न्याय की तराजू में सत्य की खोज: एक झूठे वादे और भ्रम के जाल में फंसा बलात्कार का मामला

 


मामले की पृष्ठभूमि और परिस्थितियां

पटना हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत यह मामला एक जटिल पारिवारिक और सामाजिक स्थिति से उत्पन्न हुआ था। अमरेश कुमार उर्फ सोनू नामक व्यक्ति के विरुद्ध बलात्कार और धमकी के आरोप लगाए गए थे। मामले की शुरुआत तब हुई जब एक महिला ने आरोप लगाया कि अमरेश ने उससे शादी का झूठा वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे।

पीड़िता की परिस्थिति अत्यंत दयनीय थी। उसकी शादी राज कुमार सिंह से हुई थी और उनके दो बच्चे भी थे। लेकिन 2008 में उसका पति बिहार छोड़कर चला गया था और उसका कोई पता-ठिकाना नहीं था। इस कठिन समय में वह अकेली अपने दो बच्चों के साथ रह रही थी। 2013 में अमरेश कुमार किराएदार के रूप में उसके घर में रहने आया। वह पीड़िता की परिस्थिति से अवगत था कि उसका पति उसे छोड़कर चला गया है और दूसरी शादी कर ली है।

आरोप और दावे

पीड़िता का कहना था कि अमरेश ने उसकी दुर्दशा का फायदा उठाते हुए 2016 में उससे शादी का वादा किया और इस झूठे वादे के आधार पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। अक्टूबर 2016 में अमरेश ने कहा कि वह भागलपुर में नौकरी के लिए जा रहा है, लेकिन वह एक-दो हफ्ते में वापस आकर उसके साथ संबंध बनाता रहा। जब पीड़िता ने शादी के लिए दबाव डाला तो अमरेश ने उससे कहा कि वह अपना घर उसके नाम कर दे।

बाद में जब पीड़िता को पता चला कि अमरेश किसी और लड़की से शादी करने वाला है, तो उसने स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। अमरेश के परिवार वालों ने भी उसकी गलती मानी और शादी कराने का वादा किया। 2018 में अमरेश फिर से दो रात उसके घर में रुका और घर उसके नाम करने की जिद की। जब पीड़िता ने मना कर दिया तो उसने शादी करने से इनकार कर दिया।

कानूनी प्रक्रिया

इस घटना के बाद महिला थाने में मामला दर्ज किया गया। पुलिस ने जांच के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 506, 509, 420 और 34 के तहत चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई जहां अभियुक्त ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया और निष्पक्ष सुनवाई की मांग की।

अभियोजन पक्ष ने पांच गवाह पेश किए - पीड़िता के बच्चों के शिक्षक बजरंग कुमार, पीड़िता की मां शीला देवी, स्वयं पीड़िता, जांच अधिकारी शशि शेखर सिंह और डॉक्टर अनुराधा। ट्रायल कोर्ट ने अमरेश को धारा 376(1) के तहत दस साल की सजा और पांच हजार रुपए जुर्माना तथा धारा 506 के तहत दो साल की सजा सुनाई।

हाई कोर्ट की जांच और विश्लेषण

पटना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति चंद्र शेखर झा ने इस मामले की गहराई से जांच की। कोर्ट की नजर में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या पीड़िता को "स्टर्लिंग विटनेस" माना जा सकता है। स्टर्लिंग विटनेस वह गवाह होता है जिसकी गवाही इतनी विश्वसनीय और निर्दोष होती है कि उसके आधार पर अकेले ही फैसला दिया जा सकता है।

कोर्ट ने पाया कि पीड़िता के बयान में कई विरोधाभास थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि धारा 164 के तहत दिए गए उसके बयान में कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि अमरेश के साथ उसका कोई शारीरिक संबंध था। उस बयान में केवल यह था कि शादी की बातचीत चल रही थी और अमरेश दहेज में घर की मांग कर रहा था।

चिकित्सा जांच और तथ्य

डॉक्टर अनुराधा की जांच से पता चला कि पीड़िता का 2013 में हिस्टेरोस्कोपी (गर्भाशय की जांच) हुई थी, जिसके कारण वह भविष्य में कभी मां नहीं बन सकती थी। चिकित्सा रिपोर्ट में कोई चोट या हिंसा के निशान नहीं मिले थे। योनि के नमूने की जांच में शुक्राणु भी नहीं मिले थे।

कोर्ट ने यह भी पाया कि पीड़िता का 2015 से ही राजीव नाम के व्यक्ति के साथ संबंध था, जबकि अमरेश के साथ कथित संबंध 2016 के बाद बताया गया था। यह तथ्य पीड़िता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता था।

कानूनी सिद्धांत और न्यायिक दृष्टिकोण

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि बलात्कार के मामले में "सहमति" का अर्थ बहुत महत्वपूर्ण है। यदि कोई महिला भ्रम या गलत तथ्यों के आधार पर सहमति देती है, तो वह वास्तविक सहमति नहीं मानी जाती। लेकिन इसके लिए यह साबित करना जरूरी है कि वास्तव में ऐसा भ्रम था और पुरुष ने जानबूझकर झूठा वादा किया था।

कोर्ट ने प्रमोद सूर्यभान पावर बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाना तभी बलात्कार माना जाएगा जब यह साबित हो कि शुरू से ही धोखा देने की नीयत थी।

न्यायालय का निष्कर्ष

हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में पीड़िता को स्टर्लिंग विटनेस नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके बयानों में असंगतियां थीं। उसने पहले धारा 164 के तहत कुछ और कहा था और बाद में कोर्ट में कुछ और कहा। शादी का वादा भी संदिग्ध लगा क्योंकि पीड़िता पहले से ही विवाहित थी और उसका तलाक नहीं हुआ था।

कोर्ट ने यह भी माना कि अमरेश की शुरुआत से धोखा देने की नीयत साबित नहीं हो सकी। घर में पांच किराएदार रहते थे लेकिन किसी के सामने शादी का वादा नहीं किया गया था। यहां तक कि पीड़िता की मां या बच्चों के शिक्षक के सामने भी ऐसा कोई वादा नहीं हुआ था।

न्यायिक फैसला

अंततः पटना हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और अमरेश कुमार को सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पर्याप्त सबूतों के अभाव में और पीड़िता की गवाही में विरोधाभासों के कारण यह मामला बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। अमरेश को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।

समाज के लिए संदेश

यह फैसला दिखाता है कि न्यायालय कितनी सावधानी से हर मामले की जांच करता है। बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में भी कोर्ट केवल भावनाओं के आधार पर फैसला नहीं करता बल्कि ठोस सबूतों की मांग करता है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि झूठे आरोप लगाना भी उतना ही गलत है जितना कि वास्तविक अपराध करना।

संपूर्ण फैसला नीचे पढ़ें

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