"बच्चे की हत्या के मामले में बरी हुआ आरोपी: मेडिकल और चश्मदीद गवाहियों में विरोधाभास बना आधार"

 


भूमिका

पटना उच्च न्यायालय के समक्ष Ram Daresh Ray @ Ramdresh Ray @ Tunna Ray बनाम बिहार राज्य (Criminal Appeal (DB) No. 1017 of 2017) में एक गंभीर आपराधिक मामला प्रस्तुत हुआ, जिसमें आरोपी को एक दो महीने के बच्चे की हत्या के आरोप में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। लेकिन अपीलीय न्यायालय ने तथ्यों, साक्ष्यों और गवाहियों के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया। यह मामला न्यायिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अभियोजन की विफलता, चिकित्सा साक्ष्य और चश्मदीद गवाहियों में विरोधाभास, तथा प्राथमिकी में देरी जैसे मुद्दों पर गहन विचार हुआ।


मामले की पृष्ठभूमि

मामला अहीयापुर थाना कांड संख्या 118/2015 से जुड़ा है। घटना 16 फरवरी 2015 की सुबह 7 बजे की है, जब सूचना देने वाली मधु देवी (PW-10) ने आरोप लगाया कि उसकी ननद रिंकु देवी पर उसके पति राम भगत राय, ससुर राम दरेश राय (अभियुक्त), और अन्य दो लोगों ने हमला किया। इस दौरान आरोप है कि राम भगत राय के कहने पर राम दरेश राय ने मधु देवी के दो महीने के बच्चे को पलंग से उठाकर ज़मीन पर फेंक दिया, जिससे बच्चे की मृत्यु हो गई।


अभियोजन का पक्ष

अभियोजन की ओर से कुल 13 गवाहों की गवाही दर्ज हुई। इनमें प्रमुख गवाह थे - पीड़िता मधु देवी (PW-10), मृतक के पिता संतोष राय (PW-9), रिंकु देवी (PW-1), और अन्य चश्मदीद।

अभियोजन ने यह तर्क दिया कि सभी गवाहों की गवाही सुसंगत है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट (Exhibit-1) से यह साबित होता है कि मृतक के पेट पर दो घाव पाए गए, जिससे रक्तस्राव और शॉक के कारण उसकी मृत्यु हुई। अभियोजन के अनुसार यह चोटें किसी कठोर एवं कुंद वस्तु से लगी थीं।


अपीलकर्ता का बचाव पक्ष

अभियुक्त के वकील ने निम्नलिखित बिंदुओं पर ज़ोर दिया:

  1. चश्मदीद और मेडिकल साक्ष्य में विरोधाभास:
    पोस्टमार्टम रिपोर्ट में केवल पेट पर हल्की चोटें दर्ज हैं, जो गिरने से भी हो सकती हैं। डॉक्टर (PW-12) ने अपनी जिरह में माना कि अगर बच्चा ऊँचाई से गिरे तो ऐसी चोटें संभव हैं। यदि बच्चा ज़मीन पर फेंका गया होता, तो शरीर के अन्य हिस्सों (सिर, चेहरा, छाती आदि) पर भी चोटें होनी चाहिए थीं, जो नहीं पाई गईं।

  2. मकसद की अनुपस्थिति:
    अभियोजन यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि आरोपी ने बच्चे की हत्या क्यों की। किसी रंजिश या दुश्मनी का कोई सबूत नहीं मिला।

  3. FIR में देरी और संदिग्धता:
    घटना सुबह 7 बजे की थी, जबकि FIR शाम 6:15 बजे दर्ज की गई। घटनास्थल और थाना के बीच केवल 1 किलोमीटर की दूरी थी, फिर भी 11 घंटे की देरी हुई। FIR को मजिस्ट्रेट को भेजने में भी दो दिन की देरी हुई, जो संदेह पैदा करता है कि FIR बाद में सोच-समझकर दर्ज की गई।


न्यायालय का विश्लेषण

उच्च न्यायालय ने तीन मुख्य प्रश्नों के आधार पर मामले की समीक्षा की:

1. क्या घटना की कथित रूपरेखा मेडिकल साक्ष्य से मेल खाती है?

नहीं। चोटें केवल पेट पर थीं, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि बच्चा ज़ोर से फेंका गया था। अगर बच्चा फेंका गया होता, तो शरीर के अन्य हिस्सों पर भी चोटें होनी चाहिए थीं। अतः अदालत ने माना कि अभियोजन की कहानी मेडिकल साक्ष्य से मेल नहीं खाती।

2. क्या मकसद के अभाव में अभियोजन की बात पर विश्वास किया जा सकता है?

नहीं। जब अभियोजन यह नहीं बता सका कि आरोपी ने ऐसा क्यों किया, तो उसका दावा संदिग्ध हो जाता है, विशेषकर जब अन्य गवाह भी हमले के लिए आरोपी के बजाय राम भगत राय को ज़िम्मेदार ठहराते हैं।

3. क्या FIR में देरी आरोपी के खिलाफ पूर्वाग्रह उत्पन्न करती है?

हाँ। FIR में 11 घंटे की देरी और मजिस्ट्रेट को भेजने में दो दिन की देरी, अभियोजन की विश्वसनीयता को कमजोर करती है। यह देरी अस्वाभाविक और बिना संतोषजनक कारण के है।


निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि:

  • अभियोजन की कहानी और मेडिकल साक्ष्य मेल नहीं खाते।

  • FIR देर से दर्ज हुई और यह संदेह पैदा करती है कि मामला गढ़ा गया हो सकता है।

  • अभियोजन कोई स्पष्ट मकसद सिद्ध नहीं कर पाया।

  • घायल बताए गए लोगों की मेडिकल रिपोर्ट पेश नहीं की गई।

इन तथ्यों को देखते हुए पटना उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोष सिद्धि को असंवैधानिक और तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण मानते हुए, राम दरेश राय को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।


अंतिम आदेश

  • अपील स्वीकार की गई।

  • निचली अदालत का 17.06.2017 का दोषसिद्धि आदेश और 20.06.2017 का सजा आदेश रद्द किया गया।

  • आरोपी को यदि अन्य किसी मामले में वांछित नहीं है, तो तुरंत जेल से रिहा करने का निर्देश दिया गया।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMxMDE3IzIwMTcjMSNO-DHvOB--ak1--Q3Sps=