📘 भूमिका
क्या पुलिस द्वारा बिना विशेष न्यायालय की अनुमति के किसी आरोपी की माँ या पत्नी के बैंक खातों को फ्रीज़ किया जा सकता है? पटना उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर सुखदानी देवी और अभा दुबे बनाम बिहार राज्य मामले में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दर्ज मामलों में केवल धारा 18-A और Criminal Law Amendment Ordinance, 1944 के प्रावधान लागू होंगे, न कि धारा 102 सीआरपीसी।
यह फैसला सिर्फ एक तकनीकी कानूनी प्रश्न नहीं है, बल्कि यह यह भी निर्धारित करता है कि बिना विधिसम्मत प्रक्रिया अपनाए किसी निर्दोष का खाता जब्त नहीं किया जा सकता, भले ही वह आरोपी से संबंधित हो।
📝 मामले की पृष्ठभूमि
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मुख्य आरोपी:
राकेश कुमार दुबे, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, भोजपुर, जिन पर disproportionate assets (आय से अधिक संपत्ति) रखने का आरोप था। -
प्रथम एफआईआर:
आर्थिक अपराध इकाई (EOU) द्वारा ई.ओ.यू. पी.एस. केस नं. 17/2021 के तहत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2) सहपठित 13(1)(b) के अंतर्गत मामला दर्ज। -
पक्षकार:
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सुखदानी देवी – आरोपी की माता
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अभा उर्फ अभा दुबे – आरोपी की पत्नी
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याचिका का उद्देश्य:
विशेष न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 10.08.2022 और 11.11.2022 को चुनौती देना, जिसमें याचिकाकर्ताओं के बैंक खातों को फ्रीज़ करने की अनुमति दी गई थी।
🧾 याचिकाकर्ताओं के तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी.एन. शाही के माध्यम से प्रस्तुत किया गया कि:
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धारा 18-A के तहत विशेष प्रक्रिया अनिवार्य है:
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार, संपत्ति की जब्ती केवल धारा 18-A के माध्यम से हो सकती है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि Criminal Law Amendment Ordinance, 1944 की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। -
विशेष न्यायालय की पूर्व अनुमति आवश्यक:
अधिनियम के अनुसार किसी भी movable या immovable संपत्ति को जब्त करने के लिए विशेष न्यायाधीश की अनुमति जरूरी है, जो कि इस मामले में नहीं ली गई। -
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख:
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Ratan Babu Lal Lath बनाम कर्नाटक राज्य (2021)
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Nevada Properties बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019)
इन फैसलों में कहा गया कि जब कोई विशेष अधिनियम पूरी प्रक्रिया प्रदान करता है, तब सामान्य प्रक्रिया (जैसे CrPC) लागू नहीं होती।
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⚖️ राज्य व ई.ओ.यू. का पक्ष
राज्य सरकार और आर्थिक अपराध इकाई की ओर से दलील दी गई कि:
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धारा 102 CrPC को समाप्त नहीं किया गया है:
CrPC की धारा 102 पुलिस को जांच के दौरान संपत्ति या बैंक खातों को फ्रीज़ करने का अधिकार देती है। -
धारा 18-A पूरक है, विरोधी नहीं:
उन्होंने कहा कि धारा 18-A केवल अटैचमेंट और संपत्ति के निपटारे की प्रक्रिया बताती है, पर जांच के समय फ्रीज़िंग के लिए CrPC की धारा 102 वैध है। -
पुराने सुप्रीम कोर्ट फैसलों का उल्लेख:
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State of Maharashtra v. Tapas D. Neogy (1999)
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Teesta Atul Setalvad v. State of Gujarat (2018)
इन मामलों में बैंक खातों को संपत्ति माना गया और पुलिस द्वारा सीज़ किया जाना वैध ठहराया गया।
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🔍 हाई कोर्ट का विश्लेषण और दृष्टिकोण
न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकल पीठ ने सभी तर्कों को ध्यानपूर्वक सुना और निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एक “Special Code” है:
चूंकि यह एक विशेष अधिनियम है, और इसमें अपनी प्रक्रिया दी गई है, इसलिए CrPC की सामान्य प्रक्रिया लागू नहीं की जा सकती। -
धारा 18-A की अनदेखी अवैध:
जब कोई अपराध विशेष अधिनियम के तहत दर्ज किया गया हो, तो उस अधिनियम की प्रक्रिया ही मान्य होगी, विशेषतः जब उसमें attachment/confiscation के लिए विशिष्ट निर्देश हों। -
CrPC की धारा 102 असंगत:
धारा 102 का उद्देश्य केवल संदेहजनक परिस्थितियों में संपत्ति जब्त करना है, परंतु यहाँ अभियोजन विशेष अधिनियम के अंतर्गत है, इसलिए CrPC की धारा 102 के तहत बैंक खाता फ्रीज़ करना अवैध है।
✅ अंतिम निर्णय
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10.08.2022 और 11.11.2022 को विशेष न्यायाधीश, सतर्कता द्वारा दिए गए आदेश निरस्त किए गए।
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आर्थिक अपराध इकाई द्वारा याचिकाकर्ताओं (माता और पत्नी) के बैंक खातों को फ्रीज़ करना अवैध करार दिया गया।
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याचिकाएं स्वीकार की गईं और बैंक खातों को डिफ्रीज़ करने का आदेश दिया गया।
हालांकि, राज्य सरकार को स्वतंत्र है कि वह उचित प्रक्रिया अपनाते हुए कानून के अनुसार पुनः कार्यवाही करे।
🧠 निष्कर्ष
यह फैसला बताता है कि किसी भी विशेष अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही करते समय उसकी विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। विशेषकर जब संपत्ति जब्त या फ्रीज़ करने की बात हो, तो बिना विशेष न्यायालय की अनुमति और धारा 18-A के तहत विधिक प्रक्रिया अपनाए गए कोई भी कार्रवाई असंवैधानिक मानी जाएगी।
यह निर्णय न केवल विधिक शुद्धता का उदाहरण है, बल्कि नागरिक अधिकारों की रक्षा का भी परिचायक है, जहाँ अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि केवल आरोपी के पारिवारिक संबंध के आधार पर किसी निर्दोष के आर्थिक संसाधनों को अवैध रूप से बाधित न किया जाए।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMTUyNiMyMDIyIzEjTg==-u26i3l0w--ak1--wI=