रंगदारी से हत्या तक: कोर्ट ने सुनाया उम्रकैद का फैसला — एक दिल दहला देने वाली सच्ची घटना

 


परिचय:
यह मामला बिहार के पूर्णिया जिले का है, जहाँ दो अभियुक्तों — नीरज यादव और किशोर यादव — को एक युवक, पुनीत कुमार, के अपहरण, रंगदारी और निर्मम हत्या के आरोप में पटना हाईकोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाई गई। मामला क्रिमिनल अपील (डिवीजन बेंच) संख्या 732/2016 के तहत सुना गया, जो सेशन ट्रायल संख्या 417/2015 से संबंधित था।

इस फैसले में कोर्ट ने अभियोजन की गवाही, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस कार्यवाही, और साक्ष्य के आधार पर यह माना कि अभियुक्तों ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत पहले अपहरण किया और फिर हत्या कर दी।

मामले की पृष्ठभूमि:

3 अगस्त 2015 की दोपहर 12:30 बजे, अमित रंजन (सूचक) अपने भतीजे पुनीत कुमार के साथ बाइक से जा रहे थे। जैसे ही वे नीरज यादव के घर के पास पहुंचे, दोनों अभियुक्तों ने उन्हें रोका और रंगदारी (extortion) की मांग की। जब पुनीत ने पैसे देने से इनकार किया, तो अभियुक्तों ने उन्हें पीटा और जबरन एक सफेद मारुति रिट्ज कार (BR 11M-4242) में बैठा लिया। अमित रंजन द्वारा विरोध करने पर उसे पिस्तौल दिखा धमकाया गया।

अभियुक्त उन्हें लेकर उफरैल चौक की ओर भागे। अमित ने पुलिस में जाकर तुरंत एफआईआर दर्ज कराई, जिससे पुलिस तुरंत एक्टिव हुई और कुछ घंटों में अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया।

सबूतों की कड़ी:

  1. एफआईआर और चश्मदीद गवाह:

    • अमित रंजन (PW-4) खुद इस पूरे घटना का चश्मदीद था। उसका बयान पूरी तरह एफआईआर से मेल खाता है।

    • दो अन्य गवाह PW-1 और PW-2 ने दावा किया कि उन्होंने भी पुनीत को कार में जबरन बैठाते देखा, लेकिन कोर्ट ने उन्हें सच्चा प्रत्यक्षदर्शी नहीं माना, क्योंकि उनकी उपस्थिति पर संदेह था।

  2. हत्या की पुष्टि:

    • घटना के महज 5-6 घंटे के भीतर, पुनीत की लाश उफरैल के पास एक खेत से बरामद हुई।

    • पुलिस ने बताया कि अभियुक्त नीरज यादव के बयान के आधार पर शव की बरामदगी हुई, जो कि सेक्शन 27 इंडियन एविडेंस एक्ट के तहत वैध मानी गई।

    • शव से ताज़ा खून निकल रहा था, जिससे यह स्पष्ट था कि हत्या हाल ही में हुई थी।

  3. पुलिस कार्रवाई और त्वरित गिरफ्तारी:

    • पुलिस ने तीन घंटे के भीतर अभियुक्तों को एक ढाबे के पास से पकड़ लिया और कार को भी बरामद किया।

    • घटनास्थल से खून से सना घास व मिट्टी भी बरामद हुई।

  4. फॉरेंसिक और पोस्टमार्टम:

    • डॉक्टर (PW-5) द्वारा शव का पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें कई गंभीर चोटें, नाक, माथे और पीठ पर पाई गईं। इससे हत्या की पुष्टि हुई।

अभियुक्तों की दलीलें और उनका खंडन:

  • बचाव पक्ष ने कहा कि यह मामला केवल परोक्ष (circumstantial) साक्ष्य पर आधारित है और अभियोजन सभी कड़ियाँ नहीं जोड़ पाया।

  • उन्होंने FIR में देर, बयान में विरोधाभास और पुलिस कार्यवाही में त्रुटियों का हवाला दिया।

  • कोर्ट ने यह दलील खारिज करते हुए कहा कि चूंकि अपहरण प्रत्यक्षदर्शी द्वारा सिद्ध हुआ, और अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद उनके बयान से शव मिला, इसलिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य मजबूत और पूर्ण हैं।

  • कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियुक्तों ने यह नहीं बताया कि पुनीत को उन्होंने कहाँ और क्यों छोड़ा था — यानी मृतक उनकी कस्टडी में था और बाद में मृत पाया गया, तो ज़िम्मेदारी अभियुक्तों की ही बनती है।

कानूनी विश्लेषण और फैसले का आधार:

  • कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलों —

    1. Sharad Birdhichand Sarda v. State of Maharashtra

    2. Paramsivam v. State of Tamil Nadu
      का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति किसी को अगवा करता है, और कुछ ही घंटों में वह मृत पाया जाता है, तो कानून मानता है कि अभियुक्त को यह बताना पड़ेगा कि वह ज़िंदा व्यक्ति कहाँ गया।

  • कोर्ट ने यह भी माना कि हत्या का मकसद संभवतः रंगदारी की रकम न मिलने पर हुआ, और सबूतों की कड़ी हत्या की ओर इशारा करती है।

  • अभियुक्तों को धारा 364A (अपहरण कर फिरौती), 302 (हत्या), 120B (षड्यंत्र) और 201 (सबूत मिटाना) के तहत दोषी करार दिया गया।

सजा:

  • प्रत्येक अभियुक्त को:

    • धारा 364A के तहत: आजीवन कारावास + ₹1 लाख जुर्माना

    • धारा 302 के तहत: आजीवन कारावास + ₹2 लाख जुर्माना

    • धारा 120B के तहत: आजीवन कारावास + ₹1 लाख जुर्माना

    • धारा 201 के तहत: 7 वर्ष कारावास + ₹50,000 जुर्माना

सभी सजाएँ साथ-साथ चलेंगी (concurrent sentences)।

निष्कर्ष:

यह मामला बताता है कि कैसे अपराधी छोटी-छोटी बातों जैसे रंगदारी में रकम नहीं मिलने पर भी जान लेने से पीछे नहीं हटते। लेकिन यह भी दिखाता है कि अगर पीड़ित परिवार सजग हो, पुलिस तत्परता से काम करे और न्यायालय निष्पक्षता से फैसला दे, तो अपराधियों को सजा अवश्य मिलती है।

यह निर्णय समाज के लिए एक संदेश है कि न्याय प्रणाली भले धीमी हो, लेकिन न्याय से समझौता नहीं करती।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSM3MzIjMjAxNiMxI04=-eX85Lu93F0g=


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