परिचय:
यह मामला पटना उच्च न्यायालय के समक्ष Miscellaneous Appeal No. 259 of 2016 के रूप में आया, जिसमें प्रेमलता ठाकुर ने भोजपुर परिवार न्यायालय, भागलपुर द्वारा पारित तलाक आदेश को चुनौती दी। मुख्य विवाद पति कुमार अच्युतानंद झा द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ib) (त्याग), क्रूरता और परस्त्रीगमन के आधार पर तलाक के लिए दायर याचिका पर केंद्रित था।
मामले की पृष्ठभूमि:
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विवाह: 24 जून 2005
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बच्ची का जन्म: 31 जुलाई 2006
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तलाक याचिका दायर: 23 जुलाई 2007
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फैमिली कोर्ट का निर्णय: विवाह विच्छेद स्वीकृत, पत्नी को भरण-पोषण व स्थायी गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा और बच्ची पति को सौंपने का आदेश।
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उच्च न्यायालय में अपील: प्रेमलता ठाकुर द्वारा फैसले को चुनौती
पति की ओर से लगाए गए आरोप:
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वैवाहिक व्यवहार: पत्नी ने विवाह के तुरंत बाद ससुराल में सहयोग नहीं किया, खाना नहीं बनाया, साफ-सफाई नहीं की और पति की अनुमति के बिना नौकरी की तलाश में बाहर गई।
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परिवार के हस्तक्षेप: पत्नी की मां, भाई और मामा लगातार दखल देते थे और ससुराल में कलह फैलाते थे।
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फरार होने का आरोप: पत्नी बिना बताए कई बार मायके चली गईं, जिसमें एक बार बच्ची को भी अकेले छोड़ गईं।
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आत्महत्या का प्रयास: पत्नी ने एक बार केरोसिन तेल डालकर आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन माचिस न मिलने से असफल रहीं।
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अवैध संबंध का आरोप: पत्नी पर एक अन्य व्यक्ति (चंदन मिश्रा) के साथ संबंध रखने का गंभीर आरोप लगाया गया। यह भी कहा गया कि वह उसके साथ भाग गईं और वहीं रहने लगीं।
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क्रूरता और गाली-गलौज: पत्नी ने न केवल पति को गालियाँ दीं बल्कि उसे व उसकी माँ को थप्पड़ भी मारे।
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नवजात शिशु की उपेक्षा: पत्नी ने बच्ची की देखभाल नहीं की; पड़ोसियों व सास ने बच्ची को पाला।
पत्नी (प्रेमलता) की दलीलें और पक्ष:
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झूठे आरोप: पति ने तलाक के लिए झूठे और मनगढ़ंत आरोप लगाए, जिनमें अवैध संबंध और आत्महत्या जैसी बातें शामिल थीं।
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दहेज की मांग और उत्पीड़न: पति और उसके परिवार ने दहेज के लिए दबाव डाला और मारपीट भी की।
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पति द्वारा धोखा: रक्षाबंधन पर ससुराल से बुलाकर बच्ची के साथ पत्नी को मायके छोड़ा गया और फिर पति बच्ची को लेकर भाग गया। बाद में ससुरालवालों ने प्रेमलता को घर में प्रवेश नहीं करने दिया।
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पति ने पत्नी को अपनाने से इनकार किया: प्रेमलता कई बार ससुराल लौटना चाहती थीं, परन्तु पति और उसके परिवार ने उसे नहीं अपनाया।
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अवैध संबंध का कोई प्रमाण नहीं: जिस व्यक्ति (चंदन मिश्रा) पर आरोप लगाया गया, उसे कोर्ट में पक्षकार नहीं बनाया गया और पति ने भी कोर्ट में माना कि उसने पत्नी को कभी उस व्यक्ति के साथ नहीं देखा।
फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष (जो उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई):
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विवाह विच्छेद (तलाक) स्वीकार।
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पत्नी को कोई स्थायी गुजारा भत्ता या भरण-पोषण नहीं मिलेगा।
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बच्ची की कस्टडी पिता को दी गई।
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कोर्ट ने पत्नी के चरित्र पर टिप्पणी की और उसे गलत ठहराया।
पटना उच्च न्यायालय का मूल्यांकन:
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आरोपों में दम नहीं: अवैध संबंध जैसे गंभीर आरोप के लिए कोई ठोस सबूत नहीं था। चंदन मिश्रा को पक्षकार नहीं बनाया गया, जबकि आरोप उसी पर था।
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त्याग (Desertion) का आधार विफल: विवाह जून 2005 में हुआ और बच्ची का जन्म जुलाई 2006 में। तलाक याचिका जुलाई 2007 में दायर की गई — दो साल की निरंतर जुदाई का कानूनी मापदंड पूरा नहीं हुआ।
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क्रूरता का आधार कमजोर: क्रूरता साबित करने के लिए पर्याप्त और विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद नहीं थे।
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संवेदनशीलता की कमी: फैमिली कोर्ट ने बिना समुचित विश्लेषण के न केवल तलाक स्वीकार किया, बल्कि महिला को बदनाम करने वाले निष्कर्ष दिए।
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माँ को बच्ची से अलग करना अनुचित: बच्ची महज 2 साल की थी और Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 की धारा 6 के अनुसार, पांच साल तक के बच्चे की कस्टडी आमतौर पर मां को दी जाती है।
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पुनर्विचार की आवश्यकता: न्यायालय ने पाया कि फैमिली कोर्ट का निर्णय पक्षपातपूर्ण, असंगत और एकतरफा था।
उच्च न्यायालय का निर्णय:
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फैमिली कोर्ट का निर्णय रद्द किया गया।
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मामला दोबारा सुनवाई हेतु फैमिली कोर्ट को भेजा गया।
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कोर्ट ने Rajnesh vs. Neha और Aditi @ Mithi vs. Jitesh Sharma जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया और 6 माह के भीतर निष्पक्ष फैसला देने का निर्देश दिया।
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दोनों पक्षों को सहयोग करने का आदेश।
निष्कर्ष:
इस मामले में यह स्पष्ट रूप से उजागर हुआ कि झूठे आरोप, कानूनी चालाकी और सामाजिक दबावों के आधार पर वैवाहिक संबंधों को तोड़ा नहीं जा सकता। प्रेमलता ठाकुर ने जहां लगातार पारिवारिक जीवन बनाए रखने की इच्छा जताई, वहीं पति ने बार-बार रिश्ते से बचने के बहाने तलाशे।
यह फैसला हमें यह भी याद दिलाता है कि न्यायालय को तलाक जैसे मामलों में बेहद संवेदनशील, निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित निर्णय देना चाहिए ताकि किसी महिला के चरित्र पर बिना प्रमाण आरोप न लगे और बच्चे के भविष्य से खिलवाड़ न हो।
प्रमुख सीख:
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तलाक कोई हथियार नहीं, अंतिम विकल्प है।
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अवैध संबंध का आरोप बिना सबूत के चरित्र हत्या हो सकता है।
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न्यायालयों को महिला एवं बच्चे के अधिकारों की रक्षा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiMyNTkjMjAxNiMxI04=-RRwzTr31NAY=
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