परिचय
यह मामला बिहार के बक्सर जिले के नवानगर थाना क्षेत्र के कटिकनार गांव में 31 मार्च 2016 को घटित एक जघन्य हत्या से जुड़ा है, जिसमें मृतक घुघली पासी की दिनदहाड़े धारदार हथियारों से हत्या कर दी गई। इस मामले में कुल 7 आरोपियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिनमें से एक किशोर था, जिसे किशोर न्याय बोर्ड को सौंप दिया गया। शेष 6 आरोपियों को सत्र न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302/34, 448/34, और 323/34 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए अपराध अपील संख्या 582/2017 और 443/2017 पटना हाईकोर्ट में दायर की गई थी, जिसे न्यायालय ने 4 सितंबर 2024 को खारिज कर दिया।
घटना का संक्षिप्त विवरण
घटना सुबह लगभग 8:05 बजे की है, जब मृतक घुघली पासी अपने पुत्र कंचन पासी (सूचक), पत्नी कौला देवी और बहू धर्मशीला देवी के साथ खेत से मसूर की फसल काटकर लौट रहे थे। जब वे गांव के ही निर्मल सिंह के दरवाज़े के पास पहुँचे, तभी सातों आरोपियों—जो कि मृतक के ही गांव के निवासी थे—ने उन्हें घेर लिया और घातक हथियारों से हमला कर दिया।
मुख्य अभियुक्त रविंद्र पासी उर्फ जोनी पासी ने 'कट्टा' नामक धारदार हथियार से घातक वार किए, जिससे घुघली पासी की गर्दन, चेहरा, हाथ और माथे पर गंभीर चोटें आईं और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। जब परिवार के सदस्य उन्हें बचाने दौड़े तो उन्हें भी पीटा गया। शोर सुनकर गांव वाले आए, तब आरोपी मौके से भाग निकले।
प्राथमिकी और पुलिस कार्यवाही
घटना के लगभग 25 मिनट बाद सुबह 8:30 बजे कंचन पासी ने पुलिस को फर्दबयान दिया, जिसके आधार पर नवानगर थाना कांड संख्या 41/2016 दर्ज की गई। पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया, खून से सना हुआ मिट्टी का सैंपल लिया, और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। जांच के बाद सभी 6 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और मामला सत्र न्यायालय भेजा गया।
प्रमुख गवाहों की गवाही
प्रोसेक्यूशन साइड
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PW-1 (डॉ. अनिल कुमार सिंह): मृतक के शरीर पर कुल 5 गहरे घाव पाए गए। बायाँ हाथ कलाई से ऊपर कट चुका था। मृत्यु का कारण "शॉक और रक्तस्राव" बताया गया जो कि "तीव्र धार वाले हथियार से किए गए आघातों" के कारण हुआ।
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PW-6, PW-7 और PW-9: ये सभी प्रत्यक्षदर्शी थे जो घटना के समय मृतक के साथ मौजूद थे। तीनों ने एक स्वर में आरोपियों के नाम लिए और हत्या की विधि का विस्तृत वर्णन किया।
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PW-4, PW-5 और PW-8: ये सभी महिलाएं थीं जो घटना से कुछ पहले आरोपियों द्वारा घर में घुसकर पीटी गई थीं। इन्होंने इस 'पहले चरण' की घटना का विवरण दिया।
डिफेंस साइड
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गवाहों ने दावा किया कि मृतक अत्यंत वृद्ध और असहाय थे, और संभवतः परिवार द्वारा ही मारे गए ताकि सामाजिक बदनामी (कथित कुष्ठ रोग और अपहरण के केस से जुड़े कारणों) से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि घटना की जिम्मेदारी गलत रूप से आरोपियों पर डाली गई।
हाईकोर्ट में उठाए गए प्रमुख तर्क
अभियुक्तों की ओर से:
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प्राथमिकी सुबह 8:30 बजे दर्ज होने का दावा संदेहास्पद बताया गया, क्योंकि इतनी जल्दी पुलिस कैसे पहुंची और फर्दबयान लिया, यह स्पष्ट नहीं था।
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इनक्वेस्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में प्राथमिकी संख्या का न होना मामले को संदिग्ध बनाता है।
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पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ‘फाउल स्मेलिंग गैस’ की उपस्थिति यह संकेत करती है कि मृत्यु घटना के बताए समय से कहीं पहले हो चुकी थी।
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कोई स्वतंत्र गवाह (गैर-परिवारजन) नहीं बुलाया गया।
सरकार की ओर से:
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पुलिस थाना केवल 8 किलोमीटर दूर था, इसलिए समय पर पहुंचना संभव था।
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डॉक्टर द्वारा समय 6-24 घंटे बताया गया जो घटना के समय से मेल खाता है।
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तीन प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही, मेडिकल रिपोर्ट और घटनास्थल से मिले सबूत एकमत हैं।
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यह जरूरी नहीं कि हर मामले में स्वतंत्र गवाह हो; अगर प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही विश्वसनीय हो तो सज़ा दी जा सकती है।
हाईकोर्ट का निर्णय और विश्लेषण
न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र मालवीय की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि:
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मेडिकल सबूत और गवाहों की गवाही पूरी तरह मेल खाती है।
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अभियोजन के तीन प्रत्यक्षदर्शी (PW-6, 7, 9) की उपस्थिति स्वाभाविक थी क्योंकि वे मृतक के साथ खेत से लौट रहे थे।
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न्यायालय ने माना कि फर्दबयान जल्द दर्ज हुआ था, जिससे झूठी कहानी गढ़ने की संभावना नहीं बनती।
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डॉक्टर की राय कि मृत्यु 6-24 घंटे के भीतर हुई थी, घटनाक्रम से मेल खाती है।
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केवल इसलिए कि गवाह रिश्तेदार हैं, उनकी गवाही को नकारा नहीं जा सकता जब तक वो विश्वसनीय हो।
अंतिम निर्णय
पटना हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले को पूर्ण रूप से सही ठहराते हुए सभी 6 दोषियों की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी। जो अभियुक्त पहले से बेल पर थे, उनके बेल बॉन्ड रद्द कर दिए गए और उन्हें तत्काल न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया गया।
निष्कर्ष
यह फैसला न्यायपालिका की इस सोच को दर्शाता है कि यदि प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही, चिकित्सकीय प्रमाण और घटनास्थल से मिले साक्ष्य मिलते हैं, तो मात्र तकनीकी खामियों या गवाहों के रिश्तेदार होने के आधार पर अभियोजन के केस को खारिज नहीं किया जा सकता। यह निर्णय ग्रामीण क्षेत्रों में घटित जघन्य अपराधों में निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSM1ODIjMjAxNyMxI04=-8H1ZiynywmM=
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