भूमिका
पटना उच्च न्यायालय ने सुनील कुमार सिंह और संजीव नारायण सिंह द्वारा दायर सिविल रिट याचिका संख्या 10304/2012 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्वीकार किया कि दोनों याचिकाकर्ताओं को बिना किसी दोष के फास्ट-ट्रैक प्रमोशन से वंचित किया गया। अदालत ने यह पाया कि संबंधित वर्षों की APAR रिपोर्ट (2009-10 से 2011-12) गायब थीं और इसके कारण इन अधिकारियों को पात्र होने के बावजूद परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
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याचिकाकर्ता: श्री सुनील कुमार सिंह और श्री संजीव नारायण सिंह, पूर्व में इलाहाबाद बैंक में अधिकारी, वर्तमान में इंडियन बैंक में सेवारत
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प्रमोशन स्तर: MMG Scale II से MMG Scale III (वर्ष 2012-13 के लिए)
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बैंकिंग परिपत्र:
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परिपत्र संख्या 11866 (दिनांक 24.03.2012)
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परिपत्र संख्या 11901 (दिनांक 19.05.2012)
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प्रक्रिया: फास्ट ट्रैक/मेरिट चैनल के माध्यम से 253 पदों पर प्रोन्नति हेतु ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की जानी थी
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मूल विवाद: याचिकाकर्ताओं को APAR में 60% से कम अंक होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया, जबकि उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया था और उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं दी गई थी।
प्रोन्नति नीति और विवाद का सार
✦ प्रोन्नति चैनल:
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नॉर्मल/सीनियरिटी चैनल:
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60% रिक्तियां
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5 वर्ष का अनुभव
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न्यूनतम APAR अंक अनिवार्य नहीं
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फास्ट ट्रैक/मेरिट चैनल:
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40% रिक्तियां
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3 वर्ष का अनुभव
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न्यूनतम 75% APAR अंक अनिवार्य (बाद में 60% कर दिया गया)
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✦ APAR स्केलिंग:
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90-100: उत्कृष्ट (Outstanding)
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75-89: बहुत अच्छा (Very Good)
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60-74: अच्छा (Good)
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40-59: औसत (Average)
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40 से कम: असंतोषजनक (Below Average)
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
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शानदार सेवा रिकॉर्ड:
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दोनों अधिकारियों की शाखाओं का प्रदर्शन सराहनीय था।
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AGM, भागलपुर ने भी 2011-12 में "Remarkable" प्रदर्शन की पुष्टि की थी।
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गलत रिपोर्टिंग का आरोप:
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पूर्व AGM के साथ याचिकाकर्ताओं का विवाद था; उन्हें जानबूझकर कम अंक दिए गए।
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गायब APAR रिपोर्ट:
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2009-10 और 2011-12 की APAR रिपोर्ट बैंक के पास उपलब्ध नहीं थीं।
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इसके बावजूद इन्हीं रिपोर्टों के आधार पर याचिकाकर्ताओं को प्रमोशन से वंचित कर दिया गया।
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भेदभावपूर्ण निर्णय:
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कोई पूर्व सूचना, कोई पारदर्शिता नहीं।
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नियमों का मनमाना उपयोग किया गया।
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बैंक का पक्ष
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रिकॉर्ड गुम:
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इलाहाबाद बैंक के इंडियन बैंक में विलय के दौरान रिकॉर्ड स्थानांतरित हुए।
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APAR रिपोर्ट का पता नहीं चल सका।
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पुनः प्रमोशन:
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याचिकाकर्ताओं को अगले वर्ष (2013) में प्रमोट कर दिया गया।
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इसलिए, बैंक के अनुसार विवाद समाप्त हो चुका है।
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अदालत की टिप्पणियाँ
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प्रक्रियात्मक चूक:
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बैंक यह स्पष्ट करने में असफल रहा कि किस आधार पर APAR के अंक 60% से कम थे।
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जब रिकॉर्ड ही नहीं हैं, तो याचिकाकर्ताओं को अयोग्य कैसे ठहराया गया?
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संविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन:
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प्राकृतिक न्याय की मूल भावना का उल्लंघन हुआ है।
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पात्र अधिकारियों को बिना कारण अवसर से वंचित करना दमनात्मक निर्णय माना जाएगा।
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बॉम्बे हाईकोर्ट निर्णय की असंगति:
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बैंक ने एक अन्य केस (बैंक ऑफ महाराष्ट्र बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वह केस इस मामले से भिन्न है क्योंकि उसमें APAR मौजूद था, यहां गायब है।
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अंतिम आदेश
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कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित किया गया।
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याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया गया कि वे यदि चाहें तो पुनः प्रतिनिधित्व (representation) दायर करें।
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संबंधित प्राधिकरण को आदेश दिया गया कि वह इस पर कानूनी और वस्तुनिष्ठ रूप से विचार करे और संविधान के अनुरूप निर्णय ले।
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रिट याचिका स्वीकृत करते हुए निस्तारित की गई।
सामाजिक और संस्थागत महत्व
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बैंक कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा:
यह फैसला दर्शाता है कि सेवा रिकॉर्ड और मूल्यांकन रिपोर्टों की पारदर्शिता अनिवार्य है। -
प्रमोशन प्रक्रिया में समान अवसर:
सभी कर्मचारियों को समान अवसर देना बैंक की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है। -
डिजिटल रिकॉर्ड प्रबंधन की आवश्यकता:
विलय या अन्य प्रक्रियाओं के दौरान कर्मचारियों की फाइलों का संगठन और संरक्षण आवश्यक है ताकि भविष्य में उनके अधिकार प्रभावित न हों।
निष्कर्ष
यह फैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो वर्षों की सेवा के बाद मात्र कागज़ी लापरवाही या मनमानी के चलते अपने संवैधानिक और सेवा संबंधी अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यदि रिकॉर्ड अनुपलब्ध हैं, तो उसका खामियाजा कर्मचारी नहीं भुगत सकते। यह फैसला प्रशासनिक पारदर्शिता, निष्पक्ष मूल्यांकन और कर्मचारी सम्मान की दिशा में एक बड़ा कदम है।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTAzMDQjMjAxMiMxI04=-0--am1--INUbusN1g=