरे भाइयों को नामित किया था और मुस्लिम कानून में दत्तक को मान्यता नहीं है। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि उत्तराधिकार प्रमाणपत्र कानूनी रूप से मान्य दस्तावेज है और वैध उत्तराधिकारी के अधिकार को सिद्ध करता है।
माननीय न्यायाधीश श्री हरीश कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि नामांकन केवल प्रशासनिक सहूलियत के लिए होता है, न कि उत्तराधिकार तय करने के लिए। अतिया रज़िया देवी बनाम बिहार राज्य मामले में स्थापित न्यायिक सिद्धांतों को दोहराते हुए कोर्ट ने सभी लंबित सेवा समाप्ति लाभ आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को देने का आदेश दिया।
इस निर्णय का महत्व
यह फैसला उन दत्तक संतानो के लिए बड़ी राहत है, जिन्हें मुस्लिम या अन्य परंपराओं के आधार पर विधिक मान्यता नहीं मिल पाती। यह निर्णय दिखाता है कि कानूनी दस्तावेज, जैसे उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, ही अंतिम मानदंड होते हैं। यह महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों को संरक्षित करता है।
सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके आश्रितों के लिए यह आश्वासन है कि सेवा लाभों का दावा अब धार्मिक मान्यता से नहीं बल्कि कानून से तय होगा।
मुख्य कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निष्कर्ष
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क्या दत्तक पुत्री सेवा समाप्ति लाभों के लिए पात्र है?
✔ हाँ, यदि उत्तराधिकार प्रमाणपत्र हो तो। -
क्या बिना पंजीकृत दत्तकपत्र और मुस्लिम कानून के आधार पर लाभ से इनकार किया जा सकता है?
❌ नहीं, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र पर्याप्त है। -
क्या नामांकन उत्तराधिकार प्रमाणपत्र से अधिक प्रभावशाली होता है?
❌ नहीं, नामित व्यक्ति केवल ट्रस्टी होता है। -
क्या अधिकारी उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को मान्यता देकर लाभ देने के लिए बाध्य हैं?
✔ हाँ, कोर्ट ने आठ सप्ताह में लाभ देने का निर्देश दिया।
उद्धृत निर्णय
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अतिया रज़िया देवी बनाम बिहार राज्य, 2016 SCC Online Pat 339
प्रकरण का शीर्षक
नज़ारा खातून उर्फ़ नज़रा खातून बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस संख्या
CWJC No. 1233 of 2024
सिटेशन
2024(4) PLJR 571
पीठ और न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायाधीश हरीश कुमार
अधिवक्ता
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याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मुकेश कुमार सिन्हा
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प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री अनिल कुमार (AC to SC-8)
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महालेखाकार की ओर से: श्री राम किंकर चौबे
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