निर्णय का सरल विश्लेषण
दिनांक 20 अगस्त 2024 को पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पटना जिले के मरांची थाना क्षेत्र अंतर्गत मलपुर गांव में 2002 में हुई हत्या के तीन अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया। तीनों अभियुक्तों को पूर्व में भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 तथा एक अभियुक्त को शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।
मामला पंचायत समिति के एक सदस्य की गोली मारकर हत्या से जुड़ा था। अभियोजन का आरोप था कि पूर्व में हुए अपहरण प्रकरण की रंजिश में अभियुक्तों ने मृतक की गोली मारकर हत्या कर दी। निचली अदालत ने यह सजा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दी थी।
लेकिन उच्च न्यायालय ने पाया कि मुकदमे में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियां थीं। विशेष रूप से न्यायालय ने यह पाया कि जिन दो महत्वपूर्ण गवाहों (गवाह सं.1 और 2) के बयान सजा देने में आधार बनाए गए, उन्हें उन सभी अभियुक्तों की उपस्थिति में दोबारा जिरह के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया, जिनके खिलाफ मुकदमे को जोड़ा गया था। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 273 के अनुसार ऐसा करना अनिवार्य था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब अलग-अलग मुकदमों को जोड़ा जाता है, तो एक नई सुनवाई (de novo trial) आवश्यक होती है। पूर्व के बयान तब तक साक्ष्य नहीं माने जा सकते जब तक अभियुक्तों को जिरह का पूरा अवसर न दिया जाए।
अदालत ने यह भी देखा कि अभियोजन पक्ष के सभी गवाह, जिनमें सूचक एवं मृतक की पत्नी शामिल थीं, हत्या के प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। सभी गवाहों की जानकारी या तो घटना के बाद की थी या सुनी-सुनाई पर आधारित थी। पूरे मामले में कोई ऐसा ठोस साक्ष्य नहीं था जिससे अभियुक्तों को अपराध से सीधे जोड़ा जा सके।
इन सब कारणों से और सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से संबंधित मामलों में प्रतिपादित मानकों के आधार पर, पटना हाई कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को बरी कर दिया।
निर्णय का महत्त्व
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और अभियुक्त को जिरह का अवसर देने के अधिकार को सुदृढ़ करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि प्रक्रियात्मक नियमों का उल्लंघन हुआ है तो अभियोजन का मजबूत मामला भी अस्वीकार किया जा सकता है। यह निर्णय आम जनता के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अनुचित प्रक्रिया के चलते दोषी करार न दिया जाए।
मुख्य विधिक प्रश्न और न्यायालय का निर्णय
-
क्या ट्रायल कोर्ट ने संयुक्त मुकदमे के बाद पुराने गवाहों के बयान को गलत तरीके से मान्यता दी? हाँ।
-
क्या अभियोजन पक्ष ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के माध्यम से अपराध को संदेह से परे साबित किया? नहीं।
-
अंतिम निर्णय: अपील स्वीकृत, दोषसिद्धि और सजा रद्द, अभियुक्त बरी।
न्यायालय द्वारा उद्धृत निर्णय:
-
नसीब सिंह बनाम पंजाब राज्य, (2022) 2 SCC 89
-
शरद बिर्धिचंद सरदा बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1984) 4 SCC 116
-
पडाला वीरा रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, 1989 Supp (2) SCC 706
-
शैलेन्द्र राजदेव पासवान बनाम गुजरात राज्य, (2020) 14 SCC 750
-
नीरज दत्ता बनाम दिल्ली राज्य, (2023) 4 SCC 731
-
प्रीतिन्दर सिंह बनाम पंजाब राज्य, (2023) 7 SCC 727
-
शंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2023 SCC Online SC 268
-
इंद्रजीत दास बनाम त्रिपुरा राज्य, AIR Online 2023 SC 150
-
नंदू सिंह बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2022 SCC OnLine SC 1454
-
शिवाजी चिंतप्पा पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2021) 5 SCC 626
मामले का शीर्षक: जनार्दन सिंह एवं अन्य बनाम बिहार राज्य
मामला संख्या: क्रिमिनल अपील (DB) सं. 232/2010, 254/2010 और 422/2010
उद्धरण (Citation): 2024(4) PLJR (605)
पीठ और न्यायमूर्ति: माननीय श्री न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार
वकील:
-
अभियुक्तों की ओर से: श्री दीपक कुमार सिन्हा, अधिवक्ता
-
राज्य की ओर से: श्री डी.के. सिन्हा, अपर लोक अभियोजक; श्री ए.के. सिंह, अपर लोक अभियोजक
निर्णय लिंक:-
0 Comments