"बिना सुनवाई किए 4 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करना गलत: ठेकेदार सुरज सिंह को पटना हाईकोर्ट से मिला न्याय"

 


भूमिका

पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट केस संख्या 7115/2024 में एक अहम फैसला सुनाते हुए चार वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट किए गए ठेकेदार सुरज सिंह को राहत दी और ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने यह फैसला इस आधार पर दिया कि संबंधित विभाग ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया और बिना किसी उचित सुनवाई या पर्याप्त साक्ष्य के ठेकेदार को दोषी ठहरा दिया।


मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता: एम/एस सुरज सिंह (क्लास-I ठेकेदार, ग्रामीण कार्य विभाग में पंजीकृत)

  • प्रकरण: NIT संख्या RWD/State Scheme(NABARD/HQ/ET/10/2023-24) के अंतर्गत RCC पुल निर्माण कार्य के लिए निविदा में भाग लिया।

  • अनुभव प्रमाण पत्र: याचिकाकर्ता ने 21.07.2023 का अनुभव प्रमाण पत्र संलग्न किया, जिसमें कार्य पूरा होने की तिथि 27.05.2022 दर्शाई गई थी।

  • विवाद: तकनीकी बोली समिति ने इसे चल रहे कार्य को पूर्ण कार्य बताकर गलत प्रतिनिर्देशन (false representation) माना और बिना स्पष्टीकरण मांगे बोली को अस्वीकृत कर दिया।


ब्लैकलिस्टिंग का कारण

  • तारीख: 06.02.2024 (ज्ञापन संख्या 668)

  • कारण: याचिकाकर्ता द्वारा चल रहे कार्य को पूर्ण कार्य दर्शाने का आरोप

  • प्रक्रिया:

    • याचिकाकर्ता को 21.12.2023 को कारण बताओ नोटिस दिया गया।

    • 28.12.2023 को याचिकाकर्ता ने विस्तार से उत्तर दिया और सभी दस्तावेजों की सत्यता की पुष्टि कराई।

    • इसके बावजूद 25.01.2024 की एक एकतरफा रिपोर्ट के आधार पर 4 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।


याचिकाकर्ता के प्रमुख तर्क

  1. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:

    • न तो विवादित रिपोर्ट उन्हें दी गई और न ही कार्यान्वयन स्थल पर उपस्थित रहने का अवसर

    • तकनीकी सलाहकार और कार्यपालक अभियंता की रिपोर्ट एकतरफा और पूर्व नियोजित थी।

  2. दस्तावेजों की प्रामाणिकता:

    • अनुभव प्रमाण पत्र प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा विधिवत जारी किया गया था।

    • कोई भी यह नहीं कह रहा है कि प्रमाण पत्र नकली है, केवल यह विवाद किया गया कि कार्य उस तिथि तक पूरा हुआ था या नहीं।

  3. मूल विवाद अस्पष्ट:

    • यदि काम 27.03.2022 को अधूरा था, तो भी प्रमाण पत्र में स्पष्ट तौर पर समाप्ति की तारीख 27.05.2022 दर्ज है।

    • न तो इस तिथि पर कार्य की स्थिति की पुष्टि की गई और न ही कोई भौतिक निरीक्षण कराया गया।

  4. पूर्वाग्रहपूर्ण निर्णय:

    • दूसरा NIT (21.12.2023) में उसी अनुभव प्रमाण पत्र को याचिकाकर्ता ने फिर से प्रस्तुत किया, जिसे स्वीकार किया गया।

    • ब्लैकलिस्टिंग का निर्णय पक्षपातपूर्ण प्रतीत होता है।


राज्य सरकार का पक्ष

  • तकनीकी समिति ने 11.12.2023 को सभी बोलियों की समीक्षा की और पाया कि कोई भी योग्य नहीं था, इसलिए पुनः निविदा जारी की गई।

  • एक शिकायत के आधार पर कार्यपालक अभियंता और तकनीकी सलाहकार से स्पॉट वेरिफिकेशन कराया गया।

  • उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अनुभव प्रमाण पत्र में दर्शाया गया कार्य पूरा नहीं हुआ था, इसलिए इसे छलपूर्वक गलत प्रतिनिर्देशन माना गया।


अदालत का विचार

प्राकृतिक न्याय का स्पष्ट उल्लंघन:

  • अदालत ने पाया कि—

    • याचिकाकर्ता को 05.12.2023 और 25.01.2024 की रिपोर्टें कभी प्रदान ही नहीं की गईं

    • उन्हें न तो जांच के समय बुलाया गया और न ही उनके स्पष्टीकरण पर विचार किया गया।

    • ब्लैकलिस्टिंग आदेश केवल एकतरफा और पूर्वाग्रह से ग्रसित रिपोर्ट पर आधारित था।

विधिक मान्यताएँ:

  • Khem Chand vs. Union of India (1958): आरोपित व्यक्ति को पूरे आरोप और उनसे संबंधित साक्ष्य का पूर्ण अवसर मिलना चाहिए।

  • Erusian Equipment vs. State of West Bengal (1975): ब्लैकलिस्टिंग एक गंभीर नागरिक परिणाम है, और बिना सुनवाई आदेश देना गैरकानूनी है।

  • Gorkha Security Services vs. NCT of Delhi (2014): शो-कॉज नोटिस में पूरा मामला, आरोप व साक्ष्य स्पष्ट होने चाहिए ताकि व्यक्ति प्रभावी जवाब दे सके।


अंतिम निर्णय

  • ब्लैकलिस्टिंग आदेश (Memo No. 668, दिनांक 06.02.2024) को रद्द किया गया।

  • कोर्ट ने पाया कि यह आदेश अवैध, मनमाना और प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।

  • रिट याचिका सफल घोषित की गई।


न्यायिक और व्यावसायिक महत्व

  1. ठेकेदारों के अधिकारों की रक्षा:
    ठेकेदारों को प्रशासनिक अनुशासन के नाम पर बिना जांच या पक्ष रखने के अवसर के ब्लैकलिस्ट करना अनुचित है।

  2. प्रक्रियात्मक पारदर्शिता:
    कोई भी तकनीकी या प्रशासनिक कार्रवाई पूर्ण निष्पक्षता और पारदर्शिता से होनी चाहिए।

  3. अनुचित शक्ति प्रयोग पर अंकुश:
    सरकारी अधिकारी न्यायिक समीक्षा से बाहर नहीं हैं; उनके कार्यों पर निगरानी आवश्यक है।


निष्कर्ष

यह फैसला न केवल याचिकाकर्ता के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह स्पष्ट संदेश देता है कि प्रशासनिक कार्यवाही में भी कानून का पालन और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सम्मान अनिवार्य है। “ब्लैकलिस्ट” जैसे कठोर कदम किसी व्यक्तिगत अधिकारी की राय पर नहीं, बल्कि उचित प्रक्रिया और साक्ष्य पर आधारित होने चाहिए।


पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzExNSMyMDI0IzEjTg==-t5--am1--rxFuPP8k=