पब्लिक लैंड अतिक्रमण पर पटना हाईकोर्ट का फैसला: बिना कानूनी प्रक्रिया के बेदखली नहीं हो सकती

 



निर्णय का सरल विश्लेषण

पटना हाईकोर्ट ने 7 अक्टूबर 2024 को दिए गए एक फैसले में तीन संबंधित अपीलों (LPA No. 899, 883, 926/2024) पर सुनवाई की। इन मामलों में एकल न्यायाधीश द्वारा दी गई उस व्यवस्था को चुनौती दी गई थी, जिसमें बिहार पब्लिक लैंड अतिक्रमण अधिनियम, 1956 के तहत जारी किए गए नोटिस में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस जमीन पर उनके या उनके पूर्वजों के अधिकार पहले भी साबित हो चुके हैं और 1953 तथा 1973 में राज्य सरकार की बेदखली की कोशिशों को विफल किया गया था। वे तर्क दे रहे थे कि एक ही जमीन पर बार-बार अतिक्रमण की कार्यवाही शुरू करना res judicata (पूर्ववर्ती निर्णय बाध्यकारी होता है) का उल्लंघन है।

राज्य सरकार ने दावा किया कि ये जमीनें NHAI की हैं और अतिक्रमण के कारण 170 फीट चौड़ी सड़क 60 फीट तक सिमट गई है। रिकॉर्ड में NHAI का नाम दर्ज है, जबकि याचिकाकर्ताओं के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल कारण बताओ नोटिस के खिलाफ हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर न दिया जाए। याचिकाकर्ताओं को विस्तृत आपत्ति दाखिल करने की अनुमति दी गई और सीओ को निर्देश दिया गया कि वे व्यक्तिगत रूप से सुनवाई कर युक्तियुक्त आदेश पारित करें।

फैसले का महत्व

यह निर्णय एक अहम सिद्धांत को दोहराता है—सरकारी जमीन से बेदखली भी कानूनी प्रक्रिया से ही हो सकती है। यह मनमाने ढंग से ढांचे तोड़ने से नागरिकों की रक्षा करता है और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करता है।

आम जनता के लिए यह आश्वासन है कि उनके पास कानूनी रूप से अपनी बात रखने का अधिकार है। प्रशासन के लिए यह चेतावनी है कि उचित दस्तावेज और प्रक्रियाओं के बिना अतिक्रमण कानून का सहारा नहीं लिया जा सकता।

विधिक मुद्दे और निर्णय

  • क्या पूर्ववर्ती कार्यवाही से नई बेदखली कार्यवाही रोकी जा सकती है? - बिना दस्तावेज प्रमाणित नहीं

  • क्या सिविल कोर्ट की सहमति के बिना बेदखली संभव है? - हां, यदि अधिकार का कोई प्रथमदृष्टया प्रमाण न हो

  • क्या बिना सुनवाई के बेदखली की जा सकती है? - नहीं

  • क्या कारण बताओ नोटिस के खिलाफ रिट दाखिल हो सकती है? - सामान्यतः नहीं

पक्षकारों द्वारा उद्धृत निर्णय

  • Ritlal Chaudhary v. District Magistrate, Purnea, 1997 (25) BLJR 581

  • Hindusthan Petroleum Corp. v. State of Bihar, AIR 1996 Pat 163

  • Amrit Varsha Hindi Dainik v. Bihar Marketing Board, 1999 (1) PLJR 1

  • Sopan Sukhdev Sable v. Asst. Charity Commissioner, (2004) 3 SCC 137

  • Krishna Ram Mahale v. Shobha Venkat Rao, (1989) 4 SCC 131

  • Gulabchand Chotalal Parikh v. State of Gujarat, AIR 1965 SC 1153

अदालत द्वारा भरोसा किए गए निर्णय

  • Commissioner of Central Excise v. Krishna Wax Pvt. Ltd., (2020) 12 SCC 572

  • Union of India v. Kunisetty Satyanarayana, (2006) 12 SCC 28

  • Oryx Fisheries Pvt. Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427

मामले का शीर्षक

LPA No. 899, 883, 926 of 2024 (संयुक्त अपीलें)

मामला संख्या

C.W.J.C. Nos. 17688, 17689/2022; 727/2023

उद्धरण (Citation)

2024(4)PLJR 527

पीठ और न्यायाधीशों के नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

अधिवक्ता

अपीलकर्ताओं की ओर से: श्री वाई. वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री सिया राम साही; श्रीमती सृष्टि सिंह
राज्य की ओर से: श्री पी.के. शाही, महाधिवक्ता; श्री विवेक प्रसाद; श्री अरुण कुमार भगत
नगर निगम की ओर से: श्री प्रिंस कुमार मिश्रा

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM4OTkjMjAyNCMxI04=-DNTcBhVIoaI=


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