"बिना सुनवाई सेवा से हटाई गई आंगनबाड़ी सेविका को न्याय: पटना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला"



भूमिका

पटना उच्च न्यायालय ने शुद्ध्रा कुमारी @ सुभद्रा देवी की अपील पर 3 जुलाई 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्हें बिना नोटिस, बिना जांच और बिना सुनवाई के महज एक आपराधिक मुकदमे में नाम आने पर आंगनबाड़ी सेविका पद से हटा दिया गया था। यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा में एक उदाहरण बनकर सामने आया है।


मामले की पृष्ठभूमि

  • नियुक्ति: सुभद्रा देवी को 5 अप्रैल 2003 को नालंदा जिले के अटवाल बिगहा पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 62 पर सेविका नियुक्त किया गया।

  • प्रशिक्षण: उन्होंने 2004, 2006 और 2010 में विभिन्न प्रशिक्षण लिए।

  • अपराध में फंसाव: वर्ष 2013 में थरथरी थाना कांड सं. 60/2013 में उन्हें IPC की धाराओं 147, 148, 149, 302, 307 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत आरोपी बनाया गया।

  • सेवा समाप्ति: 26 फरवरी 2014 को जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, नालंदा द्वारा उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। यह आदेश 3 मई 2014 को डिप्टी डायरेक्टर द्वारा भी बरकरार रखा गया।


प्रमुख कानूनी प्रश्न

  1. क्या किसी महिला को केवल आपराधिक मामले में नाम आने पर बिना नोटिस और सुनवाई के सेवा से हटाया जा सकता है?

  2. क्या सेवा समाप्ति की प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप की गई?

  3. क्या तीसरे पक्ष के हितों की उपस्थिति में सेवा बहाली संभव है?


अपीलकर्ता के तर्क

  • स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थिति: अक्टूबर 2013 में गंभीर बीमारी के कारण पटना के राजेश्वर अस्पताल में भर्ती रहीं और एक माह का बेड रेस्ट डॉक्टर द्वारा बताया गया था।

  • जमानत और बरी होना: उन्हें अग्रिम जमानत मिली थी और वर्ष 2018 में मुकदमे से बरी भी कर दिया गया।

  • कोई पूर्व शिकायत नहीं: 2003 से सेवा में रहने के दौरान उनके विरुद्ध कोई शिकायत नहीं आई थी।

  • नोटिस या सुनवाई नहीं मिली: उन्हें कोई कारण बताओ नोटिस नहीं दिया गया और सीधे सेवा समाप्त कर दी गई, जो प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।


राज्य सरकार के तर्क

  • नोटिस भेजने का दावा: जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने 11 फरवरी 2014 को नोटिस भेजा था, जिसमें व्यक्तिगत उपस्थिति और स्पष्टीकरण मांगा गया था, लेकिन अपीलकर्ता की अनुपस्थिति के कारण नोटिस नहीं दिया जा सका।

  • सेवा पर प्रभाव: आपराधिक मुकदमे और लगातार अनुपस्थिति के कारण आंगनबाड़ी केंद्र पर कार्य प्रभावित हो रहा था।

  • उच्च अधिकारियों की पुष्टि: समाप्ति आदेश को उच्च अधिकारियों ने उचित और सही ठहराया।


अदालत की टिप्पणी व निर्णय

न्यायिक मापदंड:

  • सेवा समाप्ति से पूर्व प्राकृतिक न्याय का पालन किया जाना अनिवार्य है।

  • केवल मुकदमे में नाम आना, और बिना दोषसिद्धि के, किसी को सेवा से हटाने का आधार नहीं हो सकता।

महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  • “कोई नोटिस नहीं दिया गया, न ही सुनवाई का अवसर मिला — यह प्राकृतिक न्याय के विपरीत है।”

  • “केवल आरोप के आधार पर सेविका को बर्खास्त नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब वह दोषमुक्त हो चुकी हों।”

  • “नियुक्ति के समय किसी आपराधिक सजा की शर्त लागू होती है, न कि आरोप मात्र।”

विचाराधीन न्यायिक मिसालें:

  • D.K. Yadav vs. J.M.A. Industries Ltd. (1993) 3 SCC 259: “प्रशासनिक निर्णयों में भी निष्पक्ष सुनवाई आवश्यक है।”

  • State Bank of India vs. Rajesh Agarwal (2023): “प्राकृतिक न्याय सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि एक ठोस संवैधानिक दायित्व है।”


अंतिम आदेश

  • CWJC No. 12752 of 2014 में पारित आदेश को रद्द किया गया।

  • LPA No. 828 of 2019 स्वीकार की गई।

  • चूंकि सेवा समाप्ति के बाद तीसरे पक्ष की नियुक्ति हो चुकी है, इसलिए सेवा बहाल न करके ₹5,00,000 का मुआवजा प्रदान करने का आदेश दिया गया।

  • यह राशि तीन माह के भीतर देनी होगी, अन्यथा 6% वार्षिक ब्याज के साथ देय होगी।


सामाजिक और विधिक महत्व

  1. महिला कर्मचारियों के अधिकार: यह निर्णय महिलाओं को उनके सेवा अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है।

  2. प्राकृतिक न्याय की पुनः स्थापना: बिना सुनवाई किसी को दंड देना असंवैधानिक है — यह स्पष्ट किया गया।

  3. लोकसेवा में न्याय की उम्मीद: यह फैसला सरकारी तंत्र में कार्यरत लोगों को यह भरोसा देता है कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा।


निष्कर्ष

सुभद्रा देवी जैसे सैकड़ों महिला कर्मी, जो कम संसाधनों में ग्रामीण भारत में सेवा देती हैं, के लिए यह फैसला न्याय की नई आशा है। केवल एक मुकदमे में नाम आने पर बिना किसी सुनवाई के बर्खास्त करना न केवल अन्यायपूर्ण था, बल्कि संविधान और कानून के मूल्यों के भी विपरीत था।

यह निर्णय बताता है कि चाहे आप सरकारी सेवा में हों या निजी क्षेत्र में, प्राकृतिक न्याय का पालन हर जगह आवश्यक है

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM4MjgjMjAxOSMxI04=-T8bWxqNEANY=


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