"सरकारी त्रुटि का बोझ विधवा पर नहीं: पटना हाईकोर्ट ने रेलवे पुलिस को वापस करने का आदेश दिया ₹4.42 लाख"




भूमिका:
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में विधवा महिला के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि सरकारी वेतन निर्धारण में हुई त्रुटियों का भार उस कर्मचारी की पत्नी या परिजनों पर नहीं डाला जा सकता जिसकी मृत्यु हो चुकी है और जिसने कोई धोखाधड़ी या गलत बयानी नहीं की थी। यह मामला "सुनीता देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य" (CWJC No. 9393/2018) से जुड़ा हुआ है, जहां मृत कर्मचारी की पत्नी से ₹4,42,314 की वसूली की गई थी। कोर्ट ने इस वसूली को अवैध और अन्यायपूर्ण बताते हुए रेलवे पुलिस को राशि वापस करने का आदेश दिया।


मामले की पृष्ठभूमि:

सुनीता देवी के पति, राज किशोर सिंह, रेलवे पुलिस, कटिहार में एक Class-III कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे। वे 12 जुलाई 2016 को ड्यूटी के दौरान मृत्यु को प्राप्त हुए। उनकी मृत्यु के बाद जब सुनीता देवी ने पति के मृत्यु उपरांत पेंशन और अन्य सेवागत लाभों के लिए आवेदन किया, तब उन्हें एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें कहा गया कि उनके पति को 6ठे वेतन आयोग के तहत वेतन निर्धारण में ₹4,42,314 की अधिक राशि का भुगतान किया गया था। इसे "गलत निर्धारण" के आधार पर अधिक भुगतान कहा गया।

रेलवे पुलिस ने यह स्पष्ट किया कि जब तक यह राशि वापस नहीं की जाती, तब तक मृत कर्मचारी के सेवागत लाभ जैसे ग्रेच्युटी, पेंशन आदि नहीं दिए जाएंगे। मजबूरीवश सुनीता देवी ने अपने रिश्तेदारों से उधार लेकर यह राशि जमा कर दी।


याचिकाकर्ता का पक्ष:

सुनीता देवी के वकील ने कोर्ट को बताया कि:

  • उनके पति का वेतन सरकार द्वारा तय किया गया था, न कि स्वयं उनके द्वारा।

  • इस वेतन निर्धारण में उनके पति की कोई भूमिका नहीं थी और न ही उन्होंने किसी प्रकार का धोखा या छल किया था।

  • उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार पर इस राशि को चुकाने का दबाव बनाया गया।

  • सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय है कि Class-III और Class-IV कर्मचारियों से इस प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती, विशेषकर तब जब किसी प्रकार की धोखाधड़ी साबित न हो।

  • मृत व्यक्ति की विधवा से इस राशि की वसूली पूरी तरह से अनुचित, अमानवीय और कानून के विरुद्ध है।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले State of Punjab & Ors. Vs. Rafiq Masih & Ors. (2015) 4 SCC 334 का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि:

  1. Class-III और Class-IV कर्मचारियों से वसूली नहीं की जा सकती।

  2. रिटायर हो चुके या एक साल के अंदर रिटायर होने वाले कर्मचारियों से वसूली अवैध है।

  3. जब अधिक भुगतान 5 साल से ज्यादा समय पहले हुआ हो, तब भी वसूली नहीं की जा सकती।

  4. जहां वसूली करना अन्यायपूर्ण और कठोर हो, वहां भी इसे रोकना चाहिए।


प्रतिवादी (राज्य) का पक्ष:

राज्य के वकील ने कहा कि:

  • किसी प्रकार की ज़बरदस्ती नहीं की गई थी; सुनीता देवी ने स्वेच्छा से पैसा वापस किया।

  • इसलिए यह मामला ‘एस्टॉपल’ (Estoppel) के सिद्धांत के तहत आता है यानी अब वे वापसी की मांग नहीं कर सकतीं।

  • चूंकि उन्होंने खुद ही चेक द्वारा राशि जमा की थी, इसलिए अब उसे वापस नहीं किया जा सकता।


कोर्ट का निर्णय:

न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमान की अध्यक्षता में पटना हाईकोर्ट ने गहन विचार के बाद निम्नलिखित निर्णय दिए:

  1. कोई धोखा या गलत वेतन निर्धारण मृत कर्मचारी की ओर से नहीं था।

  2. सरकारी अधिकारियों द्वारा तय वेतन यदि गलत है तो उसकी जिम्मेदारी सरकार की है, न कि कर्मचारी या उसके परिवार की।

  3. मृत कर्मचारी की विधवा से वसूली करना कानूनन गलत है।

  4. राज्य का यह तर्क कि राशि स्वेच्छा से जमा की गई, न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस पर दबाव था कि अगर वह पैसा नहीं लौटाएंगी तो उसे कोई लाभ नहीं मिलेगा।

  5. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत इस प्रकार की वसूली पूर्णतः अवैध है।

अतः कोर्ट ने आदेश दिया कि:

  • रेलवे पुलिस, कटिहार द्वारा दिनांक 09.12.2016 को जारी किया गया आदेश (मेमो संख्या 626) रद्द किया जाता है।

  • रेलवे पुलिस को निर्देशित किया जाता है कि वह ₹4,42,314 की राशि, जो कि याचिकाकर्ता से ली गई थी, 6 महीने के भीतर साधारण ब्याज सहित वापस करे।


न्यायिक महत्व और सामाजिक प्रभाव:

यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है, जिन्हें सरकारी वेतन निर्धारण की त्रुटियों के कारण अनावश्यक आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। खासकर जब कर्मचारी की मृत्यु हो चुकी हो और परिवार पहले से ही मानसिक एवं आर्थिक पीड़ा में हो, तब ऐसी वसूली न केवल अवैध होती है बल्कि अमानवीय भी होती है।

इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि:

  • मृत्यु उपरांत लाभों को रोककर वसूली करना अन्यायपूर्ण है।

  • सरकारी लापरवाही का खामियाजा किसी ईमानदार कर्मचारी के परिजनों को नहीं भुगतना चाहिए।

  • विधवाओं एवं कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका सशक्त रूप से खड़ी है।


निष्कर्ष:

पटना हाईकोर्ट का यह निर्णय न्याय, करुणा और संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा करता है। यह सरकारी तंत्र को यह भी संकेत देता है कि वेतन निर्धारण की गलतियों का बोझ कर्मचारियों या उनके परिजनों पर डालना उचित नहीं है। सुनीता देवी को न्याय मिला, और यह फैसला अन्य पीड़ितों के लिए भी उम्मीद की किरण बन सकता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjOTM5MyMyMDE4IzEjTg==-SpDa9h9J3mU=