❝तकनीकी बाधाओं में उलझा न्याय: ओम प्रकाश सिंह बनाम सुमित्रा देवी – एल.पी.ए. खारिज होने का पूरा मामला❞

 


🔎 परिचय

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में तकनीकी प्रावधानों का अत्यधिक महत्व होता है। ऐसे ही एक मामले में, पटना उच्च न्यायालय में लेटर्स पेटेंट अपील संख्या 261/2019 (ओम प्रकाश सिंह एवं अन्य बनाम सुमित्रा देवी एवं अन्य) को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह प्रथम अपील में पारित आदेश पर नागरिक पुनर्विलोकन (Civil Review) से उत्पन्न हुआ था, जिस पर कानून के अनुसार दोबारा अपील नहीं की जा सकती।

यह केस तकनीकी आधार पर खारिज किए गए मामलों का एक प्रमुख उदाहरण है, जहाँ न्याय की मांग कानून की शब्दावली में उलझ कर रह गई।


📚 मामले की पृष्ठभूमि

  • अपीलकर्ता:
    ओम प्रकाश सिंह एवं जय प्रकाश सिंह (ग्राम जलालपुर, थाना दानापुर, जिला पटना)

  • प्रतिकर्ता:
    सुमित्रा देवी, ललन सिंह, लालेन्द्र सिंह, हीरा देवी, तथा अन्य कुल 33 व्यक्ति — सभी संबंधित गांव जलालपुर, नया टोला सगुना, और अन्य इलाकों के निवासी हैं।

  • मूल मामला:
    एक दीवानी मुकदमा, जिसमें प्रथम अपील के आदेश के विरुद्ध पुनर्विलोकन याचिका (Civil Review) दायर की गई थी। इस पुनर्विलोकन याचिका पर पारित आदेश के खिलाफ अपील करते हुए यह Letters Patent Appeal (LPA) दाखिल की गई थी।


⚖️ कानूनी मुद्दा: क्या यह LPA स्वीकार्य है?

पटना हाई कोर्ट की रजिस्ट्री ने प्रारंभिक आपत्ति जताई कि यह LPA "अस्वीकार्य" है क्योंकि यह उस आदेश से उत्पन्न है जो CPC की धारा 104 के अंतर्गत प्रथम अपील में पारित हुआ था। न्यायालय ने विस्तार से इस पर विचार किया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए निम्नलिखित निर्णयों पर आधारित अपना निर्णय दिया:

महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट निर्णय:

  1. Chandra Kanta Sinha v. Oriental Insurance Co. Ltd. (2001) 6 SCC 158

    • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब एक सिंगल जज द्वारा द्वितीय अपील (Second Appeal) में कोई निर्णय पारित किया जाता है, तब उस पर LPA स्वीकार्य नहीं है, भले ही उस जज ने उसे “फिट केस” घोषित किया हो।

    • CPC की धारा 100-A ऐसी किसी भी अपील पर रोक लगाती है।

  2. New Kenilworth Hotel (P) Ltd. v. Orissa State Finance Corporation (1997) 3 SCC 462

    • इस केस में यह तय हुआ कि जब Order 39 Rule 1 & 2 के तहत आदेश पारित हुआ हो, और उस पर Section 104(2) लागू हो, तो उस आदेश पर LPA दायर नहीं किया जा सकता।


📑 कोर्ट की विधिक व्याख्या

न्यायालय ने कहा कि:

"धारा 104(2) स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई आदेश Section 104 के अंतर्गत पारित हुआ हो, तो उस पर कोई अपील नहीं की जा सकती।"

इस मामले में:

  • प्रथम अपील Section 104 CPC के तहत दायर की गई थी।

  • पुनर्विलोकन याचिका पर निर्णय इसी अपील से संबंधित था।

  • ऐसे में, Letters Patent Appeal पर Section 104(2) की रोक स्वतः ही लागू हो गई।


🧑‍⚖️ कोर्ट का निर्णय

  • मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन एवं न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

"हम अपील को स्वीकार नहीं करते और रजिस्ट्री द्वारा उठाई गई आपत्ति को सही मानते हैं।"

इस प्रकार, यह Letters Patent Appeal बिना मेरिट पर विचार किए प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दी गई।


निष्कर्ष

यह मामला भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में तकनीकी नियमों की सटीकता और महत्व को दर्शाता है। कई बार केस की मेरिट (वास्तविक तथ्यों और न्याय की मांग) पर विचार करने से पहले ही, विधिक प्रक्रियाओं की वैधानिकता के आधार पर मामला खारिज किया जा सकता है।

सबक:

  • किसी भी कानूनी अपील या पुनर्विलोकन से पूर्व, संबंधित धाराओं (जैसे CPC की धारा 104 या 100-A) और उनकी सीमाओं को भलीभांति समझ लेना आवश्यक है।

  • न्याय केवल तथ्यात्मक पक्ष पर नहीं, बल्कि प्रक्रियात्मक कानूनों के अनुरूप भी दिया जाता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMyNjEjMjAxOSMxI04=-XlMM0VFsZLw=