📘 भूमिका
भारत के संपत्ति कानून में एक मूल सिद्धांत है कि कोई भी व्यक्ति, भले ही वह मालिक हो, किसी व्यक्ति को उसकी ज़मीन से बलपूर्वक नहीं हटा सकता, जब तक कि वह उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन न करे। इसी सिद्धांत को विशेष राहत अधिनियम, 1963 की धारा 6 में स्पष्ट रूप से समाहित किया गया है। पटना हाई कोर्ट का दिलीप शर्मा व अन्य बनाम बादल तिवारी (Civil Revision No. 37 of 2021) में दिया गया निर्णय इसी सिद्धांत की पुनः पुष्टि करता है।
📝 मामले की पृष्ठभूमि
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विवादित संपत्ति: भागलपुर जिले की भूमि
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वादकर्ता (Plaintiff): बादल तिवारी
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प्रतिवादी (Defendants): दिलीप शर्मा, अशोक शर्मा, राजन शर्मा, मनोज शर्मा, बाबू शर्मा, राकेश शर्मा
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प्रारंभिक वाद: बादल तिवारी द्वारा दायर वाद संख्या 703/2012, विशेष राहत अधिनियम की धारा 6 के तहत, जिसमें कहा गया कि उन्हें उनकी खरीदी गई जमीन से गैर-कानूनी रूप से बेदखल कर दिया गया।
📜 वादकर्ता का पक्ष
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बादल तिवारी ने 26.11.2007 को रजिस्टर्ड विक्रय विलेख के माध्यम से जागो मंडल से उक्त भूमि खरीदी थी।
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उन्होंने अपनी संपत्ति पर दीवार, गेट और ग्रिल लगवाया तथा कब्जा सुनिश्चित किया।
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2012 में प्रतिवादियों ने ज़बरदस्ती ताला तोड़कर उन्हें बेदखल कर दिया।
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धारा 144 CrPC की कार्यवाही में न्यायिक पदाधिकारी ने कब्जा उनके पक्ष में पाया था।
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इसलिए उन्होंने 29.10.2012 को धारा 6 के अंतर्गत कब्जा पुनर्स्थापन हेतु वाद दायर किया।
⚖️ प्रतिवादी का पक्ष
प्रतिवादियों (दिलीप शर्मा व अन्य) ने दावा किया कि:
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जमीन उनके पूर्वज महादेव मिस्त्री ने 10.07.1962 को खरीदी थी।
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यह उनकी पैतृक संपत्ति है, और वे दशकों से उस पर कब्जा में हैं।
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बादल तिवारी की खरीदी फर्जी है क्योंकि विक्रेता (जागो मंडल) के पास वैध अधिकार नहीं था।
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उन्होंने पहले ही वाद संख्या 679/2012 दाखिल कर दी थी जो उसी भूमि को लेकर है।
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चूंकि शीर्षक विवाद लंबित है, इसलिए मौजूदा वाद पर CPC की धारा 10 के तहत रोक लगनी चाहिए थी।
हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि इस बिंदु पर उन्होंने ट्रायल कोर्ट में कोई विधिवत आवेदन नहीं दिया था।
🧾 प्रारंभिक न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने आठ मुद्दों पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि:
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बादल तिवारी ने अपने कब्जे को साबित कर दिया है।
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उनकी बेदखली 30.08.2012 को हुई, और उन्होंने 6 महीने की वैध सीमा (29.10.2012) के भीतर वाद दायर किया।
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इसलिए वाद स्वीकार्य है, भले ही स्वामित्व विवाद लंबित हो।
आदेश: प्रतिवादियों को 60 दिनों के भीतर भूमि पर कब्जा वापस देने का निर्देश।
🧑⚖️ उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका
दिलीप शर्मा व अन्य ने इस फैसले को Civil Revision No. 37/2021 के माध्यम से पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका मुख्य तर्क था:
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कब्जे की तारीख सटीक रूप से प्रमाणित नहीं की गई।
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वादक ने कभी वास्तविक कब्जा प्राप्त नहीं किया था।
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भूमि विवाद पहले से ही शीर्षक वाद में लंबित है।
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ट्रायल कोर्ट ने दस्तावेज़ी साक्ष्यों की गलत व्याख्या की है।
🧠 पटना हाई कोर्ट का निर्णय
📌 मुख्य बिंदु:
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धारा 6 की प्रकृति:
यह एक संक्षिप्त प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध, बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के, कब्जे से वंचित न किया जाए। -
स्वामित्व की जांच आवश्यक नहीं:
धारा 6 के तहत न्यायालय केवल यह देखता है कि वादी छह महीने के भीतर कब्जा से वंचित किया गया है या नहीं। स्वामित्व विवाद की जांच इस प्रावधान में नहीं होती। -
उपयुक्त मिसालें:
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East India Hotels Ltd. बनाम Syndicate Bank – बलपूर्वक कब्जा हटाना गैरकानूनी।
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State of U.P. बनाम महाराज धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह – "settled possession" को कानूनी प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है।
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Sanjay Kumar Pandey बनाम गुलबहार शेख – धारा 6 के तहत अपील और समीक्षा प्रतिबंधित है, केवल Revisional Jurisdiction में हस्तक्षेप संभव है।
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कोर्ट का निष्कर्ष:
ट्रायल कोर्ट का निर्णय कानूनी दृष्टिकोण से उचित है। कब्जा सिद्ध था, वादी ने समयसीमा का पालन किया, और बिना कानूनी प्रक्रिया के बेदखल किया गया।
✅ अंतिम आदेश
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पुनरीक्षण याचिका खारिज की गई।
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ट्रायल कोर्ट का निर्णय यथावत रखा गया।
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Execution Case No. 15 of 2021 पर लगी रोक हटाई गई।
🔍 निष्कर्ष
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि:
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कब्जा भले ही अस्थायी हो, परंतु जब तक व्यक्ति कानूनी रूप से हटाया नहीं गया हो, तब तक उसका अधिकार बना रहता है।
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भूमि स्वामित्व के विवाद के बावजूद, कोई भी व्यक्ति जबरन किसी को बेदखल नहीं कर सकता।
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न्यायालयों द्वारा "Due Process of Law" की अनदेखी को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह मामला नागरिक अधिकारों की रक्षा और अराजकता पर नियंत्रण की दिशा में एक मील का पत्थर है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/OCMzNyMyMDIxIzEjTg==-Br5017vCnr0=