न्याय और दया का संतुलन: पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला - अपराधी सुधार अधिनियम के तहत जेल की बजाय मुआवजा और शर्तों के साथ रिहाई

 


प्रस्तावना और मामले की पृष्ठभूमि

पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक अपील आई थी जो न्याय व्यवस्था में दया और सुधार की भावना को दर्शाती है। यह मामला सितामढ़ी जिले के पुपरी थाना क्षेत्र के बिरौली गांव में घटित एक मारपीट की घटना से संबंधित था। इस मामले में चार अभियुक्त - मोहम्मद शहाबुद्दीन, मोहम्मद जाहिद, आमिना खातून और तरन्नुम खातून को निचली अदालत द्वारा विभिन्न आपराधिक धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें जेल की सजा सुनाई गई थी।

इस घटना की शुरुआत 24 अगस्त 2012 की शाम को हुई थी जब शमीमा खातून नाम की एक महिला मोहम्मद मुश्ताक के घर पैसे मांगने गई थी। यह एक साधारण सा मामला था लेकिन यह गंभीर मारपीट और हिंसा में बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग घायल हुए और कानूनी कार्यवाही शुरू हुई।

घटना का विस्तृत विवरण और प्रारंभिक स्थिति

मुकदमे के अनुसार, 24 अगस्त 2012 को शाम 5 बजे के आसपास शमीमा खातून मोहम्मद मुश्ताक के घर पैसे मांगने गई थी। उसी समय मोहम्मद शहाबुद्दीन अपने घर से बाहर आया और उससे गालीगलौज करने लगा। उसने शमीमा से पूछा कि वह उस मोहल्ले में क्यों आई है। जब शमीमा ने उसे गालीगलौज करने से मना किया, तो स्थिति और बिगड़ गई।

इसके बाद मोहम्मद जाहिद, आमिना खातून और तरन्नुम खातून भी अपने घरों से बाहर आए और सभी मिलकर शमीमा को मुक्कों और लातों से मारने लगे। जब शमीमा के रिश्तेदार मोहम्मद डब्लू और मोहम्मद मक्सूद आलम उसे बचाने आए, तो अभियुक्तों ने उन्हें भी पीटा। मोहम्मद शहाबुद्दीन और मोहम्मद जाहिद ने लोहे की छड़ से मोहम्मद डब्लू के सिर पर वार किया। इसके अलावा उन्होंने मोहम्मद मक्सूद आलम पर छुरे से हमला किया और उसके सिर पर चोट पहुंचाई तथा लोहे की छड़ से उसकी बांह पर भी मारा।

चोरी और अन्य आपराधिक कृत्य

मारपीट के दौरान मोहम्मद जाहिद और आमिना खातून ने शमीमा खातून के गले से सोने की चेन, कान से सोने की बाली, और पैर से पायल भी छीन लिया। यह घटना एक साधारण बहस से शुरू होकर गंभीर हिंसा और चोरी में बदल गई, जिसके कारण कई लोग घायल हुए और संपत्ति की हानि भी हुई।

पुलिस कार्यवाही और आरोप तय करना

इस घटना की सूचना पर पुपरी थाना में केस संख्या 150/2012 दर्ज किया गया। पांच अभियुक्तों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 341 (गलत तरीके से बंदी बनाना), 323 (स्वेच्छया चोट पहुंचाना), 324 (खतरनाक हथियार से चोट पहुंचाना), 379 (चोरी), और 504 (सार्वजनिक शांति भंग करना) के तहत धारा 34 (सामान्य इरादा) के साथ मामला दर्ज किया गया।

बाद में जब मामला सत्र न्यायालय में गया, तो चार अभियुक्तों के खिलाफ धारा 341, 323, 504 और 307 (हत्या का प्रयास) के साथ धारा 149 (गैरकानूनी जमावड़ा) के तहत आरोप तय किए गए। मोहम्मद सगीर का मामला बाद में अलग कर दिया गया।

न्यायालयीन कार्यवाही और गवाहों की गवाही

मुकदमे के दौरान कुल छह अभियोजन गवाहों की गवाही ली गई। पहला गवाह मोहम्मद जन्नत हुसैन था, जो शिकायतकर्ता का पिता था और घटना की आवाज सुनकर घटनास्थल पर पहुंचा था। दूसरा गवाह मोहम्मद मक्सूद आलम था, जो इस घटना में घायल हुआ था। तीसरा गवाह मोहम्मद डब्लू था, जो भी घायल हुआ था। चौथी गवाह खुद शमीमा खातून थी, जो शिकायतकर्ता और पीड़िता दोनों थी।

पांचवें गवाह फूलदेव चौधरी जांच अधिकारी थे, और छठे गवाह श्री कृष्ण कुमार झा डॉक्टर थे, जिन्होंने सभी पीड़ितों की चिकित्सा जांच की थी। डॉक्टर की रिपोर्ट के अनुसार मक्सूद आलम के सिर के पिछले हिस्से में 6 सेमी x 1 सेमी x 1 सेमी का गहरा जख्म था और शरीर के अन्य हिस्सों में भी चोटें थीं। डब्लू के सिर में 12 सेमी x 2 सेमी x 2 सेमी का फटा हुआ जख्म था और अन्य चोटें भी थीं। शमीमा खातून के शरीर पर भी चोट के निशान पाए गए थे।

निचली अदालत का फैसला और सजा

निचली अदालत ने सभी सबूतों की जांच करने के बाद चारों अभियुक्तों को धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत बरी कर दिया लेकिन धारा 341, 323 और 504 के तहत दोषी ठहराया। मोहम्मद शहाबुद्दीन और मोहम्मद जाहिद को अतिरिक्त रूप से धारा 324 के तहत भी दोषी पाया गया।

सजा के रूप में सभी को धारा 341 के तहत एक महीने की जेल, धारा 323 के तहत एक साल की जेल, और धारा 504 के तहत दो साल की जेल सुनाई गई। शहाबुद्दीन और जाहिद को धारा 324 के तहत अतिरिक्त तीन साल की कड़ी जेल की सजा दी गई और 5000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। सभी सजाएं एक साथ चलने वाली थीं।

उच्च न्यायालय के समक्ष अपील और तर्क

अभियुक्तों ने इस फैसले के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उनके वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत का फैसला कानूनी और तथ्यात्मक आधार पर गलत है। उन्होंने कहा कि गवाह परिवारिक सदस्य हैं इसलिए पक्षपाती हैं, उनकी गवाही में विरोधाभास है, और आंखों देखे साक्ष्य और चिकित्सा साक्ष्य में भी अंतर है।

वकील ने यह भी तर्क दिया कि धारा 324 के तहत दोषसिद्धि गलत है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि सभी अभियुक्त अपराधी सुधार अधिनियम की धारा 4 के तहत लाभ पाने के हकदार हैं।

उच्च न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष

न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार ने सभी साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया। उन्होंने कानूनी सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल पारिवारिक संबंध के आधार पर किसी गवाह की गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत को सिर्फ सावधानी बरतनी होती है। घायल गवाहों की गवाही का विशेष महत्व होता है और उन्हें आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीश ने पाया कि गवाहों की गवाही में कोई मुख्य विरोधाभास नहीं है जो मुकदमे की जड़ को हिला दे। चिकित्सा साक्ष्य भी गवाहों की गवाही का समर्थन करते हैं। इसलिए निचली अदालत की दोषसिद्धि सही है।

अपराधी सुधार अधिनियम का प्रयोग - दया और न्याय का संतुलन

हालांकि न्यायाधीश ने दोषसिद्धि को सही माना, लेकिन उन्होंने यह भी माना कि इस मामले की परिस्थितियों में सभी अभियुक्त अपराधी सुधार अधिनियम की धारा 4 के तहत लाभ पाने के हकदार हैं। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय था क्योंकि इससे अभियुक्तों को जेल जाने से बचने का अवसर मिला।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि सभी अभियुक्त बिना जमानतदार के एक बांड भरें जिसमें वे वचन दें कि दो साल तक शांति बनाए रखेंगे और अच्छे आचरण से रहेंगे। यदि न्यायालय बुलाए तो सजा सुनने के लिए हाजिर होंगे। इस बांड को भरने के बाद उनकी जमानत की शर्तों से मुक्ति मिल जाएगी।

मुआवजे का निर्धारण और पीड़ितों को राहत

अपराधी सुधार अधिनियम की धारा 5 के तहत न्यायालय ने निर्देश दिया कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए। शहाबुद्दीन और जाहिद को 7000 रुपये प्रत्येक का मुआवजा देने का आदेश दिया गया, जबकि आमिना खातून और तरन्नुम खातून को 3000 रुपये प्रत्येक का मुआवजा देने को कहा गया।

कुल मुआवजे के वितरण में मक्सूद आलम और डब्लू को 8000 रुपये प्रत्येक मिलेंगे और शेष 4000 रुपये शमीमा खातून को मिलेंगे। यह व्यवस्था पीड़ितों की चोटों की गंभीरता के अनुपात में की गई।

निर्णय का व्यापक प्रभाव और महत्व

यह निर्णय न्याय व्यवस्था में मानवीयता और सुधार की भावना को दर्शाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपराधी सुधार अधिनियम की धारा 12 के तहत इस दोषसिद्धि के कारण अभियुक्तों को किसी प्रकार की अयोग्यता नहीं भुगतनी होगी।

इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि न्याय व्यवस्था केवल सजा देने में नहीं बल्कि समाज में शांति स्थापित करने और अपराधियों के सुधार में भी विश्वास रखती है। मुआवजे की व्यवस्था से पीड़ितों को राहत मिलती है और अभियुक्तों को जेल से बचने का अवसर मिलता है। यह एक संतुलित न्याय का उदाहरण है जो दंड और दया दोनों को महत्व देता है।

संपूर्ण निर्णय नीचे पढ़ें

MjQjMTY2IzIwMTYjMSNO-sngmv4hhnwA=

0 Comments

WhatsApp Call