भूमिका:
यह मामला उज्ज्वल कांत नामक एक कर्मचारी से संबंधित है, जिन्हें वर्ष 1985 में शिक्षा विभाग की एडल्ट एजुकेशन स्कीम के तहत क्लर्क-कम-अकाउंटेंट के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन जब यह केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 2001 में बंद हो गई, तो उन्हें अन्य कर्मचारियों सहित सेवा से हटा दिया गया (retrenchment)।
बाद में, राज्य सरकार ने एक नीति के तहत ऐसे हटाए गए कर्मचारियों को अन्य विभागों में समायोजित (absorb) करने का निर्णय लिया, और उज्ज्वल कांत को वर्ष 2006 में शिक्षा विभाग में पुनः नियुक्त किया गया। विवाद इस बात पर केंद्रित है कि क्या उनकी सेवा को 'नई नियुक्ति' माना जाए या पूर्व सेवा की निरंतरता के रूप में।
मूल विवाद:
-
सेवानिवृत्त लाभ नहीं मिलना:
उज्ज्वल कांत 31.01.2021 को सेवा से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उन्हें सभी सेवानिवृत्ति लाभ (जैसे पेंशन, ग्रेच्युटी आदि) समय पर नहीं मिले। -
वेतन पुनर्निर्धारण:
प्रारंभ में अंतिम वेतन ₹76,500/- माना गया, लेकिन बाद में उसे घटाकर ₹68,000/- और फिर ₹41,600/- कर दिया गया। इसके पीछे तर्क था कि उनकी नियुक्ति ‘नई’ मानी जाएगी। -
एमएसीपी/एसीपी लाभों को वापस लेना:
सेवा के दौरान प्राप्त 2nd और 3rd MACP (Modified Assured Career Progression) लाभों को वापस ले लिया गया। -
पत्नी की मृत्यु पर मुआवजा:
कोविड महामारी के दौरान इलाज के अभाव में पत्नी की मृत्यु होने पर ₹1 करोड़ मुआवजे की मांग की गई।
याचिकाकर्ता के तर्क:
-
उनकी सेवा को नई नियुक्ति नहीं कहा जा सकता क्योंकि 2006 में जारी नियुक्ति पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि "यह नई नियुक्ति नहीं मानी जाएगी"।
-
सेवा में रहते हुए सभी लाभ, स्केल और MACP दिए गए थे, जिन्हें सेवा के बाद वापस लेना गलत है।
-
अन्य समान स्थिति वाले कर्मचारियों (जैसे: श्रीमती राम लक्ष्मी मिश्रा) को सेवा लाभ दिए गए, जबकि उनके साथ भेदभाव किया गया।
-
सेवा पुस्तिका, वेतन निर्धारण व वित्त विभाग की मंजूरी उनके पक्ष में है।
-
बिना सूचना और सुनवाई के सेवा लाभ वापस लेना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।
राज्य सरकार का पक्ष:
-
उज्ज्वल कांत की पूर्व सेवा एक केंद्रीय योजना में थी जो बंद हो गई, और 2006 में उनकी नियुक्ति नई नियुक्ति के रूप में की गई।
-
2005 की राज्य नीति (Memo No. 582) में स्पष्ट उल्लेख है कि समायोजन नई नियुक्ति मानी जाएगी और पूर्व सेवा केवल पेंशन के लिए गिनी जाएगी।
-
पहले नियुक्ति पत्र में “नई नियुक्ति नहीं” लिख देना एक टंकण त्रुटि थी, जिसे 2022 में सुधारा गया।
-
सर्वोच्च न्यायालय ने Baliram Singh बनाम बिहार राज्य मामले में यही स्थिति स्पष्ट की है – समायोजन को नई नियुक्ति ही माना जाएगा।
न्यायालय का निर्णय व विश्लेषण:
1. सेवा की प्रकृति – नई या निरंतर?
-
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति राज्य की नीति के आधार पर हुई थी, जिसमें समायोजन को नई नियुक्ति माना गया है।
-
परंतु 2006 में जारी नियुक्ति पत्र में "नई नियुक्ति नहीं मानी जाएगी" स्पष्ट लिखा गया था, इसलिए याचिकाकर्ता के पास इसे चुनौती देने का कारण नहीं था।
2. सेवा लाभों की बहाली:
-
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता की अंतिम वेतन निर्धारण (₹76,500/-) को घटाकर ₹41,600/- करना गलत है।
-
MACP लाभों को हटाना भी असंगत है, क्योंकि अन्य समान स्थिति वाले कर्मचारियों को लाभ मिले हैं।
3. वेतन पुनर्निर्धारण और MACP आदेश रद्द:
-
25.07.2023 का वेतन निर्धारण आदेश और 24.07.2023 का MACP लाभ वापसी आदेश अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिए गए।
4. पेंशन पुनर्निर्धारण का निर्देश:
-
अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की पेंशन ₹4500-7000/- वेतनमान के आधार पर पुनः निर्धारित की जाए, क्योंकि यही उनका वेतनमान था जब उन्हें सेवा से निकाला गया।
5. मुआवजे की याचिका अस्वीकृत:
-
₹1 करोड़ का मुआवजा अस्वीकार किया गया। अदालत ने कहा कि कोविड महामारी में मृत्यु केवल पैसों की कमी से नहीं बल्कि व्यापक संक्रमण और स्वास्थ्य प्रणाली की चुनौतियों के कारण हुई।
न्यायालय का अंतिम आदेश:
-
याचिका आंशिक रूप से मंजूर की गई।
-
राज्य सरकार को आदेश दिया गया कि आठ सप्ताह के भीतर वेतन और MACP लाभ फिर से बहाल किए जाएं, और पेंशन पुनर्निर्धारण किया जाए।
-
मुआवजे की मांग को अस्वीकार कर दिया गया।
-
कोई लागत नहीं (No costs)।
निष्कर्ष:
यह निर्णय उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जिन्हें योजनाओं के बंद हो जाने के बाद अन्यत्र समायोजित किया गया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि समायोजन की प्रक्रिया में कहीं गलती या भ्रम है, तो सेवा लाभों को मनमाने ढंग से छीनना न्यायोचित नहीं होगा।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTgyIzIwMjIjMSNO-QRs8vi7Wj5I=
0 Comments