"अनुशासनहीनता या न्यायहीनता? पटना हाई कोर्ट ने पांच साल बाद सेवा से बर्खास्त कांस्टेबल को राहत दी"

 



भूमिका

किसी कर्मचारी की सेवा से बर्खास्तगी जितनी गंभीर होती है, उतना ही गंभीर होता है वह प्रक्रिया जिसके आधार पर यह निर्णय लिया जाता है। यदि प्रक्रिया में कोई तकनीकी त्रुटि या कानूनी चूक हो, तो उसका असर कर्मचारी के पूरे जीवन पर पड़ सकता है। पटना हाई कोर्ट के एक हालिया निर्णय में एक ऐसे ही मामले को देखा गया, जहां एक पुलिस कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन बिना विधिसम्मत प्रक्रिया अपनाए। यह मामला अरविंद कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य सरकार से संबंधित है।


मामले की पृष्ठभूमि

अरविंद कुमार सिंह ने 11 नवंबर 1996 को कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति पाई थी। उन्होंने 1996 से 1998 तक विभिन्न लोगों के अंगरक्षक (बॉडीगार्ड) के रूप में कार्य किया। उसके बाद उन्हें GRP मुजफ्फरपुर स्थानांतरित किया गया, जहाँ उन्होंने पांच वर्षों तक सेवा की। फिर उन्हें GRP जमालपुर भेजा गया और अंततः 2010 में दरभंगा ज़ोन स्थानांतरित किया गया।

हालाँकि, दरभंगा ज़ोन में ज्वाइनिंग की अनुमति संबंधित अधिकारी की अनुपस्थिति के कारण समय पर नहीं मिल सकी, जिससे उनकी ज्वाइनिंग 25 अप्रैल 2011 को हुई। इसके बाद वे समस्तीपुर जिले में पदस्थापित किए गए। लेकिन 9 अगस्त 2016 तक वे पुलिस विभाग में सक्रिय नहीं हो सके। अरविंद का कहना था कि उनकी अनुपस्थिति एक चिकित्सीय आपातकाल के कारण थी।


विवाद और आरोप

पुलिस प्रशासन ने अरविंद कुमार सिंह के खिलाफ दो प्रमुख आरोप लगाए:

  1. उन्होंने जमालपुर से 8 अप्रैल 2011 को कार्यमुक्त होने के बाद दरभंगा ज़ोन में 25 अप्रैल 2011 को देर से ज्वाइनिंग की – यानी 10 दिन की देरी।

  2. उन्होंने 1924 दिनों (लगभग 5 साल 3 महीने) तक सेवा में ज्वाइनिंग नहीं की, जिसके लिए कोई स्पष्ट अनुमति या जानकारी विभाग को नहीं दी गई।

इस आधार पर उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई चलाई गई और अंततः उन्हें 27 जून 2017 को बर्खास्त कर दिया गया।


प्रक्रियात्मक खामियां और कानूनी तर्क

अरविंद कुमार सिंह के वकील ने अदालत में यह प्रमुख तर्क रखा कि:

  • विभागीय कार्यवाही में प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी (Presenting Officer) की नियुक्ति अनिवार्य होती है, जो इस मामले में पूरी तरह अनुपस्थित रही।

  • बिहार सरकार सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली 2005 [CCA Rules 2005] तथा बिहार पुलिस मैनुअल के तहत यह स्पष्ट निर्देश है कि बिना प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी के कोई भी विभागीय कार्रवाई मान्य नहीं मानी जाएगी।

  • उन्होंने यह भी कहा कि यह कार्यवाही नियम 24(A)(e) तथा नियम 32 और 17(14) का उल्लंघन है।


राज्य सरकार का पक्ष

राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने तर्क दिया कि:

  • अरविंद कुमार सिंह पाँच वर्षों से अधिक समय तक अनुपस्थित रहे हैं, जो कि बिहार सेवा संहिता के नियम 76 के तहत सेवा से निष्कासन का आधार है।

  • उन्होंने विभाग को अनुपस्थिति की कोई संतोषजनक जानकारी नहीं दी।

  • इसलिए उनके विरुद्ध की गई कार्रवाई विधि सम्मत थी और अपील में भी उसे उचित ठहराया गया।


अदालत का विश्लेषण

माननीय न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमान की एकलपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों को विस्तार से सुना और निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु सामने रखे:

  1. बिहार सेवा संहिता की धारा 76 के अनुसार, किसी कर्मचारी को पाँच वर्ष की अनुपस्थिति पर हटाया जा सकता है, लेकिन यह कार्रवाई तभी मान्य होगी जब वह विधिसम्मत विभागीय प्रक्रिया के बाद की गई हो।

  2. बिहार पुलिस मैनुअल और CCA Rules 2005 स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी की मौजूदगी अनिवार्य है।

  3. इस मामले में कोई भी प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया था, जिससे पूरी विभागीय कार्रवाई अवैध और शून्य (null and void) हो जाती है।


न्यायालय का निर्णय

पटना हाई कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किए:

  • बर्खास्तगी के सभी आदेश रद्द (quash) किए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • मेमो नं. 732 दिनांक 29.03.2017 (आरोप प्रमाणित करने वाला आदेश)

    • मेमो नं. 1634 दिनांक 27.06.2017 (बर्खास्तगी आदेश)

    • मेमो नं. 830 दिनांक 30.07.2018 (अपील में पुष्टि)

    • मेमो नं. 908 दिनांक 20.09.2019 (अंतिम निर्णय)

  • विभाग को स्वतंत्र रूप से पुनः कार्रवाई करने की छूट दी गई, बशर्ते कि वह प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी की नियुक्ति कर उचित प्रक्रिया का पालन करे।

  • वित्तीय लाभों के संबंध में अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे कानून के अनुसार उचित निर्णय लें।


निष्कर्ष

अरविंद कुमार सिंह का मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे प्रक्रिया की अनदेखी, चाहे आरोप कितने भी गंभीर क्यों न हों, न्यायिक समीक्षा में अस्वीकार्य हो सकती है। पटना हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि विभागीय कार्रवाई करना है तो नियमों और प्रक्रियाओं का पालन अनिवार्य है।

यह निर्णय एक तरफ जहां अनुशासन के महत्व को रेखांकित करता है, वहीं यह भी दर्शाता है कि कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका हमेशा सतर्क है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTcxMCMyMDIwIzEjTg==-jewki2umLvc=

 


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