परिचय
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में रवि कुमार नामक अभियुक्त को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेस (NDPS) अधिनियम, 1985 के तहत दोषमुक्त कर दिया। यह मामला वैशाली जिले के हाजीपुर थाना अंतर्गत 2020 में दर्ज किया गया था, जिसमें अभियुक्त को 20.1 किलोग्राम गांजा रखने के आरोप में 10 वर्षों की सजा और ₹1 लाख का जुर्माना सुनाया गया था। लेकिन हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए अभियुक्त को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
13 अक्टूबर 2020 को हाजीपुर सदर थाना के सब-इंस्पेक्टर संजीव कुमार (PW-1) को गुप्त सूचना मिली कि दो व्यक्ति स्कूटी पर गांजा लेकर दौलतपुर की ओर जा रहे हैं। उन्होंने अपनी टीम के साथ छापेमारी की और एक स्कूटी पर दो व्यक्तियों को आते देखा। पुलिस को देखकर पीछे बैठा युवक भाग गया और स्कूटी चला रहा व्यक्ति पकड़ा गया, जिसने अपना नाम रवि कुमार और भागे हुए युवक का नाम प्रिंस उर्फ बबलू चौधरी बताया।
पकड़े गए युवक से स्कूटी पर रखे पीले प्लास्टिक बैग की तलाशी ली गई, जिसमें 20.1 किलोग्राम गांजा पाया गया। रवि कुमार ने बताया कि यह गांजा उसके पिता श्याम नारायण चौधरी के कहने पर ले जा रहा था। इसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया और स्कूटी समेत गांजा को जब्त कर लिया गया।
पुलिस जांच और ट्रायल
इस घटना के आधार पर हाजीपुर सदर थाना कांड संख्या 633/2020 दर्ज की गई और NDPS अधिनियम की विभिन्न धाराओं (8, 20(b)(ii)(c), 25, 29) के तहत अभियुक्तों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई।
पुलिस द्वारा जांच में रवि कुमार और उसके पिता को अभियुक्त बनाया गया। ट्रायल कोर्ट ने रवि कुमार को दोषी मानते हुए 10 साल की सश्रम कारावास और ₹1 लाख जुर्माने की सजा सुनाई।
अपील और मुख्य दलीलें
अभियुक्त की ओर से वकील अजय कुमार ठाकुर ने हाई कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर की और यह दलीलें दीं:
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जब्ती प्रक्रिया में गंभीर त्रुटियां:
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गांजा की जब्ती, सीलिंग और सैंपलिंग NDPS अधिनियम और केंद्र सरकार की स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन संख्या 1/1988 के प्रावधानों के अनुसार नहीं हुई।
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जब्ती स्थल पर कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था।
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नमूना ड्राइंग के समय किसी मजिस्ट्रेट की उपस्थिति नहीं थी।
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गांजा का प्रारंभिक परीक्षण (preliminary test) भी नहीं हुआ।
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सीलिंग और नमूना संग्रह का स्थान:
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जब्त किए गए गांजा को सीधे थाना नहीं ले जाकर अभियुक्त के घर ले जाया गया, जो NDPS की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन है।
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साक्ष्य का अभाव:
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जब्ती स्थल पर मिले बैग और गांजा पर कोई निशान (मार्किंग/लेबलिंग) नहीं थी, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि FSL में भेजा गया नमूना वही है।
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फॉरेंसिक रिपोर्ट चार्जशीट दाखिल होने के बाद आई, जिससे अभियोजन की वैधता पर संदेह उत्पन्न होता है।
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संयुक्त कब्जे की थ्योरी और मानसिकता:
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यह स्पष्ट नहीं किया गया कि गांजा पर एकमात्र कब्जा रवि कुमार का ही था और उसने जान-बूझकर अपराध किया।
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सरकार की दलीलें
सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि:
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अभियुक्त को स्कूटी चलाते समय गांजा के साथ पकड़ा गया, जो पर्याप्त प्रमाण है।
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FSL रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि बरामद वस्तु गांजा थी।
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गिरफ्तारी सार्वजनिक स्थान पर हुई थी, इसलिए धारा 42 और 50 की अनिवार्यता लागू नहीं होती।
अदालत का विश्लेषण
माननीय न्यायाधीश चंद्रशेखर झा ने इस अपील पर विचार करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातें कहीं:
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गुप्त सूचना पर विरोधाभास:
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PW-1 ने दावा किया कि गुप्त सूचना मिली थी, जबकि PW-2 और PW-3 ने स्वीकारा कि गिरफ्तारी केवल शक के आधार पर की गई।
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स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति:
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घटना स्थल पर 30-40 लोग मौजूद थे, फिर भी कोई स्वतंत्र गवाह नहीं बनाया गया।
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नमूना संग्रह और सीलिंग में खामियां:
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सैंपल कब, कैसे और कितना लिया गया, यह रिकॉर्ड पर स्पष्ट नहीं है।
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किसी मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में सैंपल नहीं लिया गया।
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एफएसएल रिपोर्ट में देरी और असंगतता:
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घटना 13.10.2020 की है लेकिन सैंपल 24.12.2020 को भेजा गया, और रिपोर्ट 07.04.2022 को आई, जबकि चार्जशीट 31.12.2020 को ही दाखिल हो गई थी।
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साक्ष्य का मिलान नहीं:
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PW-3 ने स्वीकारा कि रवि कुमार के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ।
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मालखाने के रजिस्टर में जमा गांजा का वजन वही 20.1 किलोग्राम था, जो संदेह पैदा करता है कि सैंपल लिया ही नहीं गया।
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महत्वपूर्ण न्यायिक उद्धरणों का उल्लेख
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के कई मामलों पर भरोसा किया, जैसे:
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Union of India vs. Mohanlal (2016)
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Gorakh Nath Prasad vs. State of Bihar (2018)
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Noor Aga vs. State of Punjab (2008)
इन मामलों में कहा गया है कि NDPS जैसे कठोर कानूनों में कानूनी प्रक्रिया का सख्त पालन जरूरी है, अन्यथा अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाएगा।
अंतिम निष्कर्ष
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि बरामद गांजा वास्तव में रवि कुमार के कब्जे से मिला और NDPS अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। अतः यह मामला संदेहास्पद बन गया।
फैसला
पटना उच्च न्यायालय ने:
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निचली अदालत के दोषसिद्धि और सजा के आदेश (दिनांक 28.06.2023 व 03.07.2023) को रद्द किया।
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रवि कुमार को सभी आरोपों से बरी किया।
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जेल में बंद होने की स्थिति में तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।
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जमा किया गया जुर्माना वापस करने का निर्देश दिया।
निष्कर्षत:
यह निर्णय बताता है कि NDPS जैसे कठोर कानूनों में भी अभियोजन को सभी कानूनी प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन करना आवश्यक है। केवल पुलिस अधिकारियों की गवाही और संदेह मात्र से किसी को दोषी ठहराना न्याय की अवहेलना है। यह फैसला कानून के शासन, निष्पक्ष सुनवाई और अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MjQjMzc5MyMyMDIzIzEjTg==-TyNPNTd--am1--p2U=
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